महाराष्ट्र

पुणे के तीन लोगों ने 70 दिनों में एसयूवी से 21,000 किमी तय कर बनाया रिकॉर्ड

Rani Sahu
9 May 2023 2:49 PM GMT
पुणे के तीन लोगों ने 70 दिनों में एसयूवी से 21,000 किमी तय कर बनाया रिकॉर्ड
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पुणे (आईएएनएस)| पुणे के तीन लोगों ने एक नया कीर्तिमान बनाया है। इन तीनों ने 70 दिनों में भारत के एक छोर से दूसरी छोर तक -- उत्तर-दक्षिण, पूरब पश्चिम -- 21,000 किलोमीटर की दूरी एसयूवी से तय कर ली। तीनों सॉफ्ट इंजीनियर हैं। इनके नाम हैं - जयकुमार अनादकट, उनकी पत्नी पूजा पड़िया-अनादकट, दोनों गुजरात से, और राजस्थान से उनके दोस्त सोनेश मेहरा, जो एडवेंचर क्लब, 'प्लेसेजअराउंडपुणे' के सह-संस्थापक हैं।
तीनों सोमवार देर रात घर लौटे। लौटने के बाद जयकुमार ने कहा, हमने पहले ट्रैकिंग, साइकिलिग, पर्वतारोहण, स्कूबा-डाइविंग जैसी कई गतिविधियां की हैं, लेकिन इस बार हम कुछ अलग करना चाहते थे। इसलिए हमने इस यात्रा का प्लान बनाया -- हैशटैगमैपमाईकंट्री, टाटा सफारी एसयूवी में। हम इसे रिकॉर्ड बुक में दर्ज कराना चाहते हैं।
तीनों लगभग 35 वर्ष की आयु के हैं। इन्होंने 27 फरवरी को मगरपट्टा से अपनी यात्रा शुरू की थी और 8 मई को उसी स्थान पर लौट आए। वो 26 राज्यों, कई केंद्र शासित प्रदेशों, 52 प्रमुख शहरों और 250 से अधिक महत्वपूर्ण यात्रा स्थलों से होते हुए भारत की सीमाओं पर घूमे।
मेहरा ने कहा, हमने क्लॉकवाइज डायरेक्शन में देश की सीमा, सभी सीमावर्ती राज्यों का दौरा किया और महाराष्ट्र से दक्षिण की ओर शुरू करते हुए कार से यात्रा की।
महाराष्ट्र से वे गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश गए। इस दौरान वो पूरब में भारत का पहला गांव और सबसे दक्षिणी सिरे पर धनुषकोडी रामेश्वर और कन्याकुमारी को देखा।
पूजा ने कहा, हमने छह अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं - पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार को टच किया। हमने भारत के विभिन्न लोगों, उनकी संस्कृतियों और जीवन शैली, मौसम प्रणालियों, देश के विभिन्न हिस्सों की प्रचुर सुंदरता के बारे में बहुत कुछ सीखा।
अल्ट्रा-लॉन्ग ड्राइव के दौरान उन्हें राजस्थान के रेगिस्तान में 45 डिग्री सेल्सियस से लेकर बर्फीले कश्मीर में माइनस 5 डिग्री सेल्सियस तक, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में ओलावृष्टि, असम में मूसलाधार बारिश और दक्षिणी राज्यों में उमस भरे मौसम का सामना करना पड़ा। हालांकि उनके पास उपयुक्त कपड़े थे, लेकिन कई बार जिंदा रहने के लिए स्थानीय स्तर पर शिकार भी करना पड़ा।
इस दौरान जंगल सफारी, ऑफ-रोडिंग, धूल भरी सूखी रेगिस्तानी रेत, मैंग्रोव जंगलों में नाव की सवारी, बर्फीले पहाड़ों की सड़कों को पार करना, या बांस के पुलों से गहरी घाटियों में ड्राइव करना, जंगली और घने जंगलों के बीच से उन्हें गुजरना पड़ा। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों की नदियों, पूर्व में पहला सूर्योदय और पश्चिम और दक्षिणी समुद्र तटों में रंगीन सूर्यास्त देखा।
वे कुछ आदिवासी और पारंपरिक सांस्कृतिक उत्सवों में भी शामिल हुए, स्थानीय वेशभूषा पहना, गायन, नृत्य या उनकी धुनों पर नाचे, और अजीबोगरीब व्यंजनों से लेकर स्वादिष्ट व्यंजनों तक सब कुछ खाया। खाने के लिए कुछ भी उपलब्ध न होने पर फल खाकर भी रातें गुजारी।
वास्तव में कई यादें हैं, जिनमें कुछ डरावनी भी हैं, जो तीनों के साथ लौटीं -- जैसे पंजाब के एक उत्साहित सज्जन रिपु दमन, जिन्होंने फेसबुक के माध्यम से उनसे संपर्क किया और एक रात के लिए खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ उनकी मेजबानी की।
नागालैंड में, वे तत्कालीन 'हंटर' जनजाति के एक 95 वर्षीय सदस्य से मिले, जो अभी भी गर्व से कुछ मुंडियों की माला पहनते हैं जिसे उन्होंने कई दशक पहले हासिल करने का दावा किया था!
आज, जयकुमार, पूजा और सोनेश बिना किसी अप्रिय घटना के अपनी 'लॉन्ग ड्राइव' पूरी करने पर बेहद रोमांचित हैं, जिसे वे लंबे समय तक संजो कर रखेंगे।
--आईएएनएस
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