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- 7 साल में 50 हजार...
इंदौर न्यूज़: गोपालन योजना सहित पशु धन की वृद्धि और पशु पालन के लिए तमाम योजनाएं हैं. गो संवर्धन बोर्ड है, जीव जंतु कल्याण बोर्ड है, डेयरी उद्योग है लेकिन फिर भी विदिशा जिले में गो वंश आश्चर्यजनक रूप से कम होता जा रहा है. वह भी तब जब विदिशा की पहचान कृषि प्रधान जिले के रूप में होती है. पिछले साल सात में जिले में गोवंश में 49 हजार 675 की कमी आई है. यानी गाय, बैल, बछड़े और सांड आदि करीब 50 हजार की संख्या में कम हुए हैं, जबकि गोपालन को बढ़ावा देने की बातें खूब हो रही हैं. वहीं डेयरी उद्योग में गायों की जगह भैंसों ने ले ली है और इसी अवधि में जिले में करीब 9 हजार से ज्यादा भैंस वंशीय पश्ुाओं का इजाफा हुआ है.
अंकुश नहीं: पशु पालक नीतेश अग्रवाल का मानना है कि गो वंश के कम होने का सबसे बड़ा कारण गोवंश की बड़े पैमाने पर तस्करी, गोशालाओं पर शासन-प्रशासन का ध्यान न देना और गायों का पालन काफी महंगा होना है. गो पालन के खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, इससे सस्ता तो दूध पड़ता है तो लोग किलो-दो किलो दूध बाजार से खरीदना बेहतर समझते हैं, गाय पालना तो काफी महंगा हो गया है. गांव में भी पशु पालन काफी कम हो गया है, शहर में तो लोगों के पास न तो समय है और न ही जगह. यही कारण है कि गोवंश और सभी पशु वंश कम होता जा रहा है.
गाय पालना हुआ काफी महंगा हुआ
वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ नरेंद्र शुक्ला का मानना है कि खेती के मशीनीकरण और रसायनिक खादों का उपयोग बढऩे से गांव में भी पशु धन काफी कम हुआ है. खासकर गांव में पशुओं को पालना भी काफी कम हुआ है, नई पीढीं का गांव से शहर की ओर पलायन हुआ है, इससे पशु नहीं पाले जा पा रहे हैं. फिर गाय को पालना भी काफी महंगा हो गया है, भूसा, चारा, खली, चुनी सब महंगा हो गया है. ऐसे में लोगों का गायों और अन्य पशु धन से भी मोह भंग हो गया है.