मध्य प्रदेश

रंगू पहलवान के लोटे से निकली गेर को विश्व धरोहर बनाने के लिए फाइलों की पड़ताल शुरू

Admin Delhi 1
2 March 2023 11:30 AM GMT
रंगू पहलवान के लोटे से निकली गेर को विश्व धरोहर बनाने के लिए फाइलों की पड़ताल शुरू
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इंदौर न्यूज़: रंगपंचमी पर राजबाड़ा क्षेत्र से निकलने वाली रंगारंग गेर की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस बार 8 से ज्यादा गेर निकलने जा रही हैं. इस आयोजन को विश्व की सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास फिर तेज हो गए हैं. इसके लिए जिला प्रशासन अब केंद्र सरकार के संस्कृति विभाग के जरिए यूनेस्को को पूर्व में भेजे प्रस्ताव की जानकारी लेगा. कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने स्पष्ट किया है कि पूर्व में केंद्र के संस्कृति विभाग को गेर का रिकॉर्ड, जुलूस का इतिहास, वीडियो और अन्य विवरण भेजे जा चुके हैं. जल्द ही इस संबंध में मंत्रालय से संपर्क किया जाएगा. मालूम हो, यूनेस्को गेर को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत श्रेणी की सूची में शामिल कर सकता है, क्योंकि इसमें इंदौर के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों के प्रतिभागी शामिल होते हैं. आयोजन में दुनियाभर से लोगों को आकर्षित करने की क्षमता है. कोरोना के कारण गेर को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने की कवायद अधूरी रह गई थी.

अपनी पारंपरिक गेर के किस्से भी नहीं कम:

रंगपंचमी से जुड़े कई किस्से हैं. कवि सत्यनारायण सत्तन ने बताया कि पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरू हुई थी, लेकिन इससे पहले मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे. एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते थे. 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केसरिया रंग घोलकर आने-जाने वालों पर रंग डालते थे. यहीं से गेर का चलन शुरू हुआ. रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठकें करते थे.

गेर को सांस्कृतिक विरासत श्रेणी की सूची में शामिल कराने के लिए वर्ष 2020 में तत्कालीन कलेक्टर लोकेश कुमार जाटव ने प्रस्ताव तैयार करवाया था. गेर के जुलूस की वृत्तचित्र फिल्म बनाकर इसे अमूर्त सांस्कृतिक विरासत श्रेणी सूची में नामांकित करने के लिए यूनेस्को को भेजने की योजना बनाई थी, लेकिन कोरोना ने तैयारियों पर पानी फेर दिया. वर्ष 2020 में गेर नहीं निकाली जा सकी.

बैलगाड़ियों से उड़ाते थे रंग:

इंदौरी गेर की परंपरा 300 साल से चली आ रही है. 100 साल पहले सामाजिक रूप से मनाने की शुरुआत हुई थी. कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकरकाल के समय से चली आ रही है. होलकर राजघराने के लोग रंगपंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूल और रंग-गुलाल लेकर निकलते थे. रास्ते में जो भी मिलता, उसे रंग लगाते. इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था. यही परंपरा साल दर साल आगे बढ़ती रही.

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