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स्वर्णिम इतिहास के कंधों पर वर्तमान के विराट वैभव की गौरवगाथा है इंदौर
इंदौर : एक ऐसा नाम, जो इतिहास के गौरवशाली स्वर्णिम कालखंड को अपने सुदृढ़ पंख बनाकर विकास की ऊंची उड़ान पर है। लोकमाता देवी अहिल्या का यह प्रिय शहर आज देश की 'स्वच्छता राजधानी' के रूप में प्रतिष्ठित है। विंध्याचल और सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं की गलबहियों के बीच और भगवान महाकाल व ओंकारेश्वर की नगरी के मध्य बसा यह शहर अपनी स्थापना के बाद से ही देश-दुनिया में अपनी कीर्ति-पताका फहरा रहा है।
17वीं शताब्दी से लेकर अब तक इस गौरवशाली शहर की विकास यात्रा भी कम रोमांचक नहीं रही। कंपेल परगना के छोटे से कस्बे इंदूर से दुनियाभर में यश अर्जित करने वाले इंदौर ने प्रगति का एक-एक पग इतनी मजबूती से जमाया कि देश के विकसित शहर आज इंदौर से सीख लेने के लिए 'कतारबद्ध' खड़े नजर आते हैं। भौगोलिक व सामरिक स्थिति की वजह से ही यह शहर हर कालखंड में राजा-महाराजाओं की रुचि का केंद्र रहा। मराठों के शासनकाल के साथ इंदौर ने प्रगति-पथ पर तेजी से चलना शुरू कर दिया था। देवी अहिल्याबाई होलकर को इंदौर इतना पसंद आया था कि उन्होंने अपने राजपाट चलाने वाले कार्यालय को कंपेल से इंदौर में स्थापित करवाया था। उसके बाद से ही कान्ह नदी के पार शहर के विस्तार की नींव रखी गई। देवी अहिल्या ने अपने राज्य की राजधानी भले ही महेश्वर को बनाए रखा, लेकिन इंदौर को सैन्य केंद्र और बाद में राजधानी बनाया। उसके बाद तो इंदौर ने विकास की राह पर सरपट दौड़ लगाई।