झारखंड

टाना भगत के लिए लोहरदगा बना था आजादी के आंदोलन का केंद्र

Renuka Sahu
11 Aug 2022 2:20 AM GMT
Lohardaga became the center of freedom movement for Tana Bhagat
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फाइल फोटो 

आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले टाना भगत न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बल्कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से भी काफी प्रभावित थे।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले टाना भगत न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बल्कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से भी काफी प्रभावित थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद का लोहरदगा से प्रत्यक्ष स्मरण तो जुड़ा हुआ नहीं है, पर अप्रत्यक्ष रूप से कई स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। टाना भगत के लिए लोहरदगा आजादी के आंदोलन का केंद्र बना था।

पहली बार 1917 में जब महात्मा गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद रांची आए थे, तो टाना भगतों से उनकी मुलाकात हुई थी। एक ही मुलाकात में टाना भगत गांधी जी के ही होकर रह गए। गांधी जी को टाना भगत आज भी अलौकिक पुरुष मानते हैं। टाना भगत विशेषकर छोटानागपुर इलाके में हैं। आजादी की पहली सुबह को लोहरदगा वासियों ने पोस्ट ऑफिस में तिरंगा फहराया गया था, उसमें टाना भगत भी शामिल थे। आजादी के आंदोलन के दौरान कुडू थाने पर कब्जा कर टाना भक्तों ने तिरंगा फहराया था। जतरा टाना भगत की कर्मभूमि लोहरदगा ही था। उन्हें लालू टाना भगत और आशीर्वाद टाना भगत जैसे लोगों का साथ और समर्थन उस वक्त मिला था।
आंदोलन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद की कर्मभूमि रहा है छोटानागपुर
राजेंद्र बाबू का छोटानागपुर विशेषकर लोहरदगा आंदोलन के दौरान कर्मभूमि रहा है। टाना भगत के बीच उन्होंने कई काम किए हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के कारण जो टाना भगत उनके संपर्क में आए उनके वंशज स्वयं को राजन भक्त कहते हैं। गांधी जी और राजेंद्र बाबू को मानने वाले टाना भगत आज भी खादी पहनते हैं। घर-घर में तिरंगा फहराते हैं। हर बृहस्पतिवार को लक्ष्मी की पूजा करते हैं। 1940 में रामगढ़ अधिवेशन से गांधी टोपी धारण करना टाना भगत ने शुरू किया। अपने-अपने घरों में तिरंगा फहराने लगे। लोहरदगा समाहरणालय मैदान में टाना भगत वर्षों से हर गुरुवार को बैठक करते हैं। शिक्षा और विकास को लेकर चर्चा करते हैं। सरकार ने टाना भगतों को उत्तराधिकारी के आधार पर इनकी जमीन का मोटेशन करने का काम शुरू कर दिया है।
टाना भगत के जीवन का आर्थिक आधार खेती-किसानी
लोहरदगा समाहरणालय मैदान में टाना भगत वर्षों से हर गुरुवार को बैठक करते हैं। आपस में संगठित रहने की बातें करते हैं। शिक्षा और विकास को लेकर चर्चा करते हैं। टाना भगतों के पूरे छोटानागपुर इलाके में करीब 5000 परिवार हैं। तकरीबन 35000 की आबादी टाना भगतों की है। ये सादगी के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। अहिंसा इनका सशक्त हथियार है। चरखा निशान वाले तिरंगा इनके पास हमेशा होता है। घंट-घड़ियाल के साथ अपनी बातों को समाज के सामने रखने का काम करते हैं। जैसा गांधीजी का लिबास था, उसी तरह टाना भगत भी सफेद वस्त्र धारण करते हैं। प्रतीकात्मक रूप में बने छोटे हल, कंधे पर जनेऊ के साथ गांधीजी की तस्वीर इनके पास होती है। टाना भगत समाज के लोग खेती-किसानी में विश्वास करते हैं। उनके जीवन का आर्थिक आधार भी यही है। टाना भगत मूलत: उरांव जनजातीय समाज से आते हैं।
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