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मध्य प्रदेश
देखें रात 10 बजे का LIVE बुलेटिन, और बने रहिये jantaserishta.com पर
Shantanu Roy
15 July 2022 4:34 PM GMT
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बड़ी खबर
भोपाल। मानसून तो हर साल आता है, लेकिन इस साल यह लोगों को बहुत डरा रहा है। प्रदेशभर में मानसून अच्छी आवक हो चुकी है। इस दौरान विभिन्ना जिलों के लोगों ने यह महसूस किया है कि इस साल के मानसून की प्रकृति पिछले सालों से अलग है। काले घनघोर बादल तो हमेशा ही छाते हैं और मूसलधार वर्षा भी हर बार होती है।
लेकिन इस साल बिजलियां ज्यादा कड़क रही हैं और गिर भी रही हैं। इसके साथ बादल गरजने का तरीका और आवाज भी बहुत तेज है, जिससे बच्चों के साथ बड़े भी घबरा रहे हैं। आंकड़ों की बात करें, तो इस साल आकाशीय बिजली गिरने से मरने व घायल होने वालों की संख्या भी बीते सालों की तुलना में बहुत ज्यादा है, जबकि अभी तो मानसून की शुरुआत है। ये आंकड़े और बढ़ सकते हैं।
इन वजहों से इस साल का मानसून थोड़ा अलग है
बादल कई तरह के होते हैं। निम्न स्तरीय (एक से दो किमी की ऊंचाई) मध्यम स्तरीय (दो से चार किमी की ऊंचाई) एवं उच्च स्तरीय (आठ से अधिक किमी ऊंचाई) बादल। बारिश हमेशा निम्न स्तरीय काले बादलों से होती है। इसके अलावा बादलों का एक और प्रकार होता है, जिसे क्यूमलोनिम्बस (सीबी) क्लाउड कहते हैं। ये टावर की तरह करीब 20 किलोमीटर ऊंचाई तक फैले होते हैं। इनके ऊपरी हिस्से में धनात्मक आवेश व निचले हिस्से में ऋणात्मक आवेश होता है। जब ऐसे ढेर सारे सीबी क्लाउड आसपास आ जाते हैं, तो गर्जना के साथ बिजली कड़कती है। इनके साथ जब निम्न स्तरीय काले बादल मिल जाते हैं, जैसा कि इन दिनों हो रहा है तो बिजली कड़कती है और वर्षा भी होती है। इस तरह के सीबी बादल इन दिनों मध्य प्रदेश, बिहार, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में अधिक बन रहे हैं, जिस वजह से इन जगहों पर बिजली गिरने के साथ खूब वर्षा हो रही है।
- वर्तमान में जो मौसम प्रणालियां सक्रिय हैं, वो बहुत ज्यादा प्रभावी हैं। इसके साथ ही वह बहुत निचले स्तर पर बन रही हैं। निम्न दबाव का क्षेत्र भी बीते पांच दिन से लगातार सक्रिय है, जिससे लगातार नमी आ रही है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में ढेर सारे ऐसे बादल बन रहे हैं, जो वर्षा भी कर रहे हैं और बिजली में गिरा रहे हैं।
- मध्यप्रदेश 21 से 24 लेटिट्यूड में आता है और अभी जो कम दबाव का क्षेत्र बन रहा है, वह 18 से 19 लेटिट्यूड पर बन रहा है, जिसकी वजह से मानसून द्रोणिका का पूर्वी छोर भी नीचे की ओर आ गया है। इसके चलते बादलों का समूह मध्यप्रदेश व विदर्भ के आसपास छाया हुआ है।
पिछले कई दशकों से पृथ्वी की सतह और वातावरण के वैश्विक तापमान में 0.3 से लेकर 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि रिकार्ड की जा रही है। इन वजहों से वायुमंडलीय अस्थिरता और वातावरण में वाष्प की मात्रा पहले से काफी अधिक हो रही है। प्रदूषकों की बढ़ती सांद्रता के कारण मेघ संघनन नाभिक की मात्रा बढ़ गई है। इससे अधिक ऊंचाई तक बनने वालों बादलों या बहुस्तरीय बादलों में एकाएक आवेशन की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं, जो वज्रपात की बढ़ती घटनाओं के लिए उत्तरदायी होते हैं।
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