मध्य प्रदेश

21 साल की लड़की बनी सरपंच, जानिए 'पंचायत' वेबसीरीज से कितनी अलग होती है असली पंचायत

Tulsi Rao
27 Jun 2022 1:36 PM GMT
21 साल की लड़की बनी सरपंच, जानिए पंचायत वेबसीरीज से कितनी अलग होती है असली पंचायत
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मध्य प्रदेश के उज्जैन में 21 वर्ष की लड़की लक्षिका डागर मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की सरपंच (Pradhan) बनी हैं. आमतौर पर ग्राम पंचायतों में पुरुषों का दबदबा होता है और इसमें भी अधेड़ उम्र के पुरुष ज्यादा होते हैं. कुछ महिलाओं को सरपंच बनने का अवसर मिलता भी है तो आमतौर पर उनकी जगह उनके पति ही ज्यादातर निर्णय लेते हैं. यह व्यवस्था इतनी मजबूत है कि सरपंच (Sarpanch) के पति के लिए एक अलग नाम गढ़ दिया गया है, जिसे 'प्रधान पति' कहा जाता है. ग्राम पंचायतें गांव के विकास संबंधी तमाम निर्णय लेती हैं और इन सब निर्णयों की जिम्मेदारी सरपंच की होती है. आपने हाल ही में वेबसीरीज 'पंचायत' (Panchayat Web Series) देखी होगी. इस लेख में जानते हैं असली ग्राम पंचायतें वेबसीरीज में दिखाई गई तस्वीर से कितनी मिलती-जुलती और कितनी अलग होती हैं

पहले बात लक्षिका डागर की. लक्षिका डागर सिर्फ 21 वर्ष की उम्र में मध्य प्रदेश की सबसे कम उम्र की सरपंच बनी हैं. उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी खास है, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज में वह इतनी कम उम्र में सरपंच बनी हैं. लक्षिका कहा कहना है, 'मैं सबसे कम उम्र की युवा सरपंच बनने जा रही हूं, इस बात की मुझे बहुत खुशी है. मैं चाहती हूं कि गांव में अच्छा विकास हो. मैं सभी की समस्याओं को सुलझा सकूं, यही उम्मीद है.' लक्षिका को अपने कार्यकाल से जैसी उम्मीदें हैं, उनकी पंचायत को भी उनसे ऐसी ही उम्मीदें हैं. यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि लक्षिका उम्मीदों पर खरी उतरती हैं या नहीं

पर्दे की पंचायत

'पंचायत' वेबसीरीज में आपने देखा होगा कि गांव की प्रधान मंजू देवी हैं, जो अंगूठा छाप हैं. उनके पति ब्रिज भूषण दूबे ही उनके तमाम अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं और गांव के लोग उन्हें ही सरपंच जी कहकर पुकारते हैं. अभिषेक त्रिपाठी पंचायत दफ्तर में सचिव हैं. गांव के विकास आदि से संबंधित तमाम फैसले 'प्रधान पति' यानी प्रधान जी ही लेते हैं. यहां तक कि सचिव भी उन्हें प्रधान जी ही कहकर पुकारते हैं. कई वार्ड मेंबर भी हैं, जो प्रधान पति को ही प्रधान मानते हैं और उनके ही फैसले को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है. असली सरपंच मंजू देवी कभी पंचायत दफ्तर नहीं जाती

असली पंचायतें कैसी होती हैं

'पंचायत' वेबसीरीज में पंचायत की जो तस्वीर दिखाई है वह काफी हद तक ठीक भी है. जहां आरक्षण के तहत या किसी अन्य वजह से महिला पंचायत चुन ली जाती हैं, वहां अधिकतर जगह उनके अधिकारों का इस्तेमाल उनके पति करते हैं. प्रधान पति ही आमतौर पर वार्ड मेंबरों की बैठक में हिस्सा लेते हैं और गांव से संबंधित ज्यादातर फैसले भी प्रधान पति ही लेते हैं. हालांकि, ऐसा नहीं है कि महिलाएं पंचायत या किसी और शासन व्यवस्था को नहीं चला सकतीं या नहीं चला रही हैं. लेकिन ज्यादातर महिला ग्राम प्रधानों की स्थिति मंजू देवी जैसी ही है.पंचायत के बारे में जरूरी जानकारी

हमारे देश में 1992 से पंचायती राज अधिनियम (Panchayati Raj Act-1992) लागू है. संविधान के 73वें संसोधन के जरिए इसे संवैधानिक दर्जा मिला है और 24 अप्रैल 1993 से यह देशभर में लागू है. इसे स्थानीय स्वशासन भी कहा जाता है और यह त्रीस्तरीय (ग्राम पंचायत, पंचायत समिती और जिला परिषद) शासन व्यवस्था है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण ग्राम पंचायत होती है. इसके मुखिया को ग्राम प्रधान या सरपंच कहा जाता है. जिस तरह से देश का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति होता है, उसी तरह गांव का प्रथम नागरिक सरपंच होता है. गांव के विकास की पूरी जिम्मेदारी सरपंच के ही कंधों पर होती है. हर पांच साल में सरपंच या प्रधान का चुनाव होता है. गांव के लोग सीधे वोट करके अपने सरपंच का चुनाव करते हैं. इसमें गांव के सभी निवासी मतदाता होते हैं. सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार को सरपंच या प्रधान चुना जाता है.

पंचायतों में SC/ST और OBC को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों आरक्षण मिलता है. इसके अलावा महिलाओं को एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण मिला है. पंचायतों में वित्तीय सुधार के लिए राज्य वित्त आयोगों का गठन हुआ है और राज्य चुनाव आयोग यहां हर पांच साल में चुनाव की जिम्मेदारी को निभाता है.

सरपंच या प्रधान बनने के लिए जरूरी योग्यताएं

सरपंच बनने के लिए न्यूनतम उम्र 21 वर्ष होना जरूरी है.

उम्मीदवार का नाम उस ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में होना चाहिए.

राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अंतर्गत व्यक्ति पंचायत सदस्य निर्वातिच होने के लिए योग्य हो.

कोई भी सरकारी कर्मचारी प्रधान का चुनाव नहीं लड़ सकता.

कई राज्यों में प्रधान बनने के लिए 8वीं-10वीं पास या साक्षर होना जरूरी है. हालांकि, सभी राज्यों में ऐसी बाध्यता नहीं है.

सरपंच को क्या अधिकार मिले हैं

सरपंच को ग्रामसभा या ग्राम पंचायत की बैठक बुलाने का अधिकार होता है.

प्रधान या सरपंच ही ग्राम पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करता है.

ग्राम पंचायत की सभी वित्तीय और कार्यकारी शक्तियां प्रधान के पास होती हैं.

ग्राम प्रधान के पास ग्राम पंचायत के अधीन कार्यरत कर्मचारियों के कार्यों की निगरानी और उनकी देखरेख का भी अधिकार है.

सरपंच के कार्य क्या हैं?

गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखना

सभी कार्यों में SC/ST, पिछड़े वर्गों और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना

ग्रामीणों के बीच आपसी विवादों का निपटारा करना

गांव के विकास के कार्य करना

सरकारी योजनाओं का सही-सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना

राशन वितरण व्यवस्था (PDS) की निगरानी करना

मनरेगा जैसी विकास योजनाओं का सही-सही क्रियान्वयन कराना

गांव में सड़कों और रास्तों का ठीक तरह से रखरखाव करना

बिजली की व्यवस्था करना और रास्तों पर सोलर लाइट आदि लगाना

गांव में प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना

गांव में खेल का मैदान बनाना और खेल आयोजनों को बढ़ावा देना

गांव में स्वच्छता बनाए रखना, ग्रामीणों के लिए शौचालयों का निर्माण कराना

सिंचाई के साधनों का व्यवस्था करना, ताकि ग्रामीण अधिक से अधिक उपज ले सकें

श्मशान और कब्रिस्तान आदि का रखरखाव करना

आंगनबाड़ी केंद्र को सुचारू रूप से चलाने में कार्यकर्ताओं की मदद करना

प्रधान को कितनी सैलरी मिलती है?

सरपंच की सैलरी क्या होती है (sarpanch ko kitni salary milti hai)? आप भी यही जानना चाहते होंगे. तो बता दें कि अलग-अलग राज्यों में राज्य सरकार के नियमों के मुताबिक प्रधान की सैलरी अलग-अलग होती है. यहां तक कि कुछ राज्यों में सैलरी का प्रावधान ही नहीं है. उत्तर प्रदेश में 5 हजार रुपये जबकि हरियाणा में सरपंच को 3 हजार रुपये मानदेय दिया जाता है.

सरपंच को हटाया भी जा सकता है

यदि ग्राम पंचायत के लोग ग्राम प्रधान से खुश नहीं हैं. वह अपने दायित्वों को सही से नहीं निभा पा रहा है तो एक प्रक्रिया के तहत उसे अपने पद से हटाया जा सकता है. सबसे पहली और जरूरी बात यह कि सरपंच को पहले दो साल के अंदर नहीं हटाया जा सकता और अगर उसके कार्यकाल के सिर्फ 6 महीने बचे हैं तो उस स्थिति में भी प्रधान को हटाने की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. ग्राम पंचायत के सदस्य और गांववासी प्रधान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं, यदि उन्हें दो तिहाई बहुमत मिल जाता है तो सरपंच को उसके पद से हटाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए भी पहले जिला पंचायती राज अधिकारी या संबंधितक अधिकारी के पास लिखित में शिकायत देनी होगी. इस लिखित शिकायत में ग्राम पंचायत के आधे सदस्यों के दस्तखत होने अनिवार्य हैं. इसमें स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि आप सरपंच को उसके पद से क्यों हटाना चाहते हैं. दस्तखत करने वाले ग्राम पंचायत सदस्यों में से तीन को जिला पंचायतीराज अधिकारी से समक्ष उपस्थित होना भी अनिवार्य है. रिपोर्ट सही पाए जाने पर जिला पंचायती राज अधिकारी गांव की बैठक बुलाते हैं, जिसकी सूचना सरपंच और ग्रामवासियों को कम से कम 15 दिन पहले दी जाती है. इस अविश्वास प्रस्ताव पर ग्रामसभा के सदस्यों, वार्ड मेंबर और सरपंच को बहस का मौका दिया जाता है. बाद में मतदान कराया जाता है. यदि अविश्वास प्रस्ताव के समर्थम में दो तिहाई सदस्य होते हैं तो उन्हें पद से हटा दिया जाता है.

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