मध्य प्रदेश

उन्हें सुनाई 1905 से 1947 तक तिरंगे के बदलाव की कहानी

Admin4
10 Aug 2022 10:10 AM GMT
उन्हें सुनाई 1905 से 1947 तक तिरंगे के बदलाव की कहानी
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न्यूज़क्रेडिट; अमरउजाला

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि बच्चों के दुलारे मामा की है तो अपराधियों के खिलाफ सख्त प्रशासक 'टाइगर' की। बुधवार को उनका एक अलग ही चेहरा सामने आया। उन्होंने टीटी नगर के मॉडल स्कूल पहुंचकर बच्चों के बीच मास्टर की भूमिका निभाई। मास्टर भी बने और कहानी सुनाने वाले भी। उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान हर घर तिरंगा अभियान के तहत बच्चों को तिरंगे के सफर की कहानी सुनाई। उन्हें बताया कि तिरंगा मौजूदा स्वरूप में कैसे पहुंचा। 1906 से 1947 तक तिरंगे की यात्रा कैसी रही।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधवार को मॉडल स्कूल पहुंचे। दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। शिवराज मामा की पाठशाला कार्यक्रम में सीएम ने राष्ट्रीय ध्वज की विकास गाथा, महत्व और ध्वज फहराने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों और उसमें आए बदलाव के बारे में बच्चों को बताया। सीएम ने बच्चों को बताया कि हमारा देश आपसी फूट के कारण गुलाम बना था। इसकी आजादी के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान देकर हमें स्वतंत्र कराया। अपने जीवन में इन बलिदानियों को याद रखें। इनसे प्रेरणा लें। आज देश को मरने की नहीं जीने की जरूरत है।

शिवराज ने सुनाया- तिरंगे का सफर

1905: सबसे पहले कलकत्ता की निवेदिता कन्या विद्यालय की छात्राओं ने राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया। इस ध्वज में एक वज्र बनाया गया था, जो शक्ति का प्रतीक था। इसके केंद्र में एक सफेद कमल और बंगाली में वंदे मातरम लिखा हुआ है। यह हमारा पहला राष्ट्रीय ध्वज था।

1906: यह माना जाता है कि भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज सात अगस्त 1906 को कोलकाता में पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था। इसमें लाल, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियां थी। इनके बीच में वंदे मातरम् लिखा था। ऊपर कमल बने थे और नीचे सूरज-चंद्रमा। यह हमारे राष्ट्रीय ध्वज का विकसित होता हुआ स्वरूप था।

1907: इस ध्वज को मैडम भीकाजी कामा और उनके सहयोगी क्रांतिकारियों ने अगस्त 1907 में फहराया। भारत से मैडम कामा को निर्वासित किया गया था। जर्मनी में सोशलिस्ट कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने यह ध्वज फहराया था। विदेशी भूमि पर फहराया जाने वाला यह पहला भारतीय ध्वज था। इस ध्वज में भी हरी, पीली और लाल रंग की पट्टियां थी। ऊपर कमल, बीच में वंदे मातरम् और नीचे सूरज-चंद्रमा बने थे।

1917: भारत में स्व-शासन की स्थापना के उद्देश्य से चलाए जाने वाले होम रूल आंदोलन के प्रमुख भाग के रूप में नया झंडा अपनाया गया। पांच लाल और चार हरी-आड़ी धारियां थी। सप्तऋषि के आकार में सात तारे थे। ब्रिटिश गवर्नमेंट के अंतर्गत ही स्व-शासन के अधिकार भारत को मिले।

1931: कराची में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पिंगली वेंकय्या द्वारा तीन रंगों का ध्वज तैयार किया गया। इस ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। इसमें लाल रंग बलिदान का, श्वेत रंग पवित्रता का और हरा रंग आशा का प्रतीक माना गया। देश की प्रगति का प्रतीक चरखा इसके केंद्र में जोड़ा गया।

1947ः राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इसके शीर्ष पर केसरिया रंग जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इसके मध्य में सफेद रंग है जो शांति और सत्य का प्रतीक है। सबसे नीचे हरा रंग है जो भूमि की उर्वरता, विकास और शुभता प्रदर्शित करता है। ध्वज के केंद्र में चौबीस तीलियों वाला अशोक चक्र है। इस चंक्र का उद्देश्य यह है कि गति में जीवन है और ठहराव में मृत्यु।

यह भी जानें

हमारे राष्ट्रीय ध्वज में लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। इसे 1947 को अंगीकृत किया गया। रचना तिरंगा झंडा (केसरिया, सफेद और हरा) सफेद पट्टी के केंद्र में 24 धारियों के साथ एक गहरे नीले रंग का चक्र।

तिरंगे के रचनाकार पिंगले वेंकय्या है। उनका जन्म 2 अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम के पास भाटलापेन्नुमारू में हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमंता रायुडु और माता का नाम वेंकटरत्नम्मा था। महात्मा गांधी से उन्हें भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करने की प्रेरणा मिली। भारतीय स्वतंत्रता संग्रमा में उनका अभूतपूर्व योगदान रहा।

पहले ध्वज संहिता में यह प्रावधान था कि केवल हाथ से कटा हुआ और हाथ से बनाई खादी का ही राष्ट्रीय ध्वज होगा। अब इसमें संशोधन कर दिया गया है। इसमें यह तय किया गया है कि खादी के अलावा मशीन निर्मित सूती/ पॉलीस्टर/ऊनी/ सिल्क/ खादी के कपड़े से भी बनाया जा सकेगा।

जब भी ध्वज फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहां से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दें।

जहां झंडे का प्रदर्शन खुले में किया जाता है या जनता के किसी व्यक्ति द्वारा ध्वज पर प्रदर्शित किया जाता है, वहां उसे दिन-रात में फहराया जा सकता है।

ध्वज को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय यदि बिगुल बजाया जाता है तो उसे इस बात का ध्यान रखा जाए कि ध्वज को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

ऐसा राष्ट्रीय ध्वज ना फहराए

फटा या मैला ध्वज नहीं फहराया जाता।

ध्वज केवल राष्ट्रीय शोक के समय आधा झुका दिया जाता है।

किसी दूसरे ध्वज या पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा या ऊपर नहीं लगाया जाए, न ही बराबर रखा जाए।

राष्ट्रीय ध्वज पर ना कुछ लिखा जाता ना कुछ छापा जाता है। इन बातों को ध्यान रखें।

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