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कोर्ट में यौन शोषण की पीड़िता का आरोप
यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप गर्भवती हुई एक दुष्कर्म पीड़िता ने गुरुवार को केरल हाईकोर्ट के समक्ष आरोप लगाया कि मामले के जांच अधिकारी (आईओ) भ्रूण के डीएनए परीक्षण के लिए कदम नहीं उठा रहे थे. पीड़िता ने आरोप लगाया है कि कोर्ट के 13 अक्टूबर के आदेश की आड़ में जांच अधिकारी उसका आईओ डीएनए परीक्षण कराने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठा रहा. इस आदेश में अदालत ने कहा कि जहां अपराध दर्ज किया गया है उसकी बजाये दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकारी उसे और उसके नाबालिग बच्चे को पुलिस सुरक्षा प्रदान करें.
उसने कोर्ट से कहा कि वह गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती है और इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए मामले के जांच अधिकारी को कदम उठाने होंगे. हाई कोर्ट ने 13 अक्टूबर को पुलिस सुरक्षा आदेश पारित किया था जब पीड़िता ने दावा किया था कि संबंधित थाने के एसएचओ सहित दो अधिकारी आरोपी के साथ मिलकर उसे परेशान कर रहे थे.
इसके बाद न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने निर्देश दिया कि मामले के लंबित रहने या उसमें पारित किए गए अंतरिम आदेश 'उचित जांच और मामले में की जा रही अन्य आवश्यक कार्रवाई के रास्ते में नहीं आऐंगे.' इस निर्देश के साथ अदालत ने मामले को 26 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. इस मामले में पीड़िता ने आरोप लगाया है कि न केवल आरोपी बल्कि कुछ पुलिस अधिकारी भी उसे परेशान कर रहे हैं और इस वजह से उसे अपने एक करीबी रिश्तेदार के यहां छिपकर रहने के लिए मजबूर है.
पीड़िता का चरित्र खराब है, यह कह कर नहीं छूट सकता आरोपी: कोर्ट
अभी कुछ दिन पहले ही केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि किसी रेप के आरोपी को यह कहकर छोड़ा जा सकता कि पीड़िता का चरित्र खराब था. खास तौर पर उसके पिता को. केरल हाई कर्ट ने एक पिता को अपनी बेटी के रेप के आरोप में दोषी ठहराते हुए ये बात कही. बताया जा रहा है कि लड़की के पिता ने उसका बार-बार रेप किया जिससे वह गर्भवती हो गई.
हाई कोर्ट ने कहा कि जब एक पिता अपनी बेटी के साथ बलात्कार करता है, तो यह एक गेमकीपर के शिकारी बनने या ट्रेजरी गार्ड के डाकू बनने से भी बदतर है. न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने यह टिप्पणी तब की जब पीड़िता के पिता ने दावा किया कि उसे मामले में झूठा फंसाया जा रहा है क्योंकि उसकी बेटी ने स्वीकार किया है कि उसने किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाए थे.
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