झारखंड

राजनीति की प्रयोगशाला में नहीं तय हो सका विकास का फॉर्मूला

Shantanu Roy
15 Nov 2021 8:23 AM GMT
राजनीति की प्रयोगशाला में नहीं तय हो सका विकास का फॉर्मूला
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झारखंड में तमाम वैसी चीजें हैं जो एक राज्य को विकसित बना सकती हैं. खनिजों का बेशुमार भंडार है. झरने, पेड़-पहाड़ हैं. अब सवाल है कि राजनीति की कसौटी पर झारखंड कहां खड़ा है,

जनता से रिश्ता। झारखंड में तमाम वैसी चीजें हैं जो एक राज्य को विकसित बना सकती हैं. खनिजों का बेशुमार भंडार है. झरने, पेड़-पहाड़ हैं. अब सवाल है कि राजनीति की कसौटी पर झारखंड कहां खड़ा है, इसको एक वाक्य में समझा जा सकता है, जैसे यह कि 28वें राज्य के रूप में गठन के 21 साल बाद तक झारखंड में किसी भी पार्टी को चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिला,

लेकिन सरकारें तो चलती रहती हैं. चाहे जोड़-तोड़ कर बनें या तोड़-मरोड़ कर. पिछले 21 वर्षों की राजनीति में झारखंड में एक से एक गुल खिले.झारखंड का सियासी सफरसाल 2000 में बिहार से अलग हुए झारखंड के 21 साल पूरा होने वाले हैं. इन 21 सालों में झारखंड की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं रही, इस दौरान 11 मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा. रघुवर दास ही एक ऐसे सीएम रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है.2000 में बना था अलग राज्यतत्कालीन दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 15 नवंबर 2000 को भारत के मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में झारखंड का उदय हुआ. उस वक्त बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखंड में सरकार का गठन किया.


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