लातेहारः जिले में इन दिनों वेज मटन यानी देसी मशरूम की धूम मची हुई है. सावन के महीने में जब धार्मिक दृष्टिकोण से बड़ी संख्या में लोग नॉनवेज नहीं खा रहे हैं. ऐसे में नॉनवेज के शौकीन लोगों के लिए रुगड़ा और खुखड़ी नॉनवेज का विकल्प बनकर लोगों के खाने का जायका बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं बल्कि ग्रामीणों के लिए यह आमदनी का एक बेहतर साधन भी बन गया है.
दरअसल रुगड़ा और खुखड़ी बरसात के मौसम में बड़े पैमाने पर लातेहार जिले में उपज होती है. इसका स्वाद काफी कुछ मटन से मिलता है. जब बारिश होने के साथ बिजली कड़कती है तो इसका उत्पादन और भी अधिक बढ़ जाता है. इसे स्थानीय भाषा में लोग खुखड़ी या पुटको कहते हैं. ग्रामीण रोज सुबह जंगलों में जाकर रूगड़ा को लाते हैं और सड़क के किनारे बैठकर बेचते हैं. सड़क से आने जाने वाले लोग रुक कर बड़े चाव से इसे खरीदते हैं और इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि ग्रामीणों को इसके उत्पादन के लिए ना तो कोई मेहनत करनी पड़ती है और ना ही इसके व्यवसाय के लिए कोई पूंजी की जरूरत पड़ती है. बस जंगल में जाकर थोड़ी मेहनत करते हैं और प्राकृतिक मशरूम को बेचकर अच्छी आमदनी कर लेते हैं.
मटन के जैसा खाने में देता है स्वादः स्थानीय लोगों की माने तो प्राकृतिक मशरूम का स्वाद मटन के जैसा होता है. स्थानीय ग्रामीण मनोहर सिंह ने बताया कि सावन के महीने में इसकी बिक्री काफी अधिक होती है. इसे खाने में बिल्कुल मटन के जैसा स्वाद लगता है. इसलिए लोग इसे शाकाहारी मांस भी कहते हैं.बारिश पर निर्भर होता है उत्पादनः स्थानीय ग्रामीण साधु उरांव ने कहा कि जितनी अच्छी बारिश होगी और बादल गरजेगा उतना ही अधिक इसका उत्पादन भी बढ़ता है. उन्होंने कहा कि बारिश होने के बाद ग्रामीण जंगल में जाते हैं और रुगड़ा तथा खुखड़ी को जमीन के नीचे से खोदकर बाहर निकालते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं.
सखुआ के पेड़ के नीचे मिलता हैः स्थानीय ग्रामीण महिला चंपा देवी ने बताया कि इसका उत्पादन सबसे अधिक सखुआ के पेड़ के नीचे ही होता है. पेड़ की जड़ के नीचे पत्तों से ढका रहता है. हल्की खुदाई कर इसे बाहर निकाला जाता है और पानी से धोकर बेच दिया जाता है. उन्होंने बताया कि बाजार में पुटको की कीमत ₹400 प्रति किलो है. वहीं छाता खुखरी की कीमत 300 से लेकर 350 रुपए प्रति किलो होती है. हालांकि जैसे-जैसे उत्पादन अधिक होने लगता है कीमत घटने लगती है.
एनएच के किनारे लगता है बाजारः सबसे अच्छी बात यह है कि ग्रामीणों को इसे बेचने के लिए किसी बड़े बाजार में जाने की जरूरत नहीं होती है. शहर से दूर जंगली इलाकों से गुजरने वाली एनएच के किनारे बैठकर ग्रामीण इसे बेचते हैं. ग्राहक दूरदराज से आकर ग्रामीणों से प्राकृतिक मशरूम की खरीदारी करते हैं.
काफी फायदेमंद है देसी मशरूमः इधर इस संबंध में चिकित्सक डॉक्टर आनंद सिंह ने कहा कि देसी मशरूम काफी फायदेमंद होता है. इसमें सभी प्रकार के विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन आदि पाए जाते हैं. उन्होंने कहा कि गोबर आदि में उगने वाले मशरूम कभी-कभी नुकसानदायक भी हो जाते हैं. परंतु जो जंगल में पाए जाते हैं वह फायदेमंद होते हैं.
देसी मशरूम जहां लोगों के खाने का जायका बढ़ा रहा है. वहीं ग्रामीणों को आमदनी का एक बेहतर साधन भी उपलब्ध करा रहा है. जरूरत इस बात की है कि सरकार और कृषि विभाग रुगड़ा, खुखड़ी आदि को बढ़ावा दे ताकि ग्रामीणों के लिए रोजगार का यह एक बेहतर साधन बन सके.