मध्य प्रदेश

संस्थागत नेतृत्व समागम के समापन पर बोले दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति

Admin Delhi 1
20 Jan 2023 11:12 AM GMT
संस्थागत नेतृत्व समागम के समापन पर बोले दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति
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इंदौर न्यूज़: पहली बार कुलपति बनने पर मैंने कई कुलपति व सीनियर प्रोफेसरों से सलाह ली कि अच्छा कुलपति कैसे बन सकता हूं. सभी ने कहा कि भर्तियां, विस्तार और निर्माण से दूर रहो क्योंकि इनमें कंट्रोवर्सी होती है जिससे तुम्हारे सामने समस्याएं आएंगी. मैंने सोचा देश को विकास की जरूरत है और विकास का रास्ता शिक्षा से ही मिलता है. भर्ती, विस्तार और निर्माण के बगैर तो यूनिवर्सिटी का ही विकास संभव नहीं है, ऐसे तो देश का विकास ही रुक जाएगा. यहां मौजूद सभी कुलपतियों को मेरी सलाह है कि वे भी इन तीनों को अपनी प्राथमिकता पर रखें.

यह बात दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कही. वह अभा संस्थागत नेतृत्व समागम में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि एक लीडर को अपने टीम के प्रति आशा, प्रेरणा, आत्मविश्वास और आदर का भाव रखना चाहिए. बेहतर लीडर के लिए चार सी (कम्युनिकेशन, कमिटमेंट, करेज और कम्पेशन) को जरूरी बताया. जिसमें करुणा का भाव नहीं ऐसा लीडर समाज के लिए खतरनाक है. समागम का समापन झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस, एआइसीटीई के चेयरमैन टीजी सीताराम, प्रदेश की पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर, प्रो. आशुतोष मिश्रा व रजिस्ट्रार अजय वर्मा की उपस्थिति में हुआ. राज्यपाल बैस ने कहा है कि देश की शिक्षा व्यवस्था में बहुत सुधार की जरूरत है.

माइनर डिग्री के कोर्स भी डिजाइन

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. सिंह देश के सबसे युवा कुलपति भी रह चुके हैं. वह मात्र 35 साल की उम्र में प्रोफेसर बने और 45 साल की उम्र में बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी के कुलपति नियुक्त किए गए. एआइसीटीई के चेयरमैन टीजी सीताराम ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत हमने मेजर के साथ माइनर डिग्री के कोर्स भी डिजाइन किए हैं.

एक्सक्लूजिव नहीं, इन्क्लूजिव है हमारी भारतीय संस्कृति: डॉ. गोपाल

रा ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हमारी शिक्षा की व्यवस्था में ऐसा ज्ञान होना चाहिए जिससे विद्यार्थी में अहंकार नहीं बल्कि लोकमंगल का भाव आएं. हमें ऐसी शिक्षा देना होगी जिससे विद्यार्थी क्षमतावान बनकर तैयार हो और इस विश्व का नेतृत्व करें. जब हम अपने देश में शिक्षा की बात कर रहे हैं तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की शिक्षा की स्थिति क्या है? हम राष्ट्रीय विकास और शिक्षा की बात करते हैं तो उसके लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि नेशन का मतलब क्या है. नेशन शब्द जर्मनी से आया. उन लोगों का मानना था कि वे एक्सक्लूजिव है. भाषा, धर्म, संस्कृति के आधार पर अलग-अलग देश बने, लेकिन हमारा यहां ऐसा नहीं है. हमारी संस्कृति इन्क्लूजिव है जहां अलग-अलग भाषा, धर्म के लोग साथ मिलकर रहते है.

वे कहते थे भारत भूखे मरेगा, आज दुनिया को भेज रहे अनाज

डॉ. गोपाल ने कहा, देश को जब आजादी मिल रही थी तब अंग्रेजों ने कहा कि भारत के लोग भूखे मरेंगे क्योंकि यहां प्रशासनिक क्षमता नहीं है. आजादी के समय 40-50 करोड़ की आबादी के लिहाज से अन्न नहीं था. आज हम दुनियाभर को अनाज भेज रहे है. 12665 जहाजों से अनाज भेजा जाता है. हमारे यहां 18 करोड़ टन दूध का उत्पादन है और हरी सब्जियों की भी भरपूर पैदावार हो रही है. आजादी के समय एमबीबीएस की सिर्फ 1 हजार सीट थी जो आज 98 हजार हो गई. तब साक्षरता का प्रतिशत 7 फीसदी था जो अब 80 फीसदी से अधिक है. भारत की शिक्षा नीति की सफलता हमारे अतीत के गौरव को वर्तमान की चुनौतियों के साथ मिलाकर पढ़ाने से है. हमने अमेरिका जैसे देश की कॉपी की तो जो परेशानी अमेरिका भुगत रहा है वह हमें भुगतना होगी.

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