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- पराली जलाने के बजाय...
इंदौर न्यूज़: जिला प्रशासन हर साल नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगाता है. इसके बावजूद किसान मूंग की बोवनी की जल्दबाजी में नरवाई जलाने से नहीं चूकते. इससे न केवल किसान खेतों की उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि पशुओं को भूसे के रूप में मिलने वाले खुराक की भी किल्तत पैदा कर रह हैं. ऐसे में यदि किसान चाहें तो नरवाई या पराली का सही उपयोग कर उससे मालामाल भी हो सकते हैं.
1. किसान गेहूं फसल की कटाईके बाद नरवाई से भूसा बना सकते हैं. भूसा जरूरत के मुताबिक अपने पशुओं के लिए जमा कर सकते हैं. इसके बाद भी भूसा बचता है उसे बेचकर अच्छी आमदनी ली जा सकती है. चूंकि अब भूसा कम होने लगा है और इसकी मांग भी है, इस वजह से अच्छे दाम मिल सकते हैं.
2. प्लाईवुड बनाने वाले उद्योगों को भी भूसा बेचकर लाभ लिया जा सकता है. यह भूसा इस उद्योग के बहुत काम आता है.
3.किसान गेहूं भूसा बनाने के बाद बची हुए नरवाई को खेत में ही मिला सकते हैं. इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है. कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से जमीन की जलधारण क्षमता भी बढ़ती है. जमीन की उपजाऊ क्षमता में भी वृद्धि होती है.
4.पराली को सड़ाकर कम्पोस्ट खाद भी बनाया जा सकता है. इसके लिए उस स्थान का चयन करें जहां हवा, धूप, पानी का प्रभाव ज्यादा नहीं हो.
ऐसे समझें नुकसान
नरवाई जलाने से केवल वायु प्रदूषण ही नहीं होता, बल्कि जमीन में नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों के अलावा जमीन की उर्वरक क्षमता भी कम होती है. पराली जलाने से उसके साथ ही केंचुए जैसे फसल मित्र भी जल जाते हैं. पराली लगातार जलाते रहने से फसल उत्पादन भी साल-दर-सालकम होता जाएगा.