झारखंड

बोले- प्रिंट की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जवाबदेह नहीं

Admin4
28 July 2022 11:43 AM GMT
बोले- प्रिंट की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जवाबदेह नहीं
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सीजेआई ने कहा, हम अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। यह प्रवृत्ति हमें दो कदम पीछे ले जा रही है। उन्होंने कहा, न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।

सीजेआई एनवी रमण शनिवार को अपने एक दिवसीय दौरे पर झारखंड पहुंचे। यहां एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने मीडिया को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, हम देख रहे हैं कि मीडिया मनमानी अदालतें चला रहे हैं। इसके चलते कई बार तो अनुभवी न्यायाधीशों को भी सही और गलत का फैसला करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, कई न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।

सीजेआई ने कहा, हम अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। यह प्रवृत्ति हमें दो कदम पीछे ले जा रही है। प्रिंट मीडिया में अभी भी कुछ हद तक जवाबदेही है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं बची है।

वास्तविकता से नहीं मूंद सकते आंखें

सीजेआई रमण ने कहा, न्यायाधीश सामाजिक वास्तविकताओं से आंखे नहीं मूंद सकते हैं। न्यायाधीशों को समाज को बचाने और संघर्षों को टालने के लिए ज्यादा दबाव वाले मामलों को प्राथमिकता देना होगा। उन्होंने कहा, वर्तमान समय में न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक निर्णय के लिए मामलों को प्राथमिकता देना है।

जजों को नहीं मिलती समान सुरक्षा

चीफ जस्टिस ने कहा, राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों को अक्सर रिटायरमेंट के बाद भी सुरक्षा दी जाती है। विडंबना यह है कि जजों को उनके समान सुरक्षा नहीं मिलती। उन्होंने कहा, हाल के दिनों में जजों पर शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं। जजों को उसी समाज में बिना सुरक्षा के रहना होता है, जिसमें उनके द्वारा दोषी ठहराए गए लोग रहते हैं।

न्यायिक ढांचे को सुधारने की वकालत

सीजेआई ने कहा, लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। कई मौकों पर खुद मैंने लंबित मामलों के मुद्दों को उजागर किया है। मैं न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के बुनियादी ढांचे को सुधारने की आवश्यकता की पुरजोर वकालत करता हूं। उन्होंने कहा, लोगों ने एक गलत धारणा बना ली है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत आसान है। इस बात को निगलना काफी मुश्किल है।

अनुराग ठाकुर ने दी प्रतिक्रया

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने रांची में एक बयान दिया कि कुछ मीडिया हाउस कंगारू अदालत की तरह काम करती हैं। ये अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। एक बार अंदर झांकने के लिए लोगों को मजबूर भी करता है कि क्या समाचार चलाते हुए आप कहीं लक्ष्मण रेखा को लांघ तो नहीं जाते हैं। कहीं मीडिया ट्रायल तो नहीं होता है। उन्होंने मीडिया के सामने इस तरह का प्रश्न खड़ा किया है।

रिजिजू ने किया टिप्पणी करने से इनकार

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि मुझे लगता है कि CJI एनवी रमन्ना ने अपने संबोधन के दौरान जजों के जीवन के बारे में बात करने के लिए एक टिप्पणी की और उनकी टिप्पणी को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है और इस पर चर्चा की जा सकती है। मैं इस समय कोई टिप्पणी नहीं दूंगा।

कंगारू कोर्ट चला रहा मीडिया, लोकतंत्र की सेहत के लिए यह घातक : सीजेआई

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण ने कहा कि मीडिया एजेंडे पर काम करते हुए कंगारू कोर्ट चला रहा है। यह लोकतंत्र की सेहत के लिए घातक है। प्रिंट मीडिया की सराहना कर चीफ जस्टिस बोले कि यहां अब भी विश्वसनीयता और जवाबदेही बनी हुई है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही शून्य है। सोशल मीडिया का हाल और बुरा है। झारखंड में शनिवार को हुए जस्टिस सत्यब्रत सिन्हा स्मृति व्याख्यान के शुभारंभ में चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि मीडिया ट्रायल से किसी मामले में निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता।

न्यायिक प्रणाली में कंगारू कोर्ट व टीवी डिबेट पर चीफ जस्टिस ने कहा 'ऐसे मामले जिनमें अनुभवी और सीनियर जज भी निर्णय लेने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं, उनमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया गलत जानकारियों से भरी डिबेट चला रहा है। इनमें न्याय प्रणाली को भी विषय बनाया जाता है। टीवी पर पक्षपाती नजरिये से जो दिखाया जा रहा है, वह तो हवा में गायब जाता है, लेकिन न्यायपालिका की निष्पक्ष कार्यप्रणाली और लोग प्रभावित हो रहे हैं। यह लोकतंत्र को कमजोर कर व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी हद से आगे बढ़कर और जिम्मेदारी से पीछे हटकर हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहा है।

न्यायपालिका के भविष्य पर चिंता

चीफ जस्टिस ने कहा कि जजों को सामाजिक सच्चाइयों को अनदेखा न करते हुए मामलों की प्राथमिकताएं तय करनी होती हैं। हालांकि वह खुद भारत में न्यायपालिका के भविष्य पर चिंतित हैं। यह चिंता पहले से कमजोर अदालतों के बुनियादी ढांचे पर बढ़ते मुकदमों के बोझ और पद न भरे जाने से है। इससे बचाव की निकट भविष्य के लिए ठोस योजना भी नजर नहीं आती।

तीन नसीहत भी दीं

सरकार व कोर्ट को हस्तक्षेप का बुलावा न दें : इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी हदें तोड़कर सामाजिक असंतोष बढ़ा रहा है। इस पर सख्त नियंत्रण व जवाबदेही की मांग बढ़ी है। मीडिया खुद को नियंत्रित करे, अपने शब्दों को तौले। वरना वह सरकार या कोर्ट को हस्तक्षेप के लिए बुलावा देगा।

जजों को कमजोर-बेबस न समझें : हो सकता है कि जज तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दे रहे। लेकिन उन्हें बेबस या मजबूर समझने की गलती न करें। हद में रह कर जवाबदेही के साथ आजादी का उपयोग होगा तो बाहर से कोई प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं रहेगी।

सही-गलत, अच्छे-बुरे, असली-नकली पहचानने में अक्षम : नए मीडिया में किसी विषय पर जानकारी को बढ़ाने की असीम संभावना है, लेकिन वह सही-गलत, अच्छे-बुरे, असली-नकली में फर्क करने में अक्षम है। इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया पर लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह शक्ति लोगों को जागरूक करने में उपयोग करें, देश की ऊर्जा बढ़ाएं ताकि हम प्रगतिशील, समृद्ध और शांतिपूर्ण भारत बना सकें।

जजों पर हमले बढ़े, रिटायरमेंट के बाद सुरक्षा कौन देगा?

जजों पर बढ़ते हमलों का उल्लेख कर चीफ जस्टिस ने कहा कि दशकों तक अदालतों में खूंखार अपराधियों को सजा देने वाले जजों को रिटायरमेंट के बाद पहले जैसी सुरक्षा नहीं मिलती। वे बिना सुरक्षा उसी समाज में रहते हैं, जिसमें उनसे सजा पाए लोग भी रह रहे हैं। वहीं राजनेता, नौकरशाह रिटायरमेंट के बाद अपने काम की संवेदनशीलता को देखते हुए सुरक्षा पाते हैं। इस भ्रांति को दूर करने की जरूरत है कि जज सबसे आराम से रहते हैं, हकीकत यह है कि हर हफ्ते 100 से अधिक मामलों की तैयारी करना, बहस सुनना, निर्णय लिखना आराम करना नहीं है।

मैं तो राजनीति में जाना चाहता था

अपने बारे में खुलासा कर चीफ जस्टिस ने कहा 'मैं तो सक्रिय राजनीति में जाना चाहता था, लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था। जिस काम के लिए मैंने बहुत मेहनत की, उसे छोड़ना आसान नहीं था।' उन्होंने बताया कि बीएससी करने के बाद उनके पिता ने उन्हें कानून की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। वे किसान परिवार से आते हैं।

काम की समीक्षा संविधान के तहत

चीफ जस्टिस बोले, अक्सर सुना जा रहा है कि चूंकि जज चुनकर नहीं आते, इसलिए उन्हें कार्यपालिका व व्यवस्थापिका के कामों से दूर रहना चाहिए। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके काम की न्यायिक समीक्षा न्यायपालिका की सांविधानिक जिम्मेदारी है। यह भारतीय संविधान का हृदय और आत्मा है, इसके बिना लोगों का संविधान में विश्वास कम होने लगेगा।

क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लक्ष्मण रेखा लांघी, आत्मविश्लेषण करे : अनुराग ठाकुर

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अपनी कार्यप्रणाली का आत्मविश्लेषण करना चाहिए। चीफ जस्टिस के बयान को लेकर उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम में कहा कि मीडिया को सोचना चाहिए कि क्या वह समाचार देते समय लक्ष्मण रेखा लांघ रही है? उन्होंने कहा कि मीडिया के मेरे मित्रों को इस बयान के बाद आत्मविश्लेषण करना चाहिए।


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