- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- पुराने ट्रांसफॉर्मर...
पुराने ट्रांसफॉर्मर बड़ी परेशानी, नई तकनीक के ट्रांसफॉर्मर जरूरी
इंदौर न्यूज़: स्वच्छ इंदौर ने एक साल में 50 मेगावाट बिजली सोलर से तैयार करने का लक्ष्य तय कर रखा है. लेकिन, इसके पहले जनता के साथ ही सरकारी स्तर पर भी कई दिक्कतों का समाधान ढूंढना जरूरी है. इसमें सबसे बड़ी चुनौती है शहर में बिजली सप्लाई के पुराने संसाधन. इनमें अतिरिक्त बिजली को संभालने के लिए आवश्यक ट्रांसफॉर्मर ही अब तक शहर में नहीं लग पाए हैं. सोलर एक्सपर्ट अक्षय गुप्ता ने समस्याओं के साथ समाधान बताए. गुप्ता ने सबसे पहले इसके लिए मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में बड़े बदलाव की बात कही. गुप्ता से बातचीत के प्रमुख अंश....
सोलर सिटी बनने में कितना समय लगेगा?
सोलर सिटी बनने में कोई बड़ी बाधा नहीं है. हमें सोलर सिटी बनना है तो सबसे पहले घरों में सोलर प्लांट लगाने से जुड़ी परेशानियों को समझना होगा. इनका हल निकाल लिया गया तो उसमें ही हम लक्ष्य से ज्यादा बिजली बना सकते हैं.
किस तरह की परेशानियां आती हैं?
दो तरह की. पहली- वर्तमान में इंदौर ही नहीं, पूरे प्रदेश में सोलर प्लांट लगाने की प्रक्रिया काफी लंबी है. घरेलू प्लांट लगाने के लिए आवेदन के बाद 45 से 60 दिन लगते हैं. बड़े प्लांट (औद्योगिक प्लांट) लगाने में तो प्रक्रिया 90 दिन से भी ज्यादा की हो जाती है. जबकि, अन्य राज्यों में यह प्रक्रिया 15 दिन में पूरी हो जाती है. इस समय को हमें कम करना होगा. इसके लिए कंपनी स्तर पर पॉलिसी बनानी होगी. दूसरी परेशानी यह है कि सोलर प्लांट से बनने वाली बिजली की काउंटिंग सही तरह से नहीं हो पाती. कई बार मीटर रीडिंग करने वाले सही रीडिंग नहीं लेते. इसके लिए नेट मीटर की व्यवस्था को लागू करना होगा.
अन्य प्रदेशों में कम और मप्र में इतना समय क्यों लग रहा?
दरअसल, अभी इंदौर में कई जगह बिजली कंपनी ही सोलर प्लांट के लिए तैयार नहीं है. चूंकि, प्लांट में जरूरत से ज्यादा बिजली बनने पर वह रिवर्स में चलती है. ऐसे में कई बार वह ट्रांसफॉर्मर की क्षमता से ज्यादा हो जाती है. इस कारण समस्या आती है.
ट्रांसफॉर्मर में किस तरह की दिक्कतें आती हैं?
बिजली कंपनी ने जो नए ट्रांसफॉमर लगाए हैं, वे ज्यादा क्षमता के होने के साथ सरप्लस बिजली को संभाल लेते हैं. पुराने ट्रांसफार्मर्स की क्षमता नहीं होती है. ऐसे में कई बार बिजली कंपनी उन ट्रांसफॉर्मर के स्थान पर कनेक्शन की अनुमति नहीं देती. इस कारण पहले ट्रांसफॉर्मर बदलवाने की प्रक्रिया करवानी होती है, जो और ज्यादा परेशानी वाली है. इसलिए नई तकनीक के ट्रांसफॉर्मर को लगाने का काम तेज करना होगा.
छोटे प्लांट के लिए नहीं है रेस्को मॉडल
सोलर पैनल लगाने वाली कई कंपनियों द्वारा प्लांट लगाने का खर्च उठाया जाता है. इसके बदले उसे लगवाने वालों से बिजली की दर तय की जाती है. इस दर पर वे उपभोक्ता से बिजली खरीदती है और कुछ सालों में उसका पूरा पैसा होने पर प्लांट उपभोक्ता को ही सौंप दिया जाता है. इसे रेस्को मॉडल कहते हैं. इस मॉडल पर पीथमपुर में एक-दो कंपनियां काम कर रही हैं. लेकिन, ये केवल बड़े प्लांट पर ही उपलब्ध है. घरेलू प्लांट में कोई कंपनी इस पर काम नहीं कर रही है. इस कारण आम लोगों को इसे लगाने में परेशानी होती है.