झारखंड

गरीबी लील गई रोजगार के सुनहरे पल, पैसे होते तो टीचर होता

Renuka Sahu
26 Aug 2022 4:24 AM GMT
Poverty took golden moments of employment, if there was money, I would have been a teacher
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फाइल फोटो 

गरीबी संत कोलंबा कॉलेज के एक दिव्यांग छात्र धनेश्वर प्रजापति के रोजगार के सुनहरे पल लील गई.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गरीबी संत कोलंबा कॉलेज के एक दिव्यांग छात्र धनेश्वर प्रजापति के रोजगार के सुनहरे पल लील गई. 4 साल वह बेरोजगार रहा. काबिल तो था, पर पैसे नहीं थे. फीस के अभाव में चार साल बाद यह दिव्यांग छात्र अपना बीएड पास का सर्टिफिकेट गुरुवार को ले पाया. आर्थिक रूप से वह इतना कमजोर है कि आज जब उसे बीएड का सर्टिफिकेट मिल रहा था, तो केरेडारी के गर्रीकला स्थित अपने गांव पतराखुर्द से हजारीबाग तक आने के लिए उसके पास पैसे भी नहीं थे. वहां से आने के लिए बस भाड़ा की व्यवस्था भी उसी शख्स तापस चक्रवर्ती ने की, जिन्होंने सर्टिफिकेट दिलाने में 25,000 रुपए फीस का सहयोग दिलाया. इस चार साल में धनेश्वर ने बीएड का सर्टिफिकेट नहीं रहने के कारण नौकरी के कई अवसर गंवा दिए. राज्य और केंद्र स्तर पर शिक्षक बहाली निकली. बीएड योग्यता की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहने के बावजूद सिर्फ सर्टिफिकेट के अभाव में उसके रोजगार के कीमती पल यूं ही गुजर गए. वह शिक्षक बहाली का परीक्षा फॉर्म ही नहीं भर सका, चूंकि उसमें सर्टिफिकेट की कॉपी लगाना अनिवार्य था.

एक पैर से दिव्यांग धनेश्वर प्रजापति संत कोलंबा कॉलेज का सत्र 2015-17 का अर्थशास्त्र का नियमित छात्र था. दो वर्षीय बीएड कोर्स के लिए 90,000 रुपये फीस जमा करना था. किसी तरह उसने 65,000 जमा किए थे और 25,000 बकाया था. एनओसी नहीं मिलने के कारण पास करने के बाद भी उसका सर्टिफिकेट उसे नहीं मिल पाया. चार साल से वह सर्टिफिकेट दिलाने के लिए डीसी से लेकर वीसी और सीएम तक गुहार लगाई. संत कोलंबा के तत्कालीन प्राचार्य सुशील टोप्पो से काफी मिन्नत-आरजू की. लेकिन संवेदनहीन व्यवस्था और समाज ने उसकी एक न सुनी.
दिव्यांग धनेश्वर के जीवन में फिर प्रसिद्ध रंगकर्मी तापस चक्रवर्ती मसीहा बनकर आए. उनके सहयोग से धनेश्वर को शेष राशि 25,000 रुपए की व्यवस्था कराई. उसके बाद उस दिव्यांग को सर्टिफिकेट मिला. इस बारे में तापस चक्रवर्ती कहते हैं कि जब उन्हें धनेश्वर की पीड़ा के बारे में जानकारी हुई, तो उन्होंने बड़े ओहदों पर आसीन पूर्व के एथलीट छात्रों से इस बात को साझा किया. फिर उनलोगों से मदद की गुहार लगाई. दो दिनों में पैसे की व्यवस्था हो गई. धनेश्वर की मदद के लिए हाथ बढ़ा दिए. उन्होंने अपने संदेश में अपने एथलीट शिष्यों नीरज, राकेश, खुशी, सुनील, मणी, सौरभ, संजय, हिमा और मुकेश से कहा कि फिर जीते हम और एक गेम, अच्छा खेला, दिल लगाकर खेला तुमलोगों ने, दिल से आशीर्वाद और बहुत-बहुत प्यार. बहुत सारे गेम तुमलोगों ने इसी जज्बे के साथ पहले भी जिताए थे, लेकिन इस जीत का शुकूल कुछ और है. फिर कभी जरूरत पड़ी, तो फिर जुटेंगे, फिर मिलेंगे और फिर एक गेम जीतने के लिए करेंगे जद्दोदहद, थैंक्स टू ऑल…उनके इस संदेश में उनके शिष्यों ने भी आभार जताया. मददगार तापस चक्रवर्ती कहते हैं कि यह उनका सौभाग्य है कि ईश्वर ने उन्हें यह मौका दिया. तापस चक्रवर्ती न सिर्फ प्रसिद्ध रंगकर्मी, बल्कि एथलीट कोच और मुर्दा कल्याण समिति से जुड़े सच्चे समाजसेवी भी हैं.
कौन लौटाएगा गुजरा वक्त
दिव्यांग धनेश्वर प्रजापति आज चार साल के बाद बीएड का सर्टिफिकेट लेकर भी खुश नहीं है. वह कहता है कि उसका चार साल समय बर्बाद हुआ. उसका गुजरा वक्त कौन लौटाएगा. सरकार उसे क्षतिपूर्ति भत्ता और रोजगार उपलब्ध कराए. उसके पिता नहीं हैं और उसकी शादी हो चुकी है. उसके छह भाई-बहन हैं और सभी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. उसने मददगार तापस चक्रवर्ती को लाख-लाख शुक्रिया अदा किया कि उनकी वजह से उसे सर्टिफिकेट मिल पाया. उसने सभी मददगार एथलीटों को भी धन्यवाद दिया.
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