झारखंड

अपनी जमीन बचाने के लिए तीर चलाना सिख रहे ग्रामीण

Renuka Sahu
12 Oct 2022 1:59 AM GMT
Villagers learning to shoot arrows to save their land
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न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in

राजधानी के मेसरा इलाके में तीर-धनुष चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. ट्रेनिंग देने वाले दो लोग हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजधानी के मेसरा इलाके में तीर-धनुष चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. ट्रेनिंग देने वाले दो लोग हैं. एक लोकल तो दूसरे दुमका से आये हैं. ट्रेनिंग लेने वाले मेसरा क्षेत्र के ही ग्रामीण हैं. इस ट्रेनिंग का मकसद क्या है? मकसद है-उलगुलान. भला क्यों? क्योंकि इन्हें (ग्रामीणों को) अपनी जमीन बचानी है. वह भला क्यों? क्योंकि बीआईटी मेसरा प्रबंधन मानता है कि जिस जमीन पर ये लोग रह रहे हैं, वह उसकी है. वह उन ग्रामीणों को वहां से हटाना चाहता है और अपना विस्तार करना चाहता है. यह बात गांव वालों को मंजूर नहीं. इसकी मुखालफत करने के लिए गांव के बच्चे, महिलाएं, पुरुष हर दिन तीर धनुष चलाने की बीरिकियां सीख रहे हैं, ताकि अपने पूर्वजों की जमीन बचा सकें. यह उस झारखंड में हो रहा है, जहां सीएनटी (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम) और एसपीटी (संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम) जैसे सख्त कानून के साथ-साथ पांचवी अनुसूची का भी प्रावधान है.

ट्रेनिंग लेता पुरुषों का दल
रैयत विस्थापित संघ के अध्यक्ष और पूर्व मुखिया लखिंदर पाहन ने शुभम संदेश को बताया कि 1964 में बीआईटी मेसरा ने कुछ ग्रामीणों की लगभग 20 एकड़ भूमि ली थी. अब पिछले कुछ वर्षों से बीआईटी प्रबंधन यह दावा करता फिर रहा है कि उसका स्वामित्व 479 एकड़ भूमि पर है. संस्थान इस भूमि पर अपने संस्थान का विस्तार करना चाहता है, लेकिन ग्रामीण कहते हैं कि संस्थान के दावे गलत हैं. 20 एकड़ भूमि ही गांव वालों ने दी थी, 479 एकड़ नहीं. अब कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, यह तो जांच में पता चलेगा लेकिन अपनी जमीन पर कोई और कब्जा कर ले, यह गांव वालों को बर्दाश्त नहीं है. तीर-धनुष सीखना उसी डिफेंस की एक प्रक्रिया है.
पुरखों की जमीन को बचाने के लिए पांच गांवों के 250 ग्रामीणों ने रैयत विस्थापित मंच तैयार किया है. इसी मंच के जरिये ग्रामीण बैठकें करते हैं और अपने अधिकार की रक्षा के लिए रणनीति बनाते हैं. अगर बीआईटी अपना विस्तार करता है तो मेसरा, रुदिया, हुम्बई, पंचोली और नयाटोली गांव के सैकड़ों लोगों को अपनी जमीन से मालिकाना हक छोड़ना पड़ेगा. इसके लिए ग्रामीण तैयार नहीं हैं.
मेसरा पूर्वी से नवनिर्वाचित वार्ड सदस्य और विस्थापित मंच के सदस्य मनोज पाहन के परिवार की लगभग 50 एकड़ से ज्यादा भूमि बीआईटी अपने कब्जे में ले चुकी है. इसमें सरना, मसना, हड़गड़ी और भुइंहरी प्रकृति की जमीन भी शामिल हैं. मनोज पाहन के अनुसार, विकास हो. हमें विकास से परेशानी नहीं है. हमें बीआईटी के विस्तार से भी परेशानी नहीं है. लेकिन हमसे बलपूर्वक जमीन लेने की कोशिश की जा रही है. हम उसी का विरोध कर रहे हैं. अभी हम लोग शांति की राह पर हैं. लेकिन, अगर जरुरत पड़ी तो तीर-धनुष उठाने से भी पीछे नहीं हटेंगे. इसे लेकर हमने बीआईटी मेसरा प्रबंधन से उनका पक्ष लेना चाहा, लेकिन किसी ने प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.
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