झारखंड

झारखंड के इस स्थान पर रुके थे मौर्य सम्राट अशोक

Manish Sahu
31 Aug 2023 4:58 PM GMT
झारखंड के इस स्थान पर रुके थे मौर्य सम्राट अशोक
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झारखंड: झारखंड के सिमडेगा जिले में स्थित बानो प्रखंड का केतुंगाधाम आज भी मौर्य सम्राट अशोक की यादें दिलाता है। मान्यता है कि सम्राट अशोक कलिंग के युद्ध के पश्चात इसी मार्ग से लौट रहे थे। तब अपनी पूरी सेना के साथ केतुंगाधाम में रुके थे। यहां सम्राट अशोक द्वारा बनवाई गई भगवान बुद्ध की अनेक प्रतिमाएं हैं, जो आज बिखरी पड़ीं हैं। पत्थर से यहां पर एक विशेष यज्ञशाला का निर्माण कराया गया था, जो अब जर्जर हाल में है। पूजा स्थल से कुछ दूरी पर शाही खजाना लेकर राजा के आदमी चलते थे। यह बात इस से प्रमाणित होता है कि आज भी पत्थर के बड़े-बड़े बक्से एक पेड़ के नीचे मौजूद हैं। इसी तरह कुछ दूरी पर राजा के सामान ले जाने के लिए बैलगाड़ी का उपयोग किया गया होगा। बैल के गले में बंधी ठरकी अर्थात घंटी एक जगह गिरी होगी। उस जगह को आज भी स्थानीय लोग ठरकीटांड़ के नाम से जानते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि सरकार का इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने के प्रति कोई ध्यान नहीं है।
जानकारी के मुताबिक, केतुंगाधाम को पुरातत्व के द्वारा भी पंजीकृत किया गया है। इस स्थल के विकास के लिए अबतक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है। कुछ साल पहले तत्कालीन उपायुक्त विजय कुमार सिंह ने केतुंगाधाम का दौरा कर इसे पर्यटन स्थल बनाने का प्रयास भी किया था। बाद में उनका सिमडेगा जिले से स्थानांतरण हो गया। इसके साथ ही केतुंगाधाम का विकास भी कागजों में ही सिमट कर रह गया। वहीं केतुंगाधाम में देवनदी के दोनों किनारे आज भी कई अवशेष बिखरे पड़े हैं। केतुंगाधाम स्थित शिव मंदिर के पुजारी ने बताया कि कई जगह छोटे-छोटे बौद्ध स्तूप बनाए गए थे। राजा के आसन, पूजा स्थल के आसपास पत्थरों पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा खुदाई कर बनाई गई थी।
सरकारी उपेक्षा और देखरेख के अभाव में इस ऐतिहासिक धरोहर का वजूद लगातार मिटता जा रहा है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो बहुत जल्द इसका समूल समाप्त हो जाएगा। लोग यह जान भी नहीं पाएंगे कि कभी सम्राट अशोक सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड से होकर भी गुजरे थे। गांव के ही 70 साल के सुभाष साहू का कहना है कि वे बचपन से ही केतुंगाधाम की कहानी सुनते आ रहे हैं। यहां पर रखे बक्से, घंटी और जगह-जगह बिखरी हुई खंडित प्रतिमाएं इसकी पौराणिकता के प्रमाण देते हैं। इन स्थलों को संरक्षित करने और संवारने की जरूरत है।
स्थानीय गांव के 55 वर्षीय प्रदीप गोस्वामी बताते हैं कि उनके परदादा सदाशिव दास यहां की कहानी कहते थे। जब वे जवान थे तो आए दिन इन इलाकों में घूमने जाया करते थे। उस समय यहां जंगल था, मगर भवन इतना जर्जर नहीं था। देखरेख की कमी के कारण आज सबकुछ समाप्त होता जा रहा है। बानो निवासी और रांची में अध्ययनरत मनोहर बड़ाईक का कहना है कि वे केतुंगाधाम की कहानी अपने दोस्तों को भी बताते हैं। कई बार वे अपने दोस्तों के साथ यहां घूमने भी गए। मगर इतने बड़े ऐतिहासिक स्थल और धरोहर की दुर्दशा देखकर रोना आता है। अगर सरकार इस पर गंभीरता से विचार करे तो गांव के साथ-साथ पूरे जिले की तस्वीर बदली जा सकती है।
केतुंगाधाम हाई स्कूल के हेडमास्टर सुकरा केरकेट्टा के अनुसार इस ऐतिहासिक स्थल को सहेजने की जरूरत है। यहां आज भी कई पौराणिक और ऐतिहासिक चीजें बिखरी पड़ी हैं। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। ऐसी यादें नहीं समेटीं जाएंगी तो आनेवाली पीढ़ी को हम अपने देश की गौरवगाथा के बारे में क्या शिक्षा देंगे।
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