झारखंड

स्टार्टअप आपकी परीक्षा लेता हैः प्रवीण राजभर

Rani Sahu
13 July 2022 4:44 PM GMT
स्टार्टअप आपकी परीक्षा लेता हैः प्रवीण राजभर
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मेरा नाम प्रवीण राजभर है. ग्रामीण परिवेश में पला-बढ़ा. गांव में ही शिक्षा ली

by Lagatar News

मेरा नाम प्रवीण राजभर है. ग्रामीण परिवेश में पला-बढ़ा. गांव में ही शिक्षा ली. फिर दिल्ली आ गया. आगे भी पढ़ना चाहता था, पर पैसे नहीं थे. बाकी ग्रामीण युवाओं के तरह ही मुझ पर भी कहीं न कहीं सरकारी जॉब में जाने का प्रेशर था, लेकिन मेरा मन नहीं था. इसी कारण मैं दिल्ली आ गया. मैं आज जिस स्टार्टअप को चला रहा हूं, उसकी प्रेरणा दिल्ली में ही मिली.
शुरुआती दिन
दिल्ली के शुरुआती 4 साल बहुत संघर्ष के थे. मुझे शहरी परिवेश में रमने में टाइम लग रहा था. समझ नही थी कि जॉब कहां से शुरू करें. इंग्लिश आती नहीं थी. कॉन्फिडेंस कम था. गांव की अपनी टोन में बात करना कहीं कहीं मजाक का कारण भी बन जाता था. खैर, इन सभी परिस्थितियों से आगे निकलने का बाद मुझे लगा कि मै अकेला नहीं हूं जो इन समस्याओं से रूबरू होता हूं. ऐसे लोग लाखों की संख्या में हैं जो अलग-अलग शहरों से पढ़ने के लिए आते हैं और नौकरी की तलाश में लग जाते हैं. कुछ सफल होते हैं तो बहुत से लौट कर चले जाते हैं.
यह सच है कि SkillingYou शुरू करने की प्रेरणा यहीं से मिली थी. इसके पीछे एक ही वाक्य का ध्येय थाः जो समस्याएं मैंने अपने जीवन में देखी हैं, वो कोई और युवा न देखे. बस. आज ईश्वर की कृपा से हम लोग सैकड़ों युवाओं को ऑनलाइन ऐप के माध्यम से ट्रेनिंग दे रहे हैं.
कठिनाइयां
मुझे एक वाकया याद आ रहा है. एक इंटरव्यू में मुझसे यही सवाल पूछा गया था कि जब आपने स्टार्टअप शुरू किया था तो क्या-क्या परेशानियां आई थी. मेरा जवाब था, "जब मैं परेशानियों में था तब स्टार्टअप शुरू किया था". मैं उस परिवार से आता हूं, जिसने कभी कोई बिजनस नहीं किया. करीब 12 साल से ज्यादा कॉर्पोरेट की दुनिया में अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में काम करने के बाद जब मैंने स्टार्टअप के बारे में सोचा तो सबसे पहला यही ख्याल आया कि घर कैसे चलेगा? जॉब में आपके पास एक फिक्स्ड सैलरी आ जाती है. आप जी सकते हैं. बिजनस में फिक्स कुछ नहीं होता. या तो आर, या फिर पार. जब मैंने 2017 में अपनी लास्ट कम्पनी से रिजाइन किया तो कुछ धन जोड़ कर रखा था. मकसद यही था कि जो भी बिजनेस करेंगे, उसमें इसका इस्तेमाल होगा. घर वालों को नहीं बताया कि जॉब छोड़ दी है. उन्हें समय पर पैसे भेजते रहेंगे, ये तय कर रखा था. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. जॉब छोड़ने के कुछ दिनों बाद ही पता चला कि माताजी को ब्रैस्ट कैंसर है. सब प्लानिंग एकाएक बदल गई. जो पैसे थे, वो इलाज में जाने लगे. इधर माताजी का इलाज चल ही रहा था कि पिताजी को हार्ट अटैक आया और उन्हें बाईपास सर्जरी करवाना पड़ा. बदकिस्मती से वो सर्जरी भी फेल हो गई और उन्हें महज 30 दिन में दूसरी सर्जरी में जाना पड़ा. इन सब में जो पैसे थे, वो तो बहुत पहले समाप्त हो गए. लाखों के उधार और क्रेडिट कार्ड के ड्यूज में आ गया. इतना होने के मेरे मन में स्टार्टअप को लेकर क्रेज कभी कम नहीं हुआ. मुझे याद है कि अपनी कंपनी की पहली क्लाइंट प्रेजेंटेशन मैंने एम्स में बनाई थी. मुश्किलें तो आती हैं. जब भी आप कुछ बड़ा सोचते हैं, ईश्वर आपकी परीक्षा जरुर लेते हैं. बस हमें डरना नहीं है. मुश्किलों का सामना करना है. रास्ते अपने आप मिलते जाते हैं. हम माताजी को नहीं बचा पाए, इसका दुख तो है.
सबसे मुश्किल दौर
मुझे लगता है कि स्टार्टअप आपके माइंडसेट पर निर्भर करता है. सृजन का काम हमेशा पीड़ादायक होता है. एक मां जब अपने बच्चे को जन्म देती है तो उसे कितनी पीड़ा होती है. लेकिन, एक नया जीवन देकर उसे कितनी ख़ुशी मिलती है, ये मां को ही पता होता है. स्टार्टअप भी कुछ ऐसा ही है. आप एक बिज़नस को जन्म दे रहे होते हैं. परेशानियां तो आएंगी ही. लेकिन अगर आप वो कर रहे रहे हैं जिसमे आपको मजा आता है तो सब अच्छा लगता है, उत्साह बढ़ता है.
जब आप अपने जैसे परिवेश से निकले युवाओं के जीवन में कुछ वैल्यू एड करते देखते हैं तो बहुत मज़ा आता है. अभी हाल ही में हमारे स्टार्टअप को गूगल और मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के द्वारा देश के शीर्ष 100 प्रोमिसिंग स्टार्टअप में लिस्ट किया गया है. अब हमें गूगल से ट्रेनिंग और मेंटरिंग मिल रही है. ये बहुत सारी अलग अचीवमेंट के साथ बेहद खास रहा है.
कोरोना की कहानी
कोरोना इंसानियत के लिए अभिशाप रहा है. लोगों ने अपना जीवन खो दिया. जॉब्स और बिज़नस बंद हुए. स्टूडेंट्स की पढाई बाधित हुई. लेकिन जैसा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि सोच सकारात्मक हो तो आपदा में अवसर की तलाश हो ही जाती है. हमारा स्टार्टअप जिस इंडस्ट्री से आता है, उसे कोरोना से कई लाभ मिले. जब स्टूडेंट्स घर में थे तो हमने ऑनलाइन एजुकेशन के माध्यम से बहुत लोगों को नई स्किल्स सीखने में मदद की. ऑनलाइन सेमिनार्स किये. हमारे ऐप के पहले 1 लाख डाउनलोड कोरोना समय में ही हुए. कोरोना के समय पर हमनें 25000 से ज्यादा युवाओं को फ्री में एजुकेशन दिया. NSS से जुड़े उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के हजारों स्वयंसेवकों को फ्री में इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स सिखाया था.
Rani Sahu

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