झारखंड

निशानी है यह अस्पताल! कई आंदोलनों के बाद हुआ था शुरू, अब बना खंडहर

Admin4
17 July 2022 1:43 PM GMT
निशानी है यह अस्पताल! कई आंदोलनों के बाद हुआ था शुरू, अब बना खंडहर
x

पाकुड़. बिहार के बंटवारे से पहले पाकुड़ जिले में जिस रेफरल अस्पताल को शुरू करने के लिए उस समय के लोगों ने कई आंदोलन और अपनी निजी जमीन तक सरकार को दे दी थी, आज वह अस्पताल सरकारी उदासीनता की वजह से खंडहर बनकर रह गया है. दरअसल हम बात कर रहे हैं पाकुड़ जिले के महेशपुर (सीलमपुर/चांदपुर) के रेफरल अस्पताल की, जो झारखंड में बिहार की निशानी बनकर खड़ा तो है. लेकिन, इसकी बदहाली देखकर अब इसके अस्तित्व पर सवाल भी जरूर उठने लगे हैं.

दरअसल 100 बेड के महेशपुर चांदपुर रेफरल अस्पताल की नींव 1982 में रखी गयी थी. इस अस्पताल में निर्माण और जीर्णोद्धार के नाम पर करोड़ों रुपये भी खर्च हो चुके हैं. लेकिन, फिर भी इस अस्पताल की स्थिति को देखकर मन में सवाल उठता है कि क्या यह सच में अस्पताल है? पिछले कई सालों से बंद पड़े इस अस्पताल को अर्जुन मुंडा ने अपनी सरकार के दौरान इसकी मरम्मती कराकर इसका दोबारा उद्घाटन तो कराया था. लेकिन, सरकार बदलते ही फिर से अस्पताल की सूरत भी बदल गयी और धीरे-धीरे यह बंद हो गया.

निजी जमीन पर हुआ था अस्पताल का निर्माण

बता दें, बिहार राज्य की निशानी महेशपुर प्रखंड के चांदपुर में स्थित रेफरल अस्पताल है जिसके निर्माण को लेकर कई आंदोलन हुए. कई बार जिले के लोगों ने बिहार सरकार के विरोध में हल्लाबोल करते हुए कई बार धरना दिया. कई आंदोलनों के बाद 1982 में पांच रेफरल अस्पताल राजमहल, जामताड़ा, महेशपुर चांदपुर सहित अन्य दो जिलों को बिहार सरकार ने रेफरल अस्पताल की स्वीकृति दी थी, जिसमे 1982 को महेशपुर चांदपुर में पाकुड़ जिले के पहले रेफरल अस्पताल की नींव रखी गई. जानकारों के अनुसार उस दौरान समाजसेवी महेशपुर चांदपुर के निवासी दिवंगत जगरनाथ मुर्मू, बनेश्वर किस्कू और मंगल किस्कू ने रेफरल अस्पताल के लिए अपनी तीन एकड़ निजी जमीन भी दी थी. उनकी ही जमीन पर रेफरल अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू शुरू था.

स्थानीय लोगों के अनुसार वर्ष 1988 तक अस्पताल का कार्य पूरा कर लिया गया था. अस्पताल बनने से जिले वासियों को कुछ दिनों के लिए राहत मिली थी. लोगों को लगा था कि अब सुविधा के अभाव में किसी मरीज की मौत नहीं होगी. लेकिन, लोगों की यह उम्मीद कुछ ही समय बाद निराशा में बदल गयी है. उस दौरान यहां के नेता बिहार से अलग झारखंड राज्य बनाने की मांग में अधिक व्यस्त हो गए और किसी ने इस रेफरल अस्पताल की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया.

15 नवंबर 2000 को झारखंड तो अलग राज्य बन गया. लेकिन, पाकुड़ के इस रेफरल अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में मरीजों की मौत होती रही. इसको लेकर स्थानीय लोग फिर से विरोध पर उतर आए थे जिसको देख झारखंड राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने अस्पताल की रिपेयरिंग कराई और दोबारा उद्घाटन कर लोगों को आश्वासन दिया कि बहुत जल्द यहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी.

1 घंटे के लिए पहुंचते थे डॉक्टर

तब अर्जुन मुंडा ने कहा था कि रेफरल अस्पताल में महेशपुर प्राथमिक उपचार केंद्र से चिकित्सक इलाज के लिए आएंगे. जल्द ही स्थायी चिकित्सकों की नियुक्ति की भी जाएगी. इसके बाद महेशपुर से 1 घंटे के लिए चिकित्सक चांदपुर पहुंचने लगे. करीब तीन वर्षों तक यही सिलसिला जारी रहा. लेकिन, उसके बाद धीरे-धीरे अस्पताल बंद हो गया.

सांसद-विधायक भी नहीं देते हैं ध्यान

वर्तमान में यह रेफरल अस्पताल खंडहर में तब्दील होकर असमाजिक तत्वों का डेरा बनकर रह गया है. ग्रामीणों का कहना है कि पाकुड़ जिले में अस्पताल के अभाव में लोगों की जान जा रही है. लेकिन, यहां के सांसद विजय हांसदा और स्थानीय विधायक प्रो स्टीफन मरांडी स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी की समस्या को लेकर कभी रुचि नहीं दिखाते हैं, जिसका दंश यहां की जनता भुगत रही है.

अस्पताल को फिर शुरू करने की मांग

ग्रामीणों का कहना है कि यदि अभी भी महेशपुर चांदपुर रेफरल अस्पताल को मरम्मत कर शुरू कर दिया जाए तो पाकुड़ जिले के मरीजों को पश्चिम बंगाल नहीं जाना पड़ेगा. स्थानीय लोगों ने हेमंत सोरेन सरकार से महेशपुर चांदपुर रेफरल अस्पताल को फिर शुरू कराने की मांग की है ताकि इलाके के लोगों का सही तरीके से इलाज हो सके.

Next Story