मध्य प्रदेश

इनर सिटी में देसी तो आउटर में रहेगा ऑस्ट्रिया की तकनीक का सुरक्षा कवच

Admin Delhi 1
10 July 2023 4:55 AM GMT
इनर सिटी में देसी तो आउटर में रहेगा ऑस्ट्रिया की तकनीक का सुरक्षा कवच
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भोपाल न्यूज़: खंडवा रोड निर्माण के लिए 24 घंटे पहाड़ों में छेद कर गावों के बीच से रास्ता निकाला जा रहा है. यहां पहाड़ों को काटकर टनल बनाई जा रही है. शहर के आउटर में पहली बार दो टनल बनाई जा रही है, ताकि घाट सेक्शन खत्म किया जा सके. ऑस्ट्रिया में इजाद की गई न्यू ऑस्ट्रिया टनल मैथड (नेटम) से देश में कई टनल बनाई जा रही है. सिमरोल और बाइग्राम की टनल का निर्माण इसी तकनीक से हो रहा है. वहीं, शहर में टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) तकनीक से मेट्रो के लिए टनल बनाई जाएगी. यह भारतीय तकनीक है. आबादी वाले इलाके के नीचे बनने वाली टनल में मेट्रो दौड़ेगी. इसका सर्वे शुरू हो चुका है. जल्द ही निर्माण एजेंसी तय होगी.

33.4 किमी. तेजाजी नगर से बलवाड़ा तक घाट सेक्शन वर्क

924 करोड़ में सड़क, सुरंग, फ्लाई ओवर बनेंगे

पहली टनल सिमरोल: एनएचआइ द्वारा पहली टनल को आइआइटी के पास बनाना शुरू किया था. इसकी लंबाई 300 मीटर ट्वीन ट्यूब (आने-जाने की अलग टनल) है. सबसे पहले इसी टनल का काम शुरू किया था. यहीं से घाट सेक्शन शुरू होता है. इस टनल का काम अंतिम दौर में है.

दूसरी टनल बाइग्राम: 480 मीटर की टनल बनाई जानी है. 2 माह में एक टनल बनेगी. बाइग्राम में ट्वीन ट्यूब में से अभी एक टनल बनी है. दूसरी का काम जल्द शुरू होगा. 24 घंटे 30 से अधिक कर्मचारी-सुपरवाइजर काम कर रहे हैं. 2025 तक काम पूरा करने का लक्ष्य.

खास है टनल

इंदौर से ओंकारेश्वर पहुंचने में वर्तमान की तुलना में आधा समय लगेगा. अभी दो से ढाई घंटे लगते हैं.

100 किमी प्रतिघंटा तक स्पीड हो सकती है.

भेरुघाट सेक्शन पर दुर्घटनाएं थमेंगी.

जगंलों-पहाड़ों के बीच सफर सुहाना होगा.

सड़क पर एक भी ब्लैक स्पॉट नहीं होगा.

एक्सपर्ट से जानें खासियत

शहरी क्षेत्र में टनल बोरिंग मशीन का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यहां मुरम नरम होती है. ये ठीक बोरिंग मशीन जैसे काम करती है. इसका साउंड जरूर होता है, लेकिन वाइब्रेेशन नहीं होता. मतलब जनता को पता नहीं चलेगा कि जमीन के नीचे टनल बनाई जा रही है. अधिकांश जगह मेट्रो के लिए यही तकनीक अपनाते हैं. चंदन पटेल, टनल डेवलपमेंट एक्सपर्ट

पहाड़ में टनल की गोलाई में निर्धारित दूरी पर 45 एमएम के कई छेद किए जाते हैं. इसमें टेमरॉक मशीन का भी उपयोग करते हैं. कर्मचारी हाथों से पावर जेल और मसाला छेदों में भरते हैं. इसके साथ पतली प्लास्टिक नली जैसे साधन से नॉन एनइडी (नॉन इलेक्ट्रिक डेटोनेटर) डालते हैं. इसके बाद ब्लास्ट किया जाता है. सुमेश बांझल, महाप्रबंधक, एनएचएआइ

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