कर्नाटक

आचार्य देवेंद्रसागर- अपेक्षा भंग होने की पीड़ा सहना मनुष्य की नियति

Rani Sahu
21 Feb 2022 4:34 PM GMT
आचार्य देवेंद्रसागर- अपेक्षा भंग होने की पीड़ा सहना मनुष्य की नियति
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बसवनगुड़ी के जिनकुशलसूरि दादावाड़ी में आयोजित धर्मसभा में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा

बेंगलूरु. बसवनगुड़ी के जिनकुशलसूरि दादावाड़ी में आयोजित धर्मसभा में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिसे कभी न कभी, किसी न किसी से कोई अपेक्षा नहीं रही होगी। मानव जीवन में सभी को अपेक्षाएं रहती हैं, लेकिन अपेक्षा का बदला उपेक्षा किसी को न मिले। ऐसा कदाचित ही होता है। जब व्यक्ति की अपेक्षाएं पूर्ण हो जाती हैं तो वह आनंदित हो जाता है, लेकिन जब उसकी अपेक्षाएं भंग होती हैं अथवा पूरी नहीं होती है तो वह अंदर से टूट जाता है। उसे आघात लगता है, वह पीडि़त हो जाता है। यह जरूरी नहीं कि व्यक्ति की सारी अपेक्षाएं पूर्ण हो ही। साथ ही मानव के लिए यह भी संभव नहीं है कि अपेक्षाएं रखे ही न। अपेक्षाओं के बूते पर ही तो वह आगे बढ़ता है। अपेक्षाओं के अभाव में जीवन व्यर्थ है। अपेक्षाएं मन का मोह है। चाहे व्यक्ति की अपेक्षाएं पूरी न हों, परन्तु वह अपेक्षा रखता जरूर है। अपेक्षा भंग होने की पीड़ा सहना उसकी नियति है। माता-पिता बच्चों से, बच्चे माता-पिता से, पति, पत्नी से, पत्नी, पति से, गुरु, शिष्य से, शिष्य, गुरु से दोस्त को दोस्त से अपेक्षाएं रहती ही हैं। उन्होंने कहा कि अपनों से अपेक्षाएं होना होता मानवीय स्वभाव का हिस्सा है. पर ये अपेक्षाएं आप के दुख का कारण न बनें, इसके लिए इन की सीमा निर्धारित करें, फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपनी लाइफ में खुश रहना चाहता है तो किसी से ज्यादा अपेक्षा न करे. हमें किसी से भी कोई अपेक्षा रखे बिना ही जीने की आदत डालनी चाहिए, तभी हमारी सभी समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएंगी. यह एक कठिन कार्य है पर इस के लिए एक छोटी सी कोशिश तो की ही जा सकती है। ज्यादा अपेक्षा रखना खुद को तनाव में डालना है क्योंकि एक के बाद एक अपेक्षाओं का ग्राफ बढ़ता ही जाता है। जीवन में बहुत सारे दुखों का कारण भी अपेक्षा ही है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह हर किसी से अपेक्षा करता है और कभी कभी ये अपेक्षाएं जरूरत से ज्यादा हो जाती हैं। ऐसा होने से जब हमें हमारी ये अपेक्षाएं पूरी होती नहीं दिखाई देतीं तब क्रोध, क्षोभ, निराशा और दुख हमारे साथी बन जाते हैं।


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