झारखंड
ग्रामीणों के आर्थिक संरचना का आधार बन रहा महुआ, बिचौलियों के कारण नहीं मिल रहा ग्रामीणों को उचित मूल्य
Renuka Sahu
28 March 2024 6:30 AM GMT
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झारखण्ड के दक्षिणी छोर पर बसे सिमडेगा की मुख्य आर्थिक संरचना वन उत्पादों पर आधारित है.
सिमडेगा : झारखण्ड के दक्षिणी छोर पर बसे सिमडेगा की मुख्य आर्थिक संरचना वन उत्पादों पर आधारित है. कल कारखानों से रहित इस जिले मे मुख्य जीविका वनो से निकली उत्पादो पर ही अधारित हैं इन मे से सबसे महत्वपुर्ण उत्पाद महुआ है. जो यहां के ग्रामीणों के लिए आय का सशक्त साधन बनता है.
वनोपज पर निर्भर है सिमडेगा की बडी आबादी
सिमडेगा की बडी आबादी वनोपज पर निर्भर है. महुआ यहां आय का सबसे बडा साधन हैं, लेकिन बिचौलिए यहां ग्रामीणों को वनोपज का सही मुल्य नहीं देते हैं. झारखण्ड मे महुआ के उत्पादन मे सिमडेगा अग्रणी जिलो में एक है. लेकिन यहां महुआ खरीद करने के लिए कोई सरकारी मंडी उपलब्ध नही होने के कारण यहां के ग्रामीणो को महुआ का उचित मुल्य नहीं मिल पाता है. मार्च का महीना महुआ के फुलने का महीना रहता है. जंगल में चारो तरफ महुआ की मदमस्त महक बिखरी रहती है.
आप अगर यहां के जंगली रास्तो में घुमेंगे तो हर तरफ महुआ का फुल बिखरा पड़ा नजर आ जायेगा. सिमडेगा के ग्रामीण प्रतिदिन अहले सुबह उठ कर महुआ के फुलों को चुनने के लिए जंगलों में मौजूद महुआ के पेड़ों के आस-पास जमा रहते है. महुआ का फुल सूर्योदय के साथ ही जैसे गिरता है, ग्रामीण एक एक कर इन फुलों को चुन कर इकट्ठा करते हैं. इसके बाद वे इन फुलों को सुखाते हैं. जब ये फुल कुछ सुख जाते हैं. तब ग्रामीण इन फुलो को बेच का अपने रोजमर्रा का सामान खरीदते हैं.
औने-पौने दाम में बिचैलियों को बेच देते है महुआ
ग्रामीण काफी मेहनत कर महुआ को चुन कर सुखाते है. लेकिन सिमडेगा में महुआ खरीद करने की कोई सरकारी मंडी नही होने के कारण गांव के लोग औने पौने दाम मे गांव के ही सेठ साहूकारो या बिचैलियों को महुआ बेच देते है. जिससे इनको इनकी मेहनत का उचित लाभ नही मिल पाता है. गांव के व्यापारी या दलाल इनसे महुआ 30 से 35 रूपये किलो खरीद लेते हैं. जबकि ये व्यापारी या बिचैलिये इसी महुए को 55-70 रूपये किलो बेचते हैं. सिमडेगा में ही महुआ खरीद की कोई सरकारी मंडी होती तो व्यापारियों और बिचैलियों को मिलने वाला लाभ सीधे ग्रामीणो को मिलता.
इस क्षेत्र का प्रमुख वनोपाद है महुआ
महुआ इस क्षेत्र का प्रमुख वनोपाद है और सिमडेगा का महुआ देश में अपना अलग स्थान रखता है. लेकिन अभी तक इसे सही तरीके से खरीदने की व्यवस्था नही की गई है. जिससे ग्रामीण लोगो को समुचित दाम नही मिलता है. जरूरत है एक ठोस योजना की जिससे गांव की यह फसल सही तरीके से सरकारी माध्यम से बेचने की व्यवस्था की जाए जिससे गांव के लोगो को समुचित लाभ मिल सके और इनका आर्थिक सुधार हो सके.
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Renuka Sahu
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