कर्नाटक

कर्नाटक में एक मंदिर ने कुरान की आयतें पढ़कर उत्सव मनाने की परंपरा को बनाये रखा

Kunti Dhruw
17 April 2022 6:55 PM GMT
कर्नाटक में एक मंदिर ने कुरान की आयतें पढ़कर उत्सव मनाने की परंपरा को बनाये रखा
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कर्नाटक में हाल में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं के बीच सद्भाव की एक मिसाल पेश करते हुए.

बेंगलुरु, कर्नाटक में हाल में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं के बीच सद्भाव की एक मिसाल पेश करते हुए हसन जिले के बेलूर स्थित चेन्नाकेशव मंदिर ने वर्षों से चली आ रही उस परंपरा को बनाये रखा जिसके तहत 'रथोत्सव' की शुरुआत कुरान की आयतें पढ़कर की जाती है।

परंपराओं का पालन करते हुए डोड्डा मेदुरु के खाजी सैयद सज्जाद बाशा ने 13 अप्रैल को दो दिवसीय रथोत्सव के पहले दिन कुरान की आयतों को पढ़ा, जिसके बाद रथ को खींचा गया। वहां के अधिकारियों के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है कि मंदिर के मेले में कुरान की आयतों को पढ़ने की परंपरा कब शुरू हुई। उन्होंने बताया कि हालांकि मंदिर नियमावली, जो 1932 की है, में इस परंपरा के बारे में उल्लेख है जिसका आज तक पालन किया जा रहा है। रथोत्सव में हजारों लोग इकट्ठा हुए थे जिसमें भगवान विष्णु के अवतारों में से एक, भगवान चेन्नाकेशव को रथ में ले जाते हुए देखा गया था। बाशा ने मंदिर के अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और लोगों की मौजूदगी में कुरान की आयतें को पढ़ा था।
बाशा ने कहा, ''मैं पिछले 50 वर्षों से इस त्योहार पर कुरान की आयतों को पढ़ रहा हूं। यह प्रार्थना करने के लिए किया जाता है कि चेन्नाकेशव स्वामी सभी के लिए अच्छा करें। हम सभी चाहे हिंदू हों या ईसाई या मुसलमान, एक साथ मिलकर शांति से रहने चाहिए और हमारे बीच कोई मतभेद नहीं होना चाहिए।'' कार्यक्रम में शामिल हुए पूर्व मंत्री एवं जनता दल (सेक्युलर) के विधायक एच डी रेवन्ना ने कहा कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे जारी रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ''सभी समुदायों - हिंदू, मुस्लिम, ईसाई- के लोगों को एक साथ शांति से रहना चाहिए। शायद यही वह उद्देश्य हो सकता है जिसके साथ परंपरा शुरू की गई थी। आइए किसी भी ताकत को हमें विभाजित करने की अनुमति न दें।''
एक स्थानीय निवासी ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से रथोत्सव का आयोजन नहीं हुआ था, लेकिन इस बार सभी परंपराओं का पालन करते हुए इस त्योहार को भव्य तरीके से मनाया गया। एक अधिकारी ने बताया कि हालांकि, हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (मुजराई) विभाग ने संबंधित हितधारकों और पुजारियों से सुझाव लिया था और इसके बाद परंपरा के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया गया।
उन्होंने कहा कि गैर-हिंदू व्यापारियों को भी स्टॉल लगाने और उत्सव में भाग लेने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने कहा कि विवाद के बीच इस साल लगभग 15 मुस्लिम व्यापारियों ने अपनी दुकानें लगाई। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में सांप्रदायिक तनाव की कुछ घटनाएं सामने आई है। इसकी शुरुआत हिजाब विवाद से हुई थी। इसके बाद हिंदू धार्मिक मेलों में गैर-हिंदू व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया और फिर हलाल मांस का बहिष्कार करने और मस्जिदों में लाउडस्पीकर बंद करने का अभियान चलाया गया।
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