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इंदौर में होलकर राजवंश की होलिका दहन की परंपरा, 294 साल पुरानी चांदी की पिचकारी
इंदौर में आज भी होलकर राजवंश के ये धरोहर संजो रखी है। चांदी के इन बर्तनों में चांदी की थाल, चांदी की कटोरियां, चांदी का लौटा, चांदी का तरवाना, चांदी के गणेश जी चांदी का जल पात्र, जल चढ़ाने वाला बर्तन और चांदी की दो पिचकारियां भी है। जो अपने आप में अनूठा है। खास बात यह है कि इन चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल होलकर काल से चला आ रहा है। चांदी की यह पिचकारी सन् 1728 की है। जिनका इस्तेमाल होलकर राजा करते थे।
होलकर राजवंश की चांदी की दो पिचकारी आज भी इंदौर में मौजूद है। एक पिचकारी करीब डेढ़ फीट की तो दूसरी 2 फीट की है। इनका वजन 150 से 200 ग्राम है। इन पिचकारियों पर नक्काशी भी है। जबकि एक पिचकारी पर घड़े का आकर भी देखने को मिलता है। इसके अलावा चांदी के जलपात्र की बात करें तो (चल चढ़ाने वाला) वह भी कुछ खास है। इस पात्र में सबसे ऊपर गरुड़ देव नजर आते हैं जिन पर शेष नाग की छाया है। वहीं, निचले हिस्से में दो मोर की कलाकृति देखने को मिलती है। इसके साथ ही चांदी की कटारियों और चांदी के तरवाना पर मोड़ी भाषा में वजन भी लिखा हुआ है। होलिका दहन पर भी इन चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाएगा। चांदी की पिचकारी से भगवान और देवी अहिल्या बाई होलकर की गादी पर रंग-गुलाल डाला जाएगा।