झारखंड
झारखंड : यह गांव आज भी जोह रहा विकास की बाट, ना बिजली, ना पानी
Tara Tandi
13 Sep 2023 10:34 AM GMT
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जहां एक तरफ देश चांद पर पहुंच गया. टेक्नोलॉजी में बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर इसी देश में ऐसे क्षेत्र भी हैं. जहां विकास तो दूर लोगों को रहने के लिए अच्छा घर, पीने के लिए शुद्ध पानी और चलने के लिए एक अदद सड़क तक नसीब नहीं है. तस्वीरें गुमला की है, जहां जिले का अंतिम गांव नक्सल प्रभावित इलाका जलहन आज भी विकास की बाट जोह रहा है. जब प्रशासन की टीम गांव पहुंची तो गांव की बदहाली को देख टीम भी हैरान रह गई. इस गांव में आदिम जनजाति के लोग रहते हैं. जिन्हें आज तक बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पाई है.
विकास की बाट जोह रहा गांव
ऐसे में जिले के डीसी, बीडीओ और सीओ समेत कई अधिकारियों की टीम गांव पहुंची. और ग्रामीणों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं जानी. गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी नहीं है. ऐसे में अधिकारियों की टीम भी जंगलों के रास्ते कच्ची सड़क से होते हुए गांव आए. गांव पहुंचे तो साफ पानी तक नहीं मिला. क्योंकि दशकों से यहां के ग्रामीण गड्ढों और तालाबों का पानी पीकर ही गुजारा कर रहे हैं.
ना पानी, ना बिजली
जंगली इलाका होने के चलते यहां बिजली की समस्या भी आम बात है. जलहन गांव से सटे कुराग गांव में ट्रांसफार्मर जरूर लगा है, लेकिन वो भी हमेशा खराब रहता है. ग्रामीणों ने कई बार चंदा इकट्ठा कर ट्रांसफार्मर लगाया है, लेकिन वो भी एक सप्ताह से ज्यादा नहीं चल पाता. ग्रामीणों की तमाम समस्याओं को देख अधिकारियों ने संबंधित विभाग को इसके तुरंत समाधान का निर्देश दिया.
10 सालों से विद्यालय बंद
इस गांव में छात्रों के लिए एक स्कूल तक नहीं है. दरअसल, जलहन गांव में नव प्राथमिक विद्यालय बनाया गया था, जो पिछले 10 सालों से बंद पड़ा है. पंचायत समिति सदस्य ने कई बार इसको लेकर प्रखंड कार्यालय से लेकर बड़े अधिकारियों तक को आवेदन दिया है और स्कूल चालू करवाने की अपील की है, लेकिन आज तक उस आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई. अब आलम ये है कि ग्रामीण स्कूल में मवेशी बांधने का काम करते हैं. जलहन गांव में 17 आदिम जनजाति परिवार हैं. जिसमें से 12 लोगों का घर नहीं बना है.
सड़कों पर चलना मुश्किल
हालांकि ग्रामीणों के घर निर्माण के लिए पैसा जरूर आया था, लेकिन उसमें भी धांधली की गई. गांव में सड़कों की हालत ऐसी है कि यहां आए दिन लोग हादसे का शिकार होते रहते हैं. इसका एक उदाहरण भी अधिकारियों की टीम ने देखा. जब मनरेगा के बीपीओ और कंप्यूटर ऑपरेटर की बाइक गांव आते वक्त हादसे का शिकार हो गई. इसके अलावा गांव पहुंचने के बाद अंचलाधिकारी भी चक्कर खाकर गिर पड़े. यानी अधिकारी जहां एक दिन भी ठीक से नहीं गुजार पाए. वहां ये ग्रामीण सालों से अपना जीवन काट रहे हैं.
डीसी को करना चाहिए जमीनी समस्याओं का समाधान
वहीं, प्रशासनिक टीम के गांव पहुंचने को लेकर बीजेपी एसटी मोर्चा के जिला अध्यक्ष का कहना है कि टीम ने गांव का दौरा किया ये अच्छी बात है, लेकिन डीसी को जमीनी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. गुमला की ये तस्वीरें इसलिए भी हैरान करती है क्योंकि झारखंड सरकार हर मंच से खुद को आदिवासी हितैषी बताती है. बावजूद प्रदेश के आदिवासी इलाकों में ना तो विकास हो पाया है और ना ही लोगों को बुनियादी सुविधाएं मिल पाई है. हालांकि 16 साल बाद जब जलहन गांव में डीसी पहुंचे तो लोगों की कुछ उम्मीद जगी हैं देखना है कि इस दौरा से गांव में कितना बदलाव होता है.
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