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मशहूर क्विज मास्टर बैरी ओ ब्रायन ने कहा कि तकनीक ने क्विज के सामने चुनौतियां पेश की है तो अवसर भी प्रदान किए है
Sanjay Prasad
Jamshedpur : मशहूर क्विज मास्टर बैरी ओ ब्रायन ने कहा कि तकनीक ने क्विज के सामने चुनौतियां पेश की है तो अवसर भी प्रदान किए है. अब आप ऑनलाइन क्विज का आनंद ले सकते हैं, जो पहले संभव नहीं था. लोयोला स्कूल में इंडिया क्विज का संचालन करने शहर पहुंचे बैरी ने कहा कि समय के साथ क्विज के फॉर्मेट में बदलाव हो रहा है. आज किसी के पास समय नहीं है. बच्चे किताबें नहीं पढ़ते और उन्हें किसी विषय को गहराई से जानने की जिज्ञासा नहीं रही है. इंटरनेट ने सूचना का विस्फोट कर दिया है. आज इंटरनेट पर दुनिया भर की जानकारी है. लेकिन क्विज केवल जेनरल नॉलेज नहीं है. इसमें केवल तथ्यों के बारे में नहीं पूछा जाता, बल्कि स्टूडेन्ट्स के जेनरल अवारनेस को टेस्ट किया जाता है. क्विज ऐसा हो जो बच्चों को रोबोट बनाने की बजाय उन्हें जिज्ञासु बनाएं. उनकी लॉजिकल और लैटरल थिंकिंग को बढ़ाएं.
उन्होंने कहा कि क्विज एक माध्यम है, एक वेहिकल है, जिसके जरिए नॉलेज को हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं. क्विज ऐसा होना चाहिए जो बच्चों की क्यूरिसिटी को बढ़ाएं और उनमें नई चीजों को जानने और समझने की भूख पैदा करें. बैरी ने कहा कि सिद्धार्थ बासु ने क्विज को ड्राइंग रूम में लाया. डेरेक ओ ब्रायन ने इसे इंडस्ट्री का शक्ल दिया, अमिताभ बच्चन (केबीसी) ने इसे आम आदमी से जोड़ा और मैंने स्कूली स्टूडेन्ट्स में इसे लोकप्रिय किया.
सीनी में मौसी के घर आते थे
जमशेदपुर की यादों को साझा करते हुए कहा कि इस शहर से पुराना नाता है. पिता के साथ लेट सेवेन्टीज में आता था. मेरी एक मौसी सीनी में रहती थी. अमूमन हम गर्मी की छुटि्टयों में आते थे. मैं इस शहर को बंगाल का ही हिस्सा मानता हूं क्योंकि यहां पर बंगाली लोगों की संख्या ज्यादा है. लेकिन इस शहर की ब्यूटी इसका कॉस्मो पोलिटन कल्चर है, जिसमें देश भर के हर प्रांत के लोग रहते हैं. यहां के लोग काफी फोकस्ड है.
नवम्बर में आएगी एंग्लो इंडियन पर पुस्तक
बैरी ने बताया कि नवम्बर तक उनकी एंग्लो इंडियन पर पुस्तक आ रही है, जिसमें 2 लाख 60 हजार शब्द है. इसमें उन्होंने देश के एंग्लो इंडियन समुदाय के बारे में विस्तृत जानकारी देने की कोशिश की है. भारत में वास्कोडिगामा के आगमन से लेकर आज तक का इतिहास इसमें है. इसे काफी समकालीन बनाया गया है ताकि लोगों को पुस्तक पढ़ने में रोचक लगे. उन्होंने कहा कि एक समय था जब एंग्लो इंडियन समुदाय के लोग अपने आप को अंग्रेजीदां मानते थे लेकिन अब समय बदल गया है और उनका न केवल भारतीयकरण हो गया है बल्कि अंग्रेजी पर उनका एकाधिकार नहीं रहा. उन्होंने एंग्लो इंडियन समुदाय के युवाओं के दूसरे समुदाय में शादी का स्वागत किया और कहा कि इसे रोक पाना संभव नहीं है, लेकिन हमारी कोशिश है कि अपना कल्चर भी बचा रहे.
बच्चों पर अपनी महत्वकांक्षा नहीं थोपे
बैरी ने कहा कि भारत में बच्चों को अपने फैसले लेने का स्पेस बेहद कम है. मुझे लगता है कि बच्चों को अपने करिअर के साथ ही अपने मनपसंद पार्टनर को भी चुनने का अधिकार होना चाहिए. एक खराब इंजीनियर बनने से अच्छा है कि जो आप करना चाहते हैं, वह करें. यही कारण है कि शुरू में तो बच्चे, पैरेन्ट्स के दबाव में करिअर ऑप्ट कर लेते हैं लेकिन जैसे ही 40 साल के बाद वे अपने पैरेन्ट्स की सोच के दायरे से बाहर आते हैं, वे अपने मनसपंद काम करना शुरू कर देते हैं. स्कूलों में भी ऐसी शिक्षा और काउंसिलिंग होनी चाहिए कि वह बच्चों के एप्टीट्यूट के अनुसार उन्हें करिअर सेलेक्शन में मददगार करें.
नई शिक्षा नीति से कोई आमूल चूल बदलाव हो पाएगा, नहीं लगता
बैरी ने नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि इससे हमारी शिक्षा प्रणाली में कोई आमूल चूल बदलाव आ पाएगा, ऐसा नहीं लगता. उन्होंने कहा कि यह नीति प्रैक्टिकल कम, थियरेटिकल ज्यादा है. उन्होंने क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई पर कहा कि भारत जैसे देश में इसे लागू करना बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां इंटर्नल इमिग्रेशन काफी ज्यादा है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी आज फॉरेन लैंग्वेज नहीं है, यह ग्लोबल लैंग्वेज है, इसे भी हमें समझना होगा.

Rani Sahu
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