कर्नाटक

नई रोजगार नीति : कर्नाटक में होगी तीन साल में 7,50,000 नौकरियां

Deepa Sahu
23 July 2022 8:29 AM GMT
नई रोजगार नीति : कर्नाटक में होगी तीन साल में 7,50,000 नौकरियां
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कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) राज्य के लोगों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के मौके बनाने जा रही है।

कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) राज्य के लोगों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के मौके बनाने जा रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने नई रोजगार नीति (New Employment Policy of Karnataka Government) तैयार की है। कैबिनेट ने शुक्रवार को इस पॉलिसी को मंजूरी दे दी। अगर सरकार इस पॉलिसी पर ठीक से अमल करती है तो कर्नाटक में बेरोजगारी में काफी कमी आएगी।

कर्नाटक के लॉ मिनिस्टर जेसी मधुस्वामी ने बताया कि राज्य में बड़ी संख्या में रोजगार के मौके पैदा करने के लिए सरकार टेक्सटाइल्स, लेदर और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर पर फोकस करेगी। इसके लिए कंपनियों को सरकारी की तरफ से इनसेंटिव दी जाएगी।उद्यमों को नए निवेश पर सरकार की तरफ से रियायत और इनसेंटिव दी जाएगी। इनसेंटिव कितनी होगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेश से नौकरी के कितने मौका पैदा होंगे। सरकार नए इनवेस्टमेंट या ऐक्सपैंशन प्लान को मंजूरी देने से पहले यह देखेगी कि उससे रोजगार के कितने मौका पैदा होंगे।एक्सपर्ट्स का कहना है कि नौकरियों के मौके लोकल लोगों तक सीमित करने से विवाद पैदा हो सकता है। पिछले साल हरियाणा सरकार ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में लोकल लोगों को 75 फीसदी रिजर्वेशन के लिए कानून बनाया था। लेकिन, इस पॉलिसी को लेकर विवाद होने पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की रोक को खारिज कर दिया था। उसने हाईकोर्ट से इस मसले पर विचार करने को कहा था। साथ ही राज्य सरकार को कहा था कि जब तक इस मामले में हाईकोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, वह उन कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करे, जिनके यहां नॉन-लोकल एंप्लॉयीज काम करते हैं।

रोजगार की नई पॉलसी को कर्नाटक सरकार की मंजूरी से एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश निर्माण में माइग्रेंट लेबरर (प्रवासी मजदूर) अहम भूमिका निभाते हैं। उसने यह भी कहा था कि उनके अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को प्रवासी मजदूरों को बगैर राशन कार्ड अनाज देने का निर्देश दिया था। इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया ता कि 11 जुलाई तक रजिस्टर्ड असंगठित मजदूरों या प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब 28 करोड़ थी।
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