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Jhansi: चिरनिंद्रा में सोया मेडिकल प्रशासन नवजातों की मौतों का जिम्मेदार
झाँसी: बुंदेलखंड में सरकारी चिकित्सा के सबसे बड़े केन्द्र मेडिकल कॉलेज के नीकू वार्ड में आग लगने से हुई 10 बच्चों की मौत की घटना के बाद हर आदमी हैरान है। इतने बड़े अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं से कोई भी अंजान नहीं है लेकिन मेडिकल प्रशासन की यह लापरवाही 10 नवजात बच्चों को लील कर माताओं की गोद सूनी कर जाएगी, यह किसी ने भी सोचा नहीं होगा। घटना के बाद से झाँसी से लखनऊ तक हलचल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद पूरे घटनाक्रम की निगरानी कर रहे हैं और उन्होंने घटना की सूचना मिलते ही डिप्टी सीएम होने के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे बृजेश पाठक के साथ आला अधिकारियो को झाँसी भेज दिया था। उन्होंने मामले की त्रिस्तरीय जांच कराने आदि जैसे बयान देकर मामले में इतिश्री भी कर ली है। विपक्ष ने भी घटनास्थल पर पहुंचकर मृतक बच्चों के अभिभावकों को मुआवजा दिलाने की बात की है लेकिन इनमें से कोई भी चीज न तो उन नवजात बच्चों को जिंदगी दे सकती है और न ही उनके मां बाप की सूनी गोद भर सकती है। घटना के बाद सकते में आए लोगों को रोकने के लिए मेडिकल कॉलेज में सेना पुलिस तक तैनात है लेकिन सवाल ये है कि 10 नवजातों की मौतें मेडिकल प्रशासन का हृदय परिवर्तन कर सकती हैं। अस्पताल की व्यवस्थाओं को आगे दुरुस्त करने को प्रेरित कर सकती हैं। शायद नहीं।
खबर मिली है कि जिस नीकू वार्ड में आग लगी उसमें दो नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष थे। बाहर की तरफ़ कम गंभीर और अंदर की तरफ़ अधिक गंभीर बच्चे रखे जाते थे। अब मेडिकल प्रशासन कह रहा है कि यह हाई ऑक्सीनेटेड क्षेत्र था। वार्ड में शार्ट सर्किट से स्पार्किंग के चलते आग भड़क गई। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक कह रहे हैं कि समय समय पर यहां मॉकड्रिल भी होती रही है ताकि ऐसी खतरनाक घटनाओं को रोका जा सकें लेकिन फिर भी ऐसी दर्दनाक घटना घट गई। प्रत्यक्षदर्शी बता रहे हैं कि वार्ड में हाई ऑक्सीनेटेड वार्ड होने के चलते भी फायर अलार्म ख़राब थे और आग बुझाने के साधन भी। अगर मेडिकल प्रशासन इन छोटी छोटी चीजों के प्रति सजग होता तो आज शायद 10 मांओं की गोद सूनी न होतीं। यहीं नहीं, मेडिकल कॉलेज में अव्यवस्थाओं का हर ओर गज़ब आलम है। रिक्त पदों से लेकर ख़राब मशीनों तक की चिंता करने वाला कोई नहीं है। माना जा सकता है कि यह समय अव्यवस्थाओं पर सवाल उठाने का नहीं है लेकिन इस प्रकार की घटनाओं से सबक नहीं लिया गया तो आगे भी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। मेडिकल में जूनियर डॉक्टर्स की लापरवाही, मरीजो और उनके परिजनों के साथ गुंडागर्दी और मारपीट, ख़राब मशीनों का हवाला देकर प्राइवेट जांचो के लिए मजबूर करना, खुद चिकित्सकों द्वारा मरीजों को निजी नर्सिंग होम्स में ईलाज कराने को प्रेरित करना, तमाम चीजें हैं जो बदलनी चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री आज मेडिकल कॉलेज में इतनी बड़ी घटना के बाद समस्याओं का संज्ञान लेते हैं, उनके समाधान का इंतजाम करते हैं तो इन 10 नवजातों की मौतें शहादत में बदल सकती हैं वरना तो जिला प्रशासन से लेकर मेडिकल प्रशासन मेडिकल को भगवान के हवाले कर सोने में मशगूल रहने में सिद्धहस्त है और निजी नर्सिंग होम्स इस नींद का फायदा उठा कर मरीजों का आर्थिक शोषण करने में।