झारखंड

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जमानत के फैसले को रद्द कर कहा- जघन्य अपराधों में शामिल आरोपी को बेल देते वक्त विचार करने की जरूरत है, पढ़ें तीन केस स्टडी

Renuka Sahu
14 Sep 2022 1:12 AM GMT
Supreme Court quashed the High Courts decision of bail and said - the accused involved in heinous crimes need to be considered while granting bail, read three case studies
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न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में झारखंड हाईकोर्ट के तीन फैसलों पर आश्चर्य व्यक्त किया है. गंभीर टिप्पणी भी की है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में झारखंड हाईकोर्ट के तीन फैसलों पर आश्चर्य व्यक्त किया है. गंभीर टिप्पणी भी की है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जमानत के फैसले को रद्द कर कहा है कि जघन्य अपराधों में शामिल आरोपी को बेल देते वक्त विचार करने की जरूरत है. हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 439 के मापदंडों पर ध्यान नहीं दिया. जिन तीन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया है, उन सभी मामलों में पीड़ित को मुआवजा के रूप में पैसे का भुगतान करने की शर्त पर आरोपी को जमानत दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विक्टिम कंपनसेशन (पीड़ित को मुआवजा) देने की पेशकश या मुआवजा दिया जाना किसी आरोपी को बेल दिये जाने का आधार नहीं हो सकता.

पहला मामला
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें गैंगरेप के आरोपी को पीड़िता को मुआवज़ा देने की पेशकश के आधार पर बेल दे दी गई थी. अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के भुगतान का प्रस्ताव आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 439 के मापदंडों पर ध्यान नहीं दिया, जिस पर किसी आरोपी को बेल देने या बेल पिटीशन खारिज करते समय विचार किया जाना चाहिए. खासकर तब, जब आरोपी एक जघन्य अपराध में शामिल होता है. यह मामला गैंगरेप के आरोपी सलाउद्दीन खान की जमानत से संबंधित है. जिसमें आरोपी को झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी. आरोपियों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 341, 342 और 376 (डी) और बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 4 और 8 के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई है. प्राथमिकी में यह आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने दो नाबालिग लड़कियों को पकड़कर अपनी मोटर साइकिल पर जबरदस्ती बिठा लिया था और फिर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. झारखंड हाईकोर्ट द्वारा आरोपी को बेल दिए जाने के आदेश को राज्य सरकार ने चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह तीन महीने की अवधि के भीतर आरोपियों की जमानत अर्जी पर सुनवाई कर गुण-दोष के आधार पर उसका निपटारा करे.
दूसरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 4 लाख रुपये जमा करने की शर्त पर आरोपी को अग्रिम जमानत की सुविधा दी गई थी. झारखंड हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने 25 नवंबर 2021 को तलत सनवी की अग्रिम जामनत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था. इसमें कहा गया था कि आरोपी को अग्रिम जमानत के लिए मुआवजा के तौर पर पीड़ित को 4 लाख रुपये का भुगतान करना होगा. झारखंड हाईकोर्ट के इस आदेश को तलत सनवी ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. आरोपी ने अपने अधिवक्ता गणेश खन्ना के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (क्रिमिनल) याचिका दाखिल की थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे का भुगतान करने के आदेश पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कॉल और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच में उक्त याचिका पर सुनवाई हुई. प्रार्थी तलत सनवी के अधिवक्ता गणेश खन्ना के मुताबिक यह मामला पति-पत्नी के विवाद का था. पत्नी ने संबंध विच्छेद होने के बाद पति पर दहेज उत्पीड़न का केस कर दिया था. रांची सिविल कोर्ट के एसडीजेएम की अदालत में आरोपी की पत्नी ने मामला दर्ज कराया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि पैसे दिलवा कर बेल देने से आरोपी के मन में यह भावना आएगी कि हम पैसा देकर जमानत ले सकते हैं.
तीसरा मामला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित को मुआवजा के आधार पर जमानत देने को गैरकानूनी बताते हुए झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया था. शीर्ष अदालत में दाखिल गीतेश कुमार बनाम झारखंड सरकार से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि पीड़ित मुआवजा के आधार पर जमानत नहीं दिया जा सकता. यह सीआरपीसी 438 और 439 के विरुद्ध है, गैरकानूनी भी है. गीतेश कुमार की ओर से पक्ष रख रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कुमार शिवम के मुताबिक झारखंड हाईकोर्ट में आमतौर पर पीड़ित मुआवजा के आधार पर जमानत दी जाती थी. एक मामले में हाईकोर्ट ने बारह लाख रुपये पीड़ित मुआवजा के आधार पर आरोपी को जमानत दिये जाने का आदेश दिया था. उक्त आदेश को गीतेश कुमार ने शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी.
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