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बेंगलुरू, (आईएएनएस)| एक युवा डॉक्टर ने अपने लिव-इन पार्टनर को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। लेकिन वह नहीं जानता था कि उसकी यह हरकत उसी की मौत का कारण बन जाएगी। इस मामले ने सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को लेकर एक नई बहस छेड़ दी।
जानकारी के मुताबिक, डॉक्टर ने अपने लिव-इन पार्टनर को अन्य युवक के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था। इस दौरान उसने उनकी प्राइवेट वीडियो भी बना ली थी, जो बाद में सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी से शेयर कर दी।
मामला बेंगलुरू के बेगुर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया। इस मामले ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। पुलिस जांच से पता चला कि डॉक्टर विकास और प्रतिभा की शादी तय हो गई थी। दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे, लेकिन इस बीच प्रतिभा को अन्य युवक के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख डॉ विकास को काफी गुस्सा आया और उसने उनकी प्राइवेट वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर दी।
जब इस बात का पता प्रतिभा को चला तो उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर विकास को सबक सिखाने का प्लान बनाया और उसे बुरी तरह पीटा। घायल अवस्था में विकास को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल बदला लेने के लिए हथियार के तौर पर किए जाने के के बारे में पूछे जाने पर बेलागवी के पुलिस आयुक्त एमबी बोरालिनगैया ने आईएएनएस से कहा कि यह चलन जोर पकड़ रहा है और यह बड़ी चुनौती है।
बोरालिनगैया ने कहा, मुझे लगता है कि केवाईसी, जो कई मोचरें पर है, उसे सोशल मीडिया में भी अपनाया जाना चाहिए। कोई भी कुछ नकली नामों के साथ इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर आ जाता है। मामले को गहराई से देखने की जरूरत है, लेकिन सवाल किस कीमत पर है?
उन्होंने कहा कि इसके लिए सख्त सजा की जरूरत है। आधार प्रमाणीकरण जैसे यूजर को तुरंत ट्रैक करने के लिए कुछ डेटा होना चाहिए। लोग इन अपराधों को काफी हल्के में लेते है। उनके लिए यह एक बटन क्लिक करने जैसा है।
मनोवैज्ञानिक डॉ ए. श्रीधर ने कहा कि जिस तरह से युवाओं में सोशल मीडिया द्वारा रिश्तों को परिभाषित किया जाता है, उस पर अधिक ध्यान देने और विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि यह एक मनोरोगी प्रवृत्ति है और मीडिया के लिए ऐसी प्रवृत्तियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की अधिक गुंजाइश है। आप हिंसक फिल्में देखते हैं। आप देखेंगे और इसके साथ प्रयोग करने का प्रयास करेंगे। इस दौरान आप के अंदर कोई भावना नहीं है, कोई डर नहीं होगा।
युवा मनोवैज्ञानिक रूप से कठिन समय से गुजर रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है। वे जाने-अनजाने और भी हिंसक लोगों से जुड़ जाते हैं। उनके पास कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। वे तकनीक पर भरोसा कर रहे हैं।
आज के सभी परि²श्यों के अलावा, अपराध की प्रकृति और मीडिया का ध्यान जो उन्हें मिल रहा है, वह उनके लिए प्रचार है। हम 'महाभारत' को देखते हैं तो उसमें द्रौपदी को जब सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र किया जा रहा था, तो उन्होंने शपथ ली थी कि वह दुशासन का खून पीएगी, जिसने उसकी साड़ी खींची थी।
श्रीधर बताते हैं कि इसके बाद युद्ध चला, जिसमें कई लोगों की जान गई। कईयों के अंग काटने के उदाहरण हैं। स्वभाव से हिंसा मानवीय भावनाओं का एक हिस्सा है।
उन्होंने कहा, हम सभी नई दिल्ली के तंदूर मामले के बारे में भी जानते हैं, जहां युवती को मारकर उसके शरीर के अंगों को तंदूर में जला दिया गया। बेंगलुरु में, एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से जुड़े एक प्रोफेसर और उनके बेटे ने 15 साल पहले इसी तरह के अपराध को अंजाम दिया था।
वे बताते हैं, अगर आप सभी सुपरहिट हिंदी फिल्मों को देखें, तो बदला लेने वाली फिल्मों की संख्या सबसे अधिक है। आज के दौर में तकनीक ने सोशल मीडिया का निर्माण किया है, अगर आक्रामकता दिखाई जाए तो हर व्यक्ति अपने तरीके से महसूस करता है।
मीडिया को जो खबरें मिल रही हैं, वह सब पुलिस का बयान है। आप नहीं जानते कि वह आदमी सच कह रहा है और पुलिस द्वारा काल्पनिक होने की संभावना है। इसे सत्यापित करने की बहुत कम संभावना है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल भयानक मानवीय भावनाओं को सनसनीखेज बनाने के लिए किया जा रहा है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राजलक्ष्मी अंकलगी ने कहा कि सोशल मीडिया का एक सकारात्मक और नकारात्मक पहलू भी है। आप क्या चुनते हैं यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। सोशल मीडिया कई अभियानों की सुविधा देता है, जिससे आप अपने मुद्दों को देश के कोने-कोने में फैला सकते है। इसमें आपको भारी संख्या में लोगों का समर्थन भी हासिल होगा।
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