मध्य प्रदेश

2 साल बाद भी नहीं मिली मदद, सिस्टम नहीं बनने दे रहा कृष्ण कुमार को कलेक्टर

Admin4
23 Jun 2022 4:26 PM GMT
2 साल बाद भी नहीं मिली मदद, सिस्टम नहीं बनने दे रहा कृष्ण कुमार को कलेक्टर
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रीवा। जिले के मऊगंज में रहने वाले 21 वर्षीय कृष्ण कुमार केवट के हौसलों की दाद देनी पड़ेगी, कृष्ण कुमार के बचपन से दोनों हाथ नहीं है लेकिन फिर भी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने बीते 2 साल पहले 12वीं की कक्षा में 82 प्रतिशत अंक ला कर सबको चकित कर दिया था. अब आप सोच रहे होंगे कि बिना हाथों के दिव्यांग कृष्ण कुमार ने 12वीं की परीक्षा कैसे अच्छे अंको से पास कर ली, दरअसल कृष्ण कुमार ने हाथों से नहीं अपने पैरों से उड़ान भरी और 12वीं की कक्षा में उत्तीर्ण हुए. कृष्ण कुमार के बुलंद हौसलों के आगे मजदूर पिता की गरीबी भी आड़े नहीं आई, पढ़ाई के लिए हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचने वाले इस होनहार छात्र ने उत्कृष्ट विद्यालय मऊगंज के टॉप टेन छात्रों में अपनी जगह बनाई थी. कृष्ण कुमार ने परीक्षा पास करने के बाद कलेक्टर बनने की इच्छा जाहिर की थी, जिससे वह लोगों की सेवा कर सकें, लेकिन सरकारी सिस्टम के आगे कृष्ण कुमार की उड़ान अब धीमी हो चुकी है.

कृष्ण कुमार ने पैरों से भरी थी उड़ान: होनहार छात्र कृष्ण कुमार केवट रीवा जिले के मऊगंज तहसील स्थित छोटे से कस्बे हरजाई मुड़हान गांव के निवासी हैं, उनके पिता रामजस पेशे से किसान हैं वह अधिया में जमीन लेकर अपना और अपने परिवार का गुजर बसर करते हैं. बेहद गरीब परिवार में जन्मे कृष्ण कुमार की चार बहनें और तीन भाई हैं, दिव्यांग कृष्ण कुमार के दोनों हाथ मां की कोख में ही गल गए थे. जिसके बाद बढ़ती उम्र के साथ कृष्ण ने अपने पैरों को ही हाथ बना लिया, और 12वीं की परीक्षा पैरों से लिखकर 82% अंक अर्जित करके सबको चौंका दिया था. अपने तीन भाई और चार बहनों के बीच कृष्ण कुमार ने ना केवल चलना सीखा बल्कि पढ़ाई में भी खूब मन लगाया, उन्होंने बचपन से ही पैरों से सारे काम करने का हुनर खुद ही विकसित किया. कृष्ण कुमार ने कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की परीक्षा अपने पैरों से ही लिखकर उत्तीर्ण की हैं.

सरकार की ओर से नहीं मिली कोई मदद: सीएम शिवराज से संवाद के दौरान दिव्यांग कृष्ण कुमार ने आगे की पढ़ाई, कलेक्टर बनने की बात और कृत्रिम हाथों को लगाए जाने की मांग की थी, जिस पर सीएम शिवराज ने संभागीय कमिश्नर राजेश जैन को कृष्ण कुमार का जयपुर या देश के किसी अन्य राज्य में बेहतर इलाज करा कर कृत्रिम हाथ लगाए जाने के निर्देश दिए थे. जिसके बाद छात्र को स्कूल विभाग की ओर से इंदौर के एक अस्पताल में इलाज के लिए भी ले जाया गया, इस दौरान परीक्षण के बाद कृष्ण कुमार को निराशा ही हाथ लगी. डॉक्टरों का कहना था कि "कृत्रिम हाथ तो लगा दिए जाएंगे लेकिन कृष्ण कुमार काम नहीं कर पाएंगे." इसके अलावा सरकार की ओर से अन्य कोई आर्थिक मदद भी छात्र को नहीं मिल पाई है. फिलहाल कृष्ण कुमार आगे की पढ़ाई कर आज भी कलेक्टर बनने की चाह तो रखते हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते वह इस मुकाम तक पहुंच पाने में असफल साबित होते दिखाई दे रहे हैं.

पहले तो मेरे साथ भगवान ने मजाक किया और अब सरकारी सिस्टम ने. सीएम ने हरसंभव मदद करने का वादा तो किया था लेकिन वो वादे अब तक पूरे नही किये गए जिसकी वजह से लोग मेरा मजाक बना रहे हैं. मेरी सीएम शिवराज से गुजारिश की है कि फिलहाल मुझे कोई नौकरी दे दी जाए, जिससे मैं अपने परिवार का भरण पोषण कर सकूं और आगे की अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकूं. ताकि मैं बाद में एक आईएएस बनकर लोगों की भी सेवा कर सकूं.

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