कर्नाटक

मुस्लिम बुद्धिजीवीने कहा- अब बंद हो हिजाब पर सियासत, हाई कोर्ट ने भ्रम की स्थिति को किया दूर

Rani Sahu
15 March 2022 5:26 PM GMT
मुस्लिम बुद्धिजीवीने कहा- अब बंद हो हिजाब पर सियासत, हाई कोर्ट ने भ्रम की स्थिति को किया दूर
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हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सुधारकों ने कहा कि अब इसे लेकर हो रही सियासत का पटाक्षेप कर देना चाहिए।

नई दिल्ली। हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सुधारकों ने कहा कि अब इसे लेकर हो रही सियासत का पटाक्षेप कर देना चाहिए। छात्राओं और स्कूल-कालेज को मोहरा नहीं बनाया जाना चाहिए। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने न्यायालय के फैसले का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि चंद अराजकतत्व और छोटी सोच के नेता अपने निजी फायदे के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने से बाज आएं। जो लोग भारत की फिजा में फूट डालो और गंदी राजनीति करो की तर्ज पर जहर फैला रहे हैं, उन पर कड़ी कार्यवाई होनी चाहिए।

वहीं, झारखंड कांग्रेस के विधायक डा. इरफान अंसारी ने विवादित बयान दिया है। विधानसभा के बजट सत्र में भाग लेने आए विधायक ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले पर वे कुछ नहीं कहना चाहते, पर लगता है कि भाजपा अब कोर्ट भी चला रही है। वहीं, इस मसले पर झारखंड में आरएसएस के प्रांत कार्यवाह संजय कुमार ने कहा कि विद्यालयों में यूनिफार्म की एकरूपता दिखनी चाहिए। सभी बच्चों को नियम मानना चाहिए। कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है।
एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक माजिद तालिकोटि, मोहम्मद अफजाल व गिरीश जुयाल ने कहा कि स्कूल-कालेज में छात्र यूनिफार्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं। मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने कोर्ट की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी और पीएफआइ के जो लोग हिजाब का राजनीतिकरण कर रहे थे और लोगों के दिमाग में जहर घोल रहे थे उन्हें जवाब मिल गया है। मुस्लिम पर्सनल बोर्ड और तथाकथित उलेमाओं व मौलानाओं को यह समझना चाहिए कि तुष्टिकरण और भेदभाव का समय अब निकल चुका है।
हाई कोर्ट ने कुरान की आलोक में सही फैसला दिया
एमआरएम महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय संयोजिका शालिनी अली और बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक बिलाल उर रहमान ने कहा कि इस्लाम में यह कहीं नहीं कहा गया है कि नकाब या हिजाब लगाएं। दोनों ने यह स्पष्ट किया कि हर स्थान का अपना ड्रेस कोड होता है और उसको मानना उस स्थान से जुड़े सभी लोगों का कर्तव्य होता है। इस्लाम यह कहीं नहीं सिखाता है कि आप अपनी मर्जी से किसी भी स्थान या संस्थान का कानून तोड़ें। वहीं, शिक्षाविद फिरोजबख्त अहमद ने कहा कि हाई कोर्ट ने कुरान की आलोक में सही फैसला दिया है। धर्म और शिक्षा का घालमेल उचित नहीं है।
हिजाब मामले में कोर्ट का फैसला कुबूल नहीं
फैसले पर इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद और जमीयत उलमा-ए-हिंद ने असहमति जताई है। दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि पर्दा इस्लाम का अहम हिस्सा है। यह कर्नाटक हाई कोर्ट का निर्णय स्वीकार नहीं है। मुस्लिम संगठनों को इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस्लाम में पर्दा फर्ज है और कुरान का हुक्म है। वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने इस फैसले को देश और मुसलमानों के लिए नुकसानदायक बताया। कहा कि मुस्लिम महिलाओं की मान्यताओं और अवधारणा में सदियों से पर्दा व शर्म का बड़ा महत्व रहा है। इसे केवल अदालत के फैसले से मिटाया नहीं जा सकता है।
अदालत का निर्णय स्वागत योग्य
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के केस की पैरोकारी करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता फराह फैज ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि हिजाब, तलाक-ए-बिदत, बहुविवाह व हलाला आदि कुप्रथाएं कुछ मुस्लिम संस्थाओं ने महिलाओं पर थोप रखी हैं। जिस कारण मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों के शिकंजे में कैद रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हिजाब यदि इस्लाम का मूलभूत हिस्सा होता तो यह भी आर्टिकल 25 में उसी तरह संरक्षित होता, जैसे तोहीद, नमाज, हज, रोजा और जकात संरक्षित हैं।
संविधान के आर्टिकल 21 में राइट टू च्वाइस की आजादी
लखनऊ के आल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 21 में राइट टू च्वाइस की आजादी है। जो लड़कियां अपनी मर्जी से हिजाब पहनना चाहती हैं उन्हें रोकना ठीक नहीं है। जहां तक कर्नाटक का मामला है इसमें राजनीति की गई है, जिससे लड़कियों की शिक्षा पर बुरा असर पड़ा है। यह मसला कोर्ट जाने के बजाए स्कूल प्रशासन के साथ बैठकर सुलझाया जा सकता था। हम अदालत के आदेश का सम्मान करते हैं।
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