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रांची (आईएएनएस)। साहिबगंज में 1000 करोड़ के माइनिंग स्कैम और मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी के दो गवाहों पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) लगाने के झारखंड सरकार का फैसला अदालतों में खारिज हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को ईडी के एक गवाह जयप्रकाश यादव उर्फ मुंगेरी यादव पर लगाए गए सीसीए को गलत करार देते हुए उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था। शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट ने ईडी के एक और गवाह अशोक यादव को सीसीए से मुक्त करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट का आया फैसला झारखंड सरकार के लिए दोहरा झटका माना जा रहा है। बता दें कि ईडी ने साहिबगंज की पत्थर खदानों में अवैध माइनिंग और ट्रांसपोर्टिंग के धंधे के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर 8 जुलाई 2022 को सीएम हेमंत सोरेन के करीबी उनके विधानसभा क्षेत्र प्रतिनिधि पंकज और उसके सहयोगियों से जुड़े 20 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की थी। इस दौरान ईडी ने कुल 5.32 करोड नकद सहित बैंकिंग लेनदेन और निवेश से संबंधित दस्तावेज जब्त किए थे। इस जब्ती सूची पर अशोक यादव नामक पत्थर व्यवसायी ने बतौर गवाह हस्ताक्षर किए थे।
ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े इसी केस में एक अन्य पत्थर व्यवसायी जयप्रकाश यादव उर्फ मुंगेरी यादव को गवाह बनाया था। इस घटनाक्रम के बाद एक गवाह मुंगेरी यादव को बीते साल 29 जुलाई को रांची एयरपोर्ट के पास पुलिस ने साहिबगंज के राजमहल में दर्ज आर्म्स एक्ट के एक पुराने मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। इसके दूसरे दिन यानी 30 जुलाई को अशोक यादव को भी गोलीबारी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। बाद में साहिबगंज के डीसी और एसपी की अनुशंसा पर झारखंड सरकार के होम डिपार्टमेंट ने इन दोनों पर सीसीए लगा दिया था।
सीसीए के खिलाफ मुंगेरी यादव ने पहले झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन यहां उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी। बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरूद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धुलिया की अदालत ने कहा कि प्रार्थी पर सीसीए एक्ट लगाने में नियमों की अनदेखी की गई है।
इसी तरह के दूसरे मामले में शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट ने ईडी के गवाह अशोक यादव पर लगाए गए सीसीए को रद्द करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। अशोक यादव ने सीसीए लगाने के फैसले पर विचार के लिए राज्य सरकार के पास आवेदन किया था। लेकिन, उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने उसके निवेदन पर विचार करने में 50 दिनों की देरी की जो गलत है। अशोक यादव की ओर से वरीय अधिवक्ता विमल कीर्ति सिंह और मंजुला प्रिया ने बहस की।
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