मध्य प्रदेश

मध्य-प्रदेश: राज्य सूचना आयुक्त ने बड़वानी जिले की RTI की 55 अपील एक सुनवाई में खारिज की, उठे सवाल

Kajal Dubey
12 July 2022 2:53 PM GMT
मध्य-प्रदेश: राज्य सूचना आयुक्त ने बड़वानी जिले की RTI की 55 अपील एक सुनवाई में खारिज की, उठे सवाल
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राज्य सूचना आयुक्त ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानों से संबंधित 55 अपीलों को एक ही लंबी सुनवाई में खारिज कर दिया। आयुक्त के इस आदेश पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
बड़वानी के जहूर खान ने जिले की 55 उचित मूल्य की दुकानों पर 10 बिंदुओं में जानकारी चाही थी। इनमें स्टॉक रजिस्टर, वितरण रजिस्टर, खाता रजिस्टर, पंजी. रजिस्टर, कैशबुक, निरीक्षण पंजी, सतर्कता समितियों का रिकॉर्ड, मासिक और वार्षिक पत्रक के साथ समस्त उपभोक्ताओं के नाम और उनकी पहचान से संबंधित दस्तावेज चाहे गए। यह सारी जानकारी अलग-अलग विषयों से संबंधित थी। सारे मूल आवेदन एक जैसे थे, जिनकी फोटो कॉपियां डाक द्वारा इन दुकानों पर भेजी गई थी। जानकारी या जवाब प्राप्त नहीं होने पर अनुविभागीय अधिकारियों को प्रथम अपील की गई। अनुविभागीय अधिकारियों ने जानकारी देने के आदेश कर दिए। इसके बावजूद जानकारी नहीं मिली तो द्वितीय अपील में ये सारे प्रकरण आयोग में आए। आयोग ने एक ही विभाग और एक ही विषय से संबंधित होने के कारण एक ही बार में इन सबकी सुनवाई तय की।
सुनवाई में हाजिर ज्यादातर लोक सूचना अधिकारियों ने बताया कि उन्हें डाक से आवेदन मिले ही नहीं थे। दुकानों का प्रबंधन भी इस दौरान बदल गया था। चाही गई जानकारी का रिकॉर्ड अतिविस्तृत होने से जुटाने में काफी समय लगा। आयोग के समक्ष उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें सूचना के अधिकार में अपनी भूमिका का समुचित ज्ञान नहीं होने से भी दिक्कत हुई। लेकिन चाही गई जानकारी में से लगभग आधी पोर्टल पर नियमित रूप से सार्वजनिक की जाती हैं। खाता रजिस्टर और सामान्य पंजी का रिकॉर्ड दुकान पर रहता ही नहीं है।
आयोग ने मूल आवेदन को सूचना के अधिकार कानून की धारा 6 (1) के अनुरूप नहीं पाया और कहा कि एक ही आवेदन में अलग-अलग विषयों की बेहिसाब जानकारियों की एकमुश्त मांग और एक जैसे आवेदन अनगिनत शासकीय कार्यालयों में लगाना सूचना के अधिकार का सही उपयोग नहीं है। प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से आए इस कानून की मर्यादा इसके विवेकपूर्ण उपयोग में ही निहित है।
लोक सूचना अधिकारियों को लताड़ लगाते हुए आयोग ने कहा कि 30 दिन की समय सीमा में ऐसे आवेदनों का निराकरण होना चाहिए। वे सब कुछ देने के लिए विवश नहीं हैं, किंतु उन्हें अपनी भूमिका का सही अता-पता होना आवश्यक है। आयोग ने जानकारी उपलब्ध कराने के प्रथम अपीलीय अधिकारियों के आदेश भी विधिसम्मत नहीं माने। आयोग ने कहा कि प्रथम अपीलीय अधिकारियों को यह देखना होगा कि कितनी जानकारी ऑनलाइन पोर्टल पर सार्वजनिक की जा रही है और कितनी ऑफलाइन है। जो जानकारी पहले ही सार्वजनिक की जा चुकी है, आरटीआई में उसका जवाब ही पर्याप्त है।
इस पर राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि सूचना का अधिकार बेलगाम नहीं है। लेकिन बेहिसाब जानकारियों के ऐसे आवेदन बताते हैं कि 16 साल बाद भी लोग यह मानकर चलते हैं कि आरटीआई एक कदम में पूरी सृष्टि नापने का अनियंत्रित अधिकार है। सूचना अधिकारियों की इस कानून के प्रति निरक्षरता चिंताजनक है। ज्यादातर अधिकारियों को अपनी भूमिका का ज्ञान नहीं है और अनुभवी आवेदक उनकी यह कमजोरी भलीभांति जानते हैं।
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