केरल के त्रिशूर की रहने वाली डॉ. प्रिया सीताराम आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में कंसल्टेंट फिजीशियन हैं। करीब 30 साल तक परिवार की अपेक्षाओं को पूरा करने और दुनिया से अपनी पहचान छुपाने के बाद उन्होंने साल 2018 में एक बड़ा फैसला लिया। प्रिया ने हॉर्मोन थेरेपी और सर्जरी की मदद से अपना जेंडर बदलने की प्रक्रिया शुरू की। बड़ी बात यह है कि इसमें न केवल उनके माता-पिता, बल्कि सहकर्मियों और मरीजों ने भी साथ दिया। त्रिशूर में जन्मी डॉ. प्रिया का नाम जिनु ससिधरन रखा गया था। पर इस नाम के साथ उनकी असली पहचान ने बहुत संघर्ष किया। प्रिया कहती हैं, "बचपन में हम जो अंदर महसूस करते हैं, वही बाहर दिखाते हैं। यह जीवन का सबसे मासूम वक्त होता है। मैं अपने माता-पिता से हमेशा यही कहती थी कि मुझे लड़की बनना है, लड़कियों की तरह रहना है। पर उन्हें लगता था कि यह मेरा बचपना है और समय के साथ सब बदल जाएगा।"
डॉ. प्रिया का कहना है कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बचपन से ही जेंडर और सेक्स के बारे में शिक्षा देना जरूरी है। इससे बच्चों में स्टिग्मा और कंफ्यूजन दूर होगा और वे अपने परिवार को भी शिक्षित कर सकेंगे।
प्रिया के अनुसार, इन विषयों पर जानकारी न होने के कारण ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का संघर्ष दोगुना हो जाता है। वे न केवल शारीरिक रूप से परेशान होते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी कठिनाइयों का सामना करते हैं। "मैं खुशनसीब हूं जो मेरे माता-पिता ने मुझे आगे बढ़ाया, पढ़ाया-लिखाया। ये मेरी सक्सेस स्टोरी है कि मैं खुद को शिक्षित कर अपने परिवार को शिक्षित कर सकी। पर 90% ट्रांसजेंडर्स को समाज स्वीकार नहीं करता। इससे लोग गलत राह पर चलने लगते हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी ज्यादा जागरूक, सहयोगी और मददगार होगी।"