झारखंड

झारखंड में है बाबा गाजेशवर नाथ महादेव का पीताम्बरी शिवलिंग, यहां नंदी के पैरों के निशान भी हैं मौजूद, जानें इसकी पौराणिक मान्यता

Renuka Sahu
3 May 2022 3:29 AM GMT
There is Pitambari Shivling of Baba Gajeshwar Nath Mahadev in Jharkhand, footprints of Nandi are also present here, know its mythological belief
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फाइल फोटो 

झारखण्ड के संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिले में स्थित दूसरे बाबा धाम या मिनी बाबा धाम के नाम से प्रसिद्ध 'बाबा गाजेश्वर नाथ' धाम जिसे 'शिवगादी' भी कहा जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखण्ड के संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिले में स्थित दूसरे बाबा धाम या मिनी बाबा धाम के नाम से प्रसिद्ध 'बाबा गाजेश्वर नाथ' धाम जिसे 'शिवगादी' भी कहा जाता है. यह एक अत्यंत प्राचीन और पौराणिक मान्यताओं वाला मंदिर है. यहां इस मंदिर के पास प्रकृति ने दोनों हाथों से अपने उपहार बांटे हैं. यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है. इस वजह से यहां सैलानी सालों भर आते हैं और 'बाबा गाजेश्वर नाथ' के दर्शन करने के साथ यहां की मनोहारी दृश्यों का आनंद भी लेते हैं.

195 सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद मिलता है मंदिर का दर्शन
यहां राजमहल की पहाड़ियों के बीच झर-झर गिरते झरने के मध्य एक गुफा मंदिर है. साहिबगंज जिले के बरहेट प्रखंड से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर दूर-दूर के लोगों के लिए आस्था का अद्भुत केंद्र है. यहां मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को 195 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है. इन सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद ही मंदिर के दर्शन हो पाते हैं. यह मंदिर पहाड़ी पर स्थित है ऐसे में यह एक टूरिस्ट प्लेस भी है.
मंदिर के प्रवेश द्वार पर है विशाल वटवृक्ष
यहां मंदिर (गुभा) के प्रवेश द्वार के ऊपर एक दुर्लभ वट वृक्ष भी मौजूद है. माना जाता है कि बोधगया के बाद यहां ही यह अक्षय वट वृक्ष है. इसे यहां के लोग मनोकामना कल्पतरु (वट वृक्ष) के नाम से पूजते हैं. इसकी जटाएं ऐसी मानों भगवान शंकर के जटाएं लहलहा रही हो. इस कल्पतरु की जड़ में पत्थर बांधा जाता है इसे लेकर मान्यता है कि यहां पत्थर बांधने से बाबा गाजेश्वर नाथ भक्त की हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं. पास में ही झर-झर गिरता झरना है. जिसे देखकर एहसास होता है मानो शिव की जटा से अमृत की धारा बह रही हो. यहां श्रद्धालु जब दर्शन करने आते हैं तो इस पवित्र गुफा में प्रवेश से पहले इस झरने की धारा उन्हें पवित्र कर देती है.
गर्भ गृह में है बाबा गाजेशवर नाथ महादेव का पीताम्बरी शिवलिंग
गर्भ गृह (गुफा) में बाबा गाजेशवर नाथ महादेव का पीताम्बरी शिवलिंग स्थित है. जहां शिवलिंग के ठीक ऊपर चट्टानों से बारहों महीने बाबा के ऊपर जल की बूंदें टपकती रहती हैं. मानों प्रकृति स्वयं बाबा का जलाभिषेक कर रही हो. शिवलिंग के ठीक सामने मां पार्वती और नंदी का प्रतिमा स्थित है. यहां गुफा के अंदर शिव और पार्वती के दोनों पुत्र भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा भी स्थित है.
यहां भगवान शंकर के बैल नंदी के पैर के निशान भी हैं मौजूद
गर्भ गृह (गुफा) में शिवलिंग के पास एक और गुफा है. इसको लेकर मान्यता है कि पहले ऋषि मुनि इसी रास्ते से उत्तर वाहिनी गंगा राजमहल से जल लाकर बाबा का अभिषेक करते थे. अभी इस गुफा का मुख बंद कर दिया गया है. इस मंदिर के बाहर झरने से गिरते जल जाकर एक शिवगंगा तक पहुंचते हैं. यहां एक चट्टान पर नन्दी के दो पैर के निशान है. यहां इस पैर के निशान पर सालों भर पानी मौजूद रहता है.
शिवगादी को लेकर प्रचलित पौराणिक मान्यता
इस बाबा गाजेश्वर नाथ महादेव के शिवलिंग की स्थापना को लेकर मान्यता है कि इसे गजासूर नामक दैत्य ने स्थापित किया था जो महिषासूर का पुत्र था. इसका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है. कहा जाता है कि गजासूर ने भगवान शिव की तपस्या यहीं हजारों वर्षों तक अंगुठे के बल पर खड़े होकर किया और फिर उस वरदान मिला. इसके बाद वह अत्याचारी हो गया. तब ऋषि मुनियों की पुकार पर भगवान शंकर ने उसका संहार किया था लेकिन उसे मरते-मरते यह वर प्राप्त हुआ कि तेरे द्वारा स्थापित यह शिवलिंग अब तेरे ही नाम से जाना जाएगा. यहां नंदी के पैर के बारे में कहा जाता है कि नंदी पर सवार शंकर ने जब गजासूर का संहार किया तो नंदी दो पैरों पर खड़ा हो गया और उसके पैर के निशान चट्टान पर पड़ गए. इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि महाभारत काल में अर्जुन को भगवान शंकर का दर्शन इसी देवाना पर्वत पर प्राप्त हुआ था. बताया जाता है कि 16वीं शताब्दी में राजा मानसिंह के द्वारा इस मंदिर में पूजा-अर्चना की गई और तब से यहां लोग आने जाने लगे. यहां के आदिवासियों की आस्था इस मंदिर में काफी है और उन्होंने ही इस मंदिर का नाम 'शिवगादी' अर्थात 'शिव का घर' रखा. यहां तक आने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन बरहरवा जंक्शन है.
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