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झाँसी न्यूज़: बुन्देलखंड का आग उगलता तापमान अब मुश्किलें बढ़ाने लगा है. ऐसे में उन पौधशालाओं का भी शिशु की तरह ख्याल रखना बेहद जरूरी होगा जहां छोटे छोटे पौधे भविष्य में वृक्ष बनकर छाया देने का काम करेंगे. कृषि विश्वविद्यालय ने सूचना जारी कर कहा कि तय समय पर सिंचाई करें और पौधों का शिशु की तरह ही ख्याल रखें ताकि गर्मी में सभी पौधे जीवित रहें.
रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने सरकारी और निजी सभी पौधशालाओं के लिए जरूरी सूचना दी है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. पंकज लवानिया तथा डॉ. गरिमा गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र में इस समय का तापमान 41 डिग्री है जो आने वाले समय में 47 डिग्री तक बढ़ सकता है. पौधशालाओं के जीवन के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. पौधशाला के पौधों की जीवन की रक्षा के लिए सिंचाई बेहद जरूरी है.
बुंदेलखण्ड में अभी बहुत पौधशालाऐं बनी हैं. इनमें 4 वन विभाग की और करीब 150 पौधशालाएं लोगों ने व्यवसाय की दृष्टि से संचालित कर रखी है. इनमें बहुत से पौधे है. गर्मी के दिनों में इन पौधों की सिंचाई के लिए तय समय सुबह 9 बजे से पहले या शाम को 5 के बाद करनी चाहिए. सीधे कहा कि दोपहर में न करें.
पौधशाला में कम से कम दिन में एक बार सिंचाई जरूर करें. जिससे नवजात पौधों को उच्च तापमान के प्रभाव से बचाया जा सके.
यह भी करें
पौधशाला में छायाजाल (ग्रीनशेडनेट75) द्वारा छाया प्रबंधन करें. जिससे बाष्पीकरण की दर को कम कर, मृदा नमीं को बचाया जा सके. सफेद चंदन, रक्त चंदन, आमला, हरड़, बहेड़ा, कंजी, पॉपुलर, महुआ, काला सिरिस, सफेद सिरिस, गुलमोहर, देशी बबूल आदि में बीजों द्वारा प्रवर्धन करें. पिछले वर्ष लगे पौधों की क्यारियों को परिवर्तित कर दें, जिससे पौधों की जड़ें जमीन को न पकड़ें. ग्रीष्मकाल में पानी की कमी के कारण दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप पौधे मरने लगते हैं. इस स्थिति से पहले ही क्लोरोपाइरीफास नामक दवा का उचित मात्रा (1.52.0 मि.ली. ) का घोल बनाकर क्यारी को उपचारित करें.