झारखंड
प्रशांत बोस और मिसिर का सुरक्षित ठिकानों में से एक है पारसनाथ, इसी इलाके से तैयार किया मजबूत कैडर
Shantanu Roy
12 Nov 2021 3:22 PM GMT
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जिले के अति उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ में स्थित है झारखंड-बिहार का सबसे बड़ा पर्वत पारसनाथ. जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए यह पर्वत पूजनीय है. वहीं यह इलाका नक्सलियों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में से एक है.
जनता से रिश्ता। जिले के अति उग्रवाद प्रभावित पीरटांड़ में स्थित है झारखंड-बिहार का सबसे बड़ा पर्वत पारसनाथ. जैन धर्म के साथ-साथ आदिवासियों के लिए यह पर्वत पूजनीय है. वहीं यह इलाका नक्सलियों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में से एक है. इस इलाके से बड़े बड़े नक्सली नेता निकले. नक्सलवाद की पौध को खड़ा करने में सबसे अहम भूमिका निभानेवाले एमसीसी के संस्थापक कन्हाई चटर्जी ने इसी क्षेत्र को सेंटर बनाया था और यहीं से अविभाजित बिहार में नक्सलवाद को फैलाया.
एक करोड़ के इनामी नक्सली सह भाकपा माओवादी पोलित ब्यूरो मेंबर मिसिर बेसरा उर्फ भास्कर का घर इसी इलाके में है. एक करोड़ के इनामी अनल उर्फ पतिराम मांझी भी इसी पीरटांड़ का रहने वाला है. जबकि एक करोड़ के इनामी विवेक उर्फ प्रयाग भी पारसनाथ के समीप का रहनेवाला है. कहा जाता है कि भाकपा माओवादी पोलित ब्यूरो मेंबर प्रशांत बोस (Prashant Bose) उर्फ किशन दा का भी इसी पारसनाथ को सबसे सुरक्षित ठिकाना माना था. जानकारों की मानें तो प्रशांत कई दफा इस इलाके में आते रहे. इस इलाके का जिम्मा भी किसे मिले इसपर भी प्रशान्त की निगाह रहती थी. बताया जाता है कि प्रशांत बोस का इस इलाके से लगाव के पीछे ससुराल भी एक कारण है. प्रशांत की पत्नी शीला का माइका गिरिडीह के पीरटांड़ से सटे टुंडी के इलाके में ही स्थित है.
पीरटांड़-टुंडी ऐसे बना नक्सलियों का सेंटर पॉइंट
कहा जाता है कि बंगाल के नक्सलबाड़ी से माओवादियों का आंदोलन शुरू हुआ था. इस नक्सलबाड़ी के बाद इसी पारसनाथ के तराई को (धनबाद के टुंडी व गिरिडीह के पीरटांड़) नक्सलियों ने अपना सेंटर पॉइंट बनाया था. यहीं से अविभाजित बिहार में नक्सलवाद पनपा. जानकार बताते हैं कि 70 के दशक में दिशोम गुरु के नाम से जाने जानेवाले शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय ने संयुक्त रूप से सामंतवाद के खिलाफ लालखण्ड आंदोलन शुरू किया था. इस आंदोलन के तहत सामूहिक खेती की गयी, लोगों के बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया.
शिबू सोरेन दुमका में शिफ्ट कर गए और झारखंड मुक्ति मोर्च नाम की नयी पार्टी बनायी. शिबू के दुमका शिफ्ट होते ही नक्सलियों को इस क्षेत्र में घुसपैठ का मौका मिला. जिस लालखण्ड आंदोलन की शुरुवात लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए की गयी थी उस आंदोलन को नक्सलियो ने हाईजैक कर लिया. उस वक्त नक्सली संगठन एमसीसी के अगुवा कन्हाई चटर्जी ने इस इलाके में नक्सली संगठन का विस्तार करना शुरू किया. आलम यह हो गया कि झारखड-बिहार के अलावा इन दोनों राज्यों से सटे अन्य राज्यों के नक्सली नेताओं का सबसे सुरक्षित ठिकाना पारसनाथ का बीहड़ व जंगलों से भरा इलाका बन गया. इस इलाके में कन्हाई ने नक्सल की एक मजबूत पौध तैयार की.
पुलिस की हुई मजबूत पकड़, नक्सलियों के टूटने लगे पांव
पारसनाथ इलाके में मजबूत पकड़ जमाने के बाद यहां नक्सलियों ने कई घटना को अंजाम भी दिया. नक्सलियों की करतूतों से यह क्षेत्र अहिंसा की जगह हिंसा की नगरी बनता गया. नक्सलियों ने अपना पैर मजबूत किया तो पुलिस ने भी सख्ती दिखाई. इलाके में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गयी और नक्सलियों को पकड़ा जाने लगा. देर से ही सही इलाके में काफी हद तक शांति स्थापित हुई.
अब नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के थिंक टैंक में से एक प्रशान्त बोस पकड़ा गया है. निश्चित तौर पर नक्सलियों के लिए यह एक बड़ी चोट है. अब देखना यह होगा कि प्रशान्त से संगठन का महत्वपूर्ण राज उगलवाने में पुलिस किस हद तक सफल हो पाती है.
तराई में दिखे थे प्रशान्त
इधर, सूत्रों की माने तो प्रशान्त बोस उर्फ किशन दा और उसकी पत्नी शीला की गिरफ्तारी के लिए राज्य की पुलिस के अलावा खुफिया विभाग कई वर्षों से मशक्कत कर रहा था. प्रशान्त के हर उस ठिकाने की तलाश की जा रही थी जहां वह छिप सकता था. प्रशान्त के ससुराल पर भी नजर रखी जा रही थी. बताया जाता है कि हाल के कुछ दिनों पूर्व प्रशान्त की पत्नी शीला को पारसनाथ की तराई वाले इलाके में भी देखा गया था. यहीं पर खुफिया विभाग ने छानबीन शुरू की. सूत्र बताते हैं कि शीला जैसी महिला खुखरा के समीप लगनेवाले साप्ताहिक हाट में भी देखी गई थी. जिसका सत्यापन शुरू हुआ था. उस दौरान खुफिया विभाग को यह जानकारी मिली थी कि प्रशांत पारसनाथ के तराई में है. ऐसे में ढोलकट्टा समेत कई गांव में गुप्त तरीके से तलाशी भी ली गई थी हालांकि तबतक दोनों अपने बॉडीगार्ड के साथ पारसनाथ इलाके को छोड़ चुके थे.
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