जमशेदपुर न्यूज़: विशु सेंदरा आदिवासियों की अनोखी व प्राचीन परंपरा है. विशु शिकार की सबसे अनोखी बात यह है कि पति के शिकार पर निकलने के पहले महिलाएं सिंदूर, कंगन व सुहाग की अन्य निशानियां उतारकर रख देती हैं. साथ ही अपनी मांग का सिंदूर भी धो देती हैं.
पति के शिकार पर रहने के दौरान पत्नी विधवा की तरह रहती हैं. शिकार से पति के लौटने पर पति अपनी पत्नी को वापस सुहाग की निशानियां पहनाते हैं. इस प्राचीन परंपरा का पालन वर्तमान समय में भी किया जाता है. विशु शिकार में सिर्फ पुरुष ही शिकार पर जाते हैं. पुरुषों के गांव छोड़कर जंगल जाने के बाद महिलाएं ही गांव की रखवाली करती हैं. इस दौरान गांव की रखवाली और मनोरंजन के लिए महिलाएं सड़पा नृत्य करती हैं. वहीं, दूसरी ओर, शिकार के दौरान ढोंगेड़ और सिंगराई नृत्य करने की भी परंपरा है. सेंदरा वीरों की सलामती के लिए घर में प्रार्थना करती उनकी पत्नियां सेंदरा वीरों के आने पर खुशी जताती हैं. शिकार से अपने घर लौटते पर पैर धोकर उनका स्वागत करती हैं. इसके बाद ही पुरुष अपने घर में प्रवेश करते हैं और सेंदरा वीर अपनी पत्नी को वापस सुहाग की निशानियां पहनाते हैं. वहीं, शिकार पर जाने से पहले हर शिकारी के घर पर पारंपरिक पूजा की जाती है. इसके बाद
सुहागिन महिलाएं अपने पतियों को हथियार सौंपतीं हैं. पूजा के दौरान कलश या कांसे के लोटे में पानी भरकर पूजा घर में स्थापित किया जाता है. सेंदरा वीरों के लौटने के बाद उस कलश को उठाया जाता है.
कलश का पानी यथावत रहने पर उसे शुभ और घट जाने पर अशुभ माना जाता है. शिकार पर निकले सेंदरा वीर की मौत होने पर उसे शहीद का दर्जा दिया जाता है. सेंदरा वीर की लाश को गांव नहीं ले जाया जाता बल्कि जंगल में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.