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मुंबई | जिस तरह से सब्जी और दाल में तड़का लगाए बिना स्वाद नहीं आता। उसी तरह से आजकल महाराष्ट्र के लगभग हर घर में शरद पवार और अजित पवार की चर्चा के बगैर मजा नहीं आ रहा है। चाचा- भतीजा की जोड़ी राज्य की जनता के लिए फ़िलहाल किसी तड़के से कम नहीं है। महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों चाचा- भतीजा की जोड़ी की चर्चा है। आलम यह है कि इस जोड़ी की चर्चा राज्य के लगभग हर घर में खाने की मेज पर भी हो रही है। अजित पवार और शरद पवार लोगों की जुबान पर किसी तड़के की तरह सजे हुए हैं। इस जोड़ी की कहानी में अदावत, महत्वकांक्षा, साजिश और बगावत जैसे महत्वपूर्ण मसाले हैं। जो इसे और भी मजेदार बना रहे हैं। आज आप अगर महाराष्ट्र के किसी भी गली, चौबारे, सड़क या फिर घर में जायेंगे तो आपको चाचा- भतीजा की जोड़ी की चर्चा जरूर सुनने को मिलेगी। तकरीबन डेढ़ दशक पहले इसी तरह से बाल ठाकरे और राज ठाकरे की भी चर्चा थी। जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था।
एक सप्ताह पहले अजित पवार ने रविवार को महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी। उनके अलावा उनके आठ समर्थक विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। राज्य में फ़िलहाल इस जोड़ी की चर्चा के दौरान तरह-तरह की बातें कर रहे हैं और अपने तर्क दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि अजित पवार या शरद पवार के लिए विचार और नैतिकता का कोई मतलब नहीं है। जनता को यह भी लगता है कि राजनीति में इन्हीं लोगों का दबदबा रहेगा क्योंकि यह लोग अपने ही खानदान के लोगों को राजनीति में आगे बढ़ाएंगे। आज कल के राजनेताओं के लिए राजनीति एक पैसे बनाने का क्षेत्र है। जाने-माने पॉलिटिकल कमेंटेटर अमरेंद्र नंदू धनेश्वर कहते हैं कि जो लोग राजनीति में जनता की सेवा के लिए आते हैं वह लोग ज्यादा दिन टिक नहीं पाते।
पेशे से इंजीनियर अर्चिस पाटिल कहते हैं कि अगर मंत्रालय की छठी मंजिल पर राजनेताओं को जाने का मौका मिले तो वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। शैतान से भी हाथ मिला सकते हैं। जैसे धृतराष्ट्र ने महाभारत में किया था। आज के ज़माने के नेता भी अपने बेटे या बेटी को सत्ता का सिंहासन देने के लिए भतीजे की कुर्बानी दे देते हैं। इस वजह से पार्टी और परिवार दोनों में तनाव पैदा हो जाता है। अगर नेता नेता इसी तरह से वंशवाद करते रहेंगे तो अजित पवार की तरह भतीजे भी अपने स्वार्थ के लिए टांग खींचते रहेंगे।
ठाकरे परिवार में भी यह हुआ था बाल ठाकरे ने 2005 में उद्धव और राज ठाकरे के बीच के विवाद को खत्म करने की कोशिश की थी। उनका इरादा था कि महाराष्ट्र के 36 जिलों को दोनों के बीच में बराबर-बराबर बांट दें लेकिन भरोसे की कमी चलते ऐसा नहीं हो पाया। आखिरकार राज ठाकरे ने अलग होकर साल 2006 में अपनी पार्टी बनाई। हालांकि, तब शिवसेना में कोई बगावत नहीं हुई थी क्योंकि बाल ठाकरे की दहशत कायम थी।
धनंजय मुंडे ने भी इसी तरह से अपने चाचा दिवंगत गोपीनाथ मुंडे के साथ भी बगावत की थी। जब उन्हें यह लगने लगा कि उनके चाचा राजनीति में अपनी बेटी पंकजा मुंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। धनंजय मुंडे को महाराष्ट्र में खासतौर बीड में गोपीनाथ मुंडे का वारिस माना जाता था। धनंजय मुंडे की चाल-ढाल, भाषण का अंदाज सब कुछ काफी हद तक गोपीनाथ मुंडे की तरह ही था। विज्ञान की स्टूडेंट रही पंकजा मुंडे के राजनीतिक उदय और गोपीनाथ मुंडे के वारिस के रूप में उनकी पहचान धनंजय मुंडे को परेशान करने लगी थी। धनंजय को शांत करने के लिए गोपीनाथ मुंडे ने उन्हें महाराष्ट्र विधान परिषद भी भेज दिया था। बावजूद इसके उनकी नाराजगी कम नहीं हुई और उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया।
राजनीति के जानकार कहते हैं हैं कि चाहे राज ठाकरे हों या फिर धनंजय मुंडे दोनों नेताओं ने कभी भी सार्वजनिक मंच से अपने मेंटर्स की बुराई नहीं की। राज ठाकरे ने तो बाल ठाकरे अपने लिए भगवान विट्ठल तक कह दिया था। इसी तरह से धनंजय मुंडे ने भी कभी मर्यादा नहीं लांघी। हालांकि, अजित पवार ने पिछले सप्ताह शपथ लेने के बाद अपने चाचा शरद पवार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने तो यह भी कह दिया कि अब उनकी उम्र हो चुकी है अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए।
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Harrison
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