मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में ठेकेदारों के लापरवाही से निकल नहीं पाया पोषाहार, कैबिनेट में फैसला होने के बाद भी अटका है मामला

Rani Sahu
4 July 2021 6:25 PM GMT
मध्यप्रदेश में ठेकेदारों के लापरवाही से निकल नहीं पाया पोषाहार, कैबिनेट में फैसला होने के बाद भी अटका है मामला
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मध्यप्रदेश में ठेकेदारों के लापरवाही से निकल नहीं पाया पोषाहार

मध्यप्रदेश में पोषाहार नीति का हल पांच साल बाद भी नहीं निकल सका है। सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते व्यवस्था ही कुपोषित हो गई है। वर्ष 2016 में शिवराज सरकार ने घोषणा की थी कि ठेकेदारों को हटाकर पोषण आहार की जिम्मेदारी स्वसहायता समूहों को दी जाएगी। इस आशय का फैसला कैबिनेट में भी हुआ था, लेकिन यह नीति अभी तक अमल में नहीं आ सकी है।

कांग्रेस-भाजपा दोनों सरकारें समाप्त नहीं कर सकीं ठेकेदारी प्रथा
इस बीच कांग्रेस की सरकार भी आई, लेकिन ठेकेदारी प्रथा जारी रही। सरकार ने पोषाहार संयंत्र भी बना लिए हैं, लेकिन उन्हें शुरू करने की हिम्मत नहीं कर सकी है। 14 साल से चल रही ठेकेदारी प्रथा को लेकर घोटाले के आरोप भी लगते रहे हैं। इसकी पुष्टि आयकर छापों में हुई थी। स्वसहायता समूहों को यह काम मिलेगा तो लाखों महिलाओं को स्वरोजगार मिल सकेगा। इस बार राज्य के बजट में 1495 करोड़ रुपये का प्रविधान पोषाहार के लिए किया गया है।
मध्यप्रदेश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक
मालूम हो, प्रदेश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है। एक सर्वे के अनुसार राज्य में 70 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इनमें नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा चार लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। पोषाहार नीति लागू होने से कुपोषण के संकट से निपटने में मदद मिलेगी लेकिन ठेकेदारी प्रथा के चलते इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं।
ठेकेदार लॉबी से पार पाने में सरकार के वरिष्ठ अधिकारी नाकाम साबित हो रहे हैं। यह स्थिति तब है कि जब महिला स्वसहायता समूहों के हाथ में पोषषण आहार की जिम्मेदारी देने के लिए सात प्लांट बन चुके हैं। आजीविका मिशन के माध्यम से इनके महासंघ भी बनाए गए। कांग्रेस के कार्यकाल में प्लांट एमपी एग्रो को दिए गए। एमपी एग्रो में ठेकेदारों के माध्यम से काम होता है, इससे अप्रत्यक्ष रूप से कमान ठेकेदारों के हाथ ही रही।
अब इसमें बदलाव के लिए प्रस्ताव कैबिनेट में जाना है। इसमें व्यवस्था एमपी एग्रो से लेकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को दी जानी है, लेकिन ठेकेदारों के दबाव में यह प्रस्ताव कैबिनेट तक ही नहीं पहुंच रहा है। मालूम हो, आंगनवाड़ी केंद्रों में छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चे, गर्भवती, धात्री माताओं और किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार दिया जाता है।


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