झारखंड
हेमंत सोरेन की कुर्सी गई तो बढ़ सकता है JMM में टकराव, BJP के फैसले पर भी होंगी निगाहें
Renuka Sahu
26 Aug 2022 1:27 AM GMT
x
फाइल फोटो
झारखंड में लाभ के पद मामले में घिरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार पर संकट आने के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड में लाभ के पद मामले में घिरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार पर संकट आने के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं। विपक्षी भाजपा सारी स्थितियों पर नजर रखे है। मौजूदा घटनाक्रमों का असर केवल वर्तमान सरकार पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि यह 2024 के लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित करेगा। फिलहाल भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं और वह राज्य में नई बनने वाली तस्वीर के साफ होने का इंतजार कर रही है।
विधानसभा का अंकगणित सत्तारूढ़ महागठबंधन के पक्ष में है। ऐसे में मुख्यमंत्री के खिलाफ फैसला आने पर भी सरकार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, केवल मुख्यमंत्री का चेहरा ही बदलने की जरूरत पड़ेगी। इसमें सबसे अहम झामुमो का अंदरूनी समीकरण होगा। हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी का रुख और उस पर सहयोगी कांग्रेस का फैसला सबसे अहम होगा।
बाहरी तौर पर तो राज्यपाल के फैसले का इंतजार हो रहा है, लेकिन अंदरूनी नेतृत्व बदलाव और भावी सरकार में भूमिकाओं को लेकर मंथन हो रहा है। भावी मुख्यमंत्री चुनने की स्थिति बनने पर नेतृत्व को लेकर दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर ही टकराव बढ़ सकता है। इसके अलावा कांग्रेस के भीतर भी उथल-पुथल हो सकती है।
बढ़ सकती है राजनीतिक अस्थिरता
भाजपा सूत्रों की मानें तो झारखंड राजनीतिक अस्थिरता की तरफ बढ़ चुका है और जिस तरह के हालात हैं उसमें महागठबंधन के लिए दिक्कतें खड़ी होंगी। हालांकि, भाजपा ने अभी साफ नहीं किया है कि अस्थिरता के इस माहौल में उसका कदम क्या होगा। लेकिन यह संकेत जरूर दिए हैं कि सारे विकल्प खुले रहेंगे और झारखंड के हित में ही उचित निर्णय लिया जाएगा। उसका यह भी कहना है कि राज्य सरकार जनता का विश्वास खो रही है और ऐसे में समीकरण बदलने पर भाजपा को ही लाभ मिलेगा।
अंकगणित में भारी महागठबंधन
राज्य विधानसभा के आंकड़े इस तरह के हैं जिसमें महागठबंधन के दलों में बिखराव होने पर ही भाजपा के लिए रास्ता भी खुल सकता है। हालांकि, ऐसा होता दिख नहीं रहा है। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को हार का सामना करना पड़ा था। उस समय 81 सदस्यीय विधानसभा की जो तस्वीर उभरी थी, उसमें यूपीए जिसमें झामुमो 30, कांग्रेस 16 और राजद एक सीट के साथ स्पष्ट बहुमत लेकर आया था। इसके अलावा सीपीआई (एमएल) को एक और एनसीपी को एक सीट मिली थी। दूसरी तरफ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 30 सीटें ही मिली थी। इनमें भाजपा को 25, आजसू को दो और जेवीएम को तीन सीटें मिली थीं।
लोकसभा में एनडीए को बड़ी बढ़त
विधानसभा का लोकसभा चुनाव पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। लोकसभा की 14 सीटों में से 12 एनडीए के पास हैं। इनमें 11 भाजपा और एक आजसू के हिस्से आई थी। विरोधी दलों में कांग्रेस को एक और झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक सीट ही मिली थी। ऐसे में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अलग-अलग स्थितियां बनती रही हैं। भाजपा का कहना है कि राज्य में जो माहौल है उसमें महागठबंधन में बिखराव से इनकार नहीं किया जा सकता। भाजपा इसका लाभ उठाने से चूकेगी भी नहीं।
Next Story