झारखंड
'उर्दू' संविधान में जोड़ी गयी भाषा, झारखंड में जनजातीय भाषाओं को दे रही विशेष पहचान
Deepa Sahu
20 Feb 2022 9:00 AM GMT
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झारखंड में इन दिनों भाषा विवाद एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है.
झारखंड में इन दिनों भाषा विवाद एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है. धनबाद और बोकारो में जिला स्तरीय नियुक्ति परीक्षा की क्षेत्रीय भाषा सूची में भोजपुरी और मगही को जोड़ने के बाद यह विवाद हुआ था. अब इन दोनों भाषाओं को संबंधित जिलों से हटाकर विवाद खत्म करने का काम प्रयास हुआ है. वहीं अब सभी जिलों में उर्दू को क्षेत्रीय भाषा की सूची में जोड़े जाने के बाद विवाद उत्पन्न हुआ है. कई लोग अब उर्दू को क्षेत्रीय भाषा में जोड़े जाने के विरोध में हैं. वहीं बोकारो और धनबाद जिलों से भोजपुरी और मगही भाषा को हटाने के बाद प्रदेश भाजपा अब आंदोलन के मूड में है. लेकिन इन सब से अलग पूरे विवाद में दो बातों को देखने की जरूरत है.
आठवीं अनुसूची में शामिल उर्दू को लेकर लगा तुष्टिकरण का आरोप
आज हेमंत सरकार पर एक भाषा को लेकर तुष्टिकरण का आरोप लग रहा है. यह तुष्टिकरण सभी जिलों में उर्दू भाषा को क्षेत्रीय भाषाओं के सूची में जोड़े जाने और दो जिलों से भोजपुरी और मगही को हटाये जाने के बाद लगा है. यह सर्वविदित है कि 'उर्दू' भारतीय संविधान में जोड़ी गयी एक भाषा है. वहीं कार्मिक द्वारा जारी जनजातीय भाषाओं की अधिसूचना में सबसे अधिक 18 जिलों में संथाली भाषा को जोड़ा गया है. संथाली भी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ी गयी भाषा है.
जनजातीय युवाओं को मिलेगा सीधा फायदा
जिला स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा में पहली बार जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह देने का काम हुआ है. हर जिलों में सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषाओं को तरजीह दिया गया है. भोजपुरी और मगही आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है. यह भाषा सबसे अधिक संख्या में पलामू प्रमंडल में बोली जाती है. कार्मिक द्वारा जारी अधिसूचना में स्पष्ट है कि इस प्रमंडल के दो जिलों पलामू और गढ़वा में भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में जोड़ा गया है. ऐसा होने के बाद पहली बार स्थानीय युवा अपनी-अपनी मूल भाषा में प्रतियोगिता परीक्षा देंगे. साफ है कि इसका सीधा फायदा कम्पीटिशन की तैयारी कर युवाओं को मिलेगा.
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