झारखंड

राज्य के विकास के लिए दी जमीन, खुद हो गए उपेक्षित, जानिए विस्थापितों का दर्द

Renuka Sahu
11 Sep 2022 1:44 AM GMT
The land given for the development of the state, itself was neglected, know the pain of the displaced
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न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in

शहर और राज्य का विकास हो, लोगों को रोजगार मिले और आर्थिक स्थिति सुधरे, यह सोचकर बोकारो स्टील प्लांट निर्माण के लिए लोगों ने अपनी जमीन दी. बो

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शहर और राज्य का विकास हो, लोगों को रोजगार मिले और आर्थिक स्थिति सुधरे, यह सोचकर बोकारो स्टील प्लांट निर्माण के लिए लोगों ने अपनी जमीन दी. बोकारो स्टील प्लांट तो स्थापित हो गया. पूरे देश में यहां के उत्पाद की सप्लाई होने लगी, कंपनी के साथ-साथ सरकार को भी फायदा हुआ, मगर प्लांट के लिए अपनी जमीन देने वाले ही उपेक्षित हैं. उतरी विस्थापित क्षेत्र के सैकड़ों परिवार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. लगभग 20 गांव के ग्रामीण आज तक ना तो पंचायत में शामिल हो पाए और ना ही निगम क्षेत्र में. जिसके कारण न केवल इनकी समस्याएं यथावत रह गई, बल्कि इन्हें पंचायती राज में शामिल होने का अधिकार भी आज तक नहीं मिला. बोकारो में अबतक तीन बार पंचायत चुनाव संपन्न हुआ. मगर यहां के लोग न तो चुनाव लड़ सकें और ना ही वोट दे सकें. सबसे मजेदार बात यह है कि यह लोग विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाग लेते हैं, लेकिन पंचायत और निगम चुनाव में भाग नहीं ले पाते हैं. बता दें कि राजस्व गांव के 44 टोला की आबादी लगभग एक लाख है. आज तक गांव के ग्रामीणों को राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा संचालित विकास योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया.

सीएम ने भी किया था वादा
ग्रामीणों का कहना है कि पिछले चुनाव में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सेक्टर-9 में चुनाव प्रचार के दौरान आए थे. उन्होंने वादा किया था कि इन 20 गांवों को पंचायत में शामिल करा लिया जाएगा. लेकिन सीएम बनने के बाद उन्होंने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया. इन गांवों की समस्याएं यथावत बनी हुई है.
मयस्सर नहीं है बुनियादी सुविधाएं
यहां के ग्रामीणों को आज तक बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं है. जिन लोगों का घर मिट्टी का था, उन्हें ना तो इंदिरा आवास मिला और ना ही उन्हें विस्थापित होने के बाद मिलने वाली सुविधाएं मिली. गांव में बजबजती नालिया एवं लचर स्वास्थ्य एवं पेयजल व्यवस्था यथावत बनी है. न तो सांसद और न ही विधायक ने इनकी सुध ली. लिहाजा इन ग्रामीणों के सामने आज समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है.
योजना समिति की बैठक में उठा था मुद्दा
योजना समिति की बैठक में 18 जुलाई 2022 को धनबाद में हुई थी. बैठक में इस मामले को उठाया गया था, सभी 20 गांवों को पंचायत में शामिल करने के लिए ढाई माह का समय भी निर्धारित किया गया था. लेकिन इस अवधि में भी अबतक इस ओर कोई पहल नहीं की गई.
सरकार ने मांगा था प्रस्ताव
बोकारो के विधायक बिरंची नारायण 2 वर्ष पहले से इन विस्थापित गांव के ग्रामीणों का मामला विधानसभा में उठाते रहे हैं. जवाब में सरकार की ओर से ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने सदन को अवगत कराया था कि सरकार ने बोकारो उपायुक्त से इस संबंध में प्रस्ताव मांगा है. प्रस्ताव मिलते ही इन गांवों को पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत पंचायत में शामिल कर लिया जाएगा. इस प्रस्ताव में 20 गांव को पंचायत में शामिल करने पर विस्तृत जांच प्रतिवेदन एवं प्रस्ताव की मांग भी की गई थी. मगर अबतक कुछ नहीं हुआ.
कौन-कौन गांव है शामिल
बुनियादी सुविधाओं से वंचित 20 गांवों में महुआर, श्यामपुर ,चैताटांड, कुंडोरी, वैदमारा, वास्तेजी, धनगढ़ी, मधुडीह, महेशपुर, पिपराटांड़, शिबूटांड,, बंसीमिली, पचोरा, कनफटा, बोराटांड, जारीडीह, कनारी, आगरडीह, जमुनियाटांड, बोधनाडीह गांव शामिल है.
1962 में हुए थे विस्थापित
बोकारो में सेल स्थापना की सुगबुगाहट 1952 के बाद से शुरू हो गई थी.1956 में हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड ने काम शुरू किया.1962 में अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हुई.1963 से विस्थापित रैयतों को भुगतान की प्रक्रिया शुरू हुई. उसके बाद 30 विस्थापित गांवों को पुनर्वासित किया गया. शेष बचे 19 गांव उतरी विस्थापित क्षेत्र में है तथा एक गांव रेलवे क्रासिंग के दक्षिण. इन 20 में से अधिकांश गांवों को पुनर्वासित नहीं किया गया और 1965 में सेल की स्थापना हो गई.
क्यों नहीं मिली पंचायत में जगह
जब सेल स्थापना की बात आई तो ये रैयतों ने अपनी जमीन सेल को दे दी. ग्रामीणों के मुताबिक ये तय हुआ कि जो विस्थापित होंगे, उनके विस्थापन क्षेत्र की तमाम बुनियादी सुविधाएं सेल उपलब्ध कराएगी. लेकिन इन विस्थापितों को पुनर्वासित तक नहीं किया गया और ना ही उन्हें सुविधाएं मिली. सेल के जिम्मेदारी लेने के कारण इन्हें न तो निगम में जगह मिला और ना ही त्रिस्तरीय पंचायत राज में. जिसके कारण ये विस्थापित अधर में लटके रहे.
लड़ाई का बना रहा अखाड़ा, विस्थापित बने नेताओं के हथियार
विस्थापितों की समस्याओं के निराकरण के सवाल पर हर महीने सेल का घेराव होता है. नेताओं ने आलिशान महल बना ली, लेकिन विस्थापित परिवार इन नेताओं के हथियार के रूप में इस्तेमाल होते रहे. धरना पर बैठ कर चिलचिलाती धूप में उम्मीदों के सहारे आंदोलित रहे. कुछ नेताजी लोग प्रबंधन के दलाली करके अपनी जेबें भरते रहे. समस्याएं यथावत बनी रही.
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