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झारखंड: झारखंड के जेआरडी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में एक विज्ञापन ने पर्वतारोहण की ओर उनका ध्यान खींचा। मन में बेटी को पर्वतारोही बनाने का ख्याल आया, पर टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के कार्यालय में पहुंचने के बाद पद्मश्री बछेंद्री पाल के एक वाक्य ने उनकी जीवन की पूरी धारा बदल दी। ये वाक्य थे- बेटी के बजाय तुम खुद क्यों नहीं फाउंउेशन ज्वाइन करती हो? इसके बाद जमशेदपुर की प्रेमलता अग्रवाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। घर परिवार छोड़कर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट की राह पकड़ी और फतह कर साबित कर दिया कि जिद के आगे जीत है। प्रेमलता उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणा हैं जो उम्र को किसी मिशन में ढाल बनाती है। 50 साल की उम्र में वर्ष 2011 में एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली प्रेमलता के नाम सात वर्षों तक एवरेस्ट की चोटी पर फतह करने वाली सबसे उम्रदराज महिला का रिकॉर्ड रहा, बाद में संगीत बहल ने 53 साल की उम्र में इस रिकॉर्ड को हासिल कर उन्हें पीछे छोड़ दिया।
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के एक छोटे से गांव सुखिया पोखरी में वर्ष 1963 में पैदा हुईं प्रेमलता के पिता रामअवतार एक बिजनेसमैन थे। पढ़ाई सामान्य बच्चों की तरह हुई और शुरुआती जीवन भी काफी साधारण रहा। स्कूल के दिनों में भी उन्होंने कुछ खास खेलों में हिस्सा नहीं लिया था, सिवाय दौड़ के। हायर सेकेंडरी शिक्षा हासिल करने के बाद बहुत कम उम्र में उनकी शादी पेशे से पत्रकार विमल अग्रवाल से कर दी गई। 18 साल की उम्र में ही प्रेमलता दो बेटियों की मां बन गईं। शुरुआत से लेकर अब तक जीवन सामान्य तरीके से चल रही थी। प्रेमलता के साथ उनके परिजनों ने भी नहीं सोचा था कि जमशेदपुर के सामान्य परिवार की महिला का सफर एवरेस्ट होते हुए पद्मश्री सम्मान तक पहुंचेगा। प्रेमलता के जीवन में बदलाव 35 साल की उम्र में आया। दलमा के ट्रैकिंग का विज्ञापन देखकर उसमें हिस्सा लिया और 500 प्रतिभागियों में तीसरा स्थान प्राप्त किया। खुद प्रेमलता बताती हैं कि इसका प्रमाण पत्र लेने के लिए जब टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के दफ्तर पहुंची तो वहां कुछ देर तक उसकी कर्ताधर्ता बछेंद्री पाल के विभिन्न चित्रों को निहारती रहीं। ये वे तस्वीरें थीं जिन्हें बछेंद्री पाल ने विभिन्न मिशन के दौरान खींचवाई थी। बछेंद्री पाल के प्रोत्साहन और इन चित्रों ने प्रेमलता के दृढ़् संकल्प को और मजबूत कर दिया। बेटी को एडवेंचर स्पोर्ट्स से जोड़ने के बजाय खुद इसके प्रशिक्षण को तैयार हो गई।
प्रेमलता ने बछेंद्री पाल के अधीन साल 2000 तक उन्होंने अपना बुनियादी पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा कर लिया। प्रशिक्षण खत्म करने के बाद प्रेमलता अपने पहले अभियान के तहत साल 2004 में बछेंद्री पाल के साथ नेपाल की आइसलैंड पीक पर गईं। इसके बाद 2008 में उन्होंने साउथ अफ्रिका के माउंट किलिमेनजारो की ट्रेकिंग की।धीरे-धीरे पर्वतारोहण उनका जुनून बन गया और अनुभव ने उन्हें और बेहतर बना दिया था। उनकी इस काबिलियत को देखकर बछेंद्री पाल ने उन्हें माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की सलाह दी। असल में एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए जो कुछ भी गुण एक पर्वतारोही में होने चाहिए, वे सब उनमें मौजूद थे। यहां तक कि प्रेमलता माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए हां कहतीं, तो टाटा स्टील की उन्हें इसका प्रायोजक बनने के लिए तैयार भी हो जाती, पर इसके लिए प्रेमलता ने परिवार की रजामंदी लेना जरूरी समझा। यही कारण है कि उन्होंने इसके लिए कुछ दिनों की मोहलत ले ली।
प्रेमलता को फैसला लेने में 2 साल का समय लगा। इस बीच उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी कर दी और छोटी बेटी को पढ़ाई के लिए आगे भेजा। परिवार की सभी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद प्रेमलता ने जब इस बारे में पति ने बात की तो उन्होंने भी हौसला बढ़ाया तो सास-ससुर ने भी अपनी रजामंदी दे दी। आखिरकार, 48वें साल में प्रेमलता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जाने का अपना प्रशिक्षण शुरू कर दिया। इस प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद प्रेमलता ने अपनी टीम के साथ 25 मार्च को नेपाल के काठमांडू से इस अभियान की शुरुआत कर दी। शुरुआत में तो सब ठीक रहा, लेकिन जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे वातावरण का बदलाव अपना असर दिखाने लगा। उम्रदराज होने के कारण प्रेमलता को सबसे अधिक दिक्कत पेश आ रही थी। इस दौरान उनके पांव में तेज दर्द होने लगा।
प्रेमलता इतनी कमजोर नहीं थीं कि शुरुआत में ही हार मान बैठे। उनका हौसला अडिग था और दर्द के बावजूद वह लगातार आगे बढ़ती रहीं। इस बीच उनके साथ चल रही पर्वतारोही ने उन्हें बार-बार उम्र का हवाला देकर वापस लौटने को कहते रहे, पर प्रेमलता सबकी सुनती रही। इस बीच उनका एक दस्ताना भी कहीं गिर गया। दवाब फिर बढ़ा लेकिन उन्होंने किसी की एक न मानी। इस दौरान जब प्रेमलता व उनकी टीम 26 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचे, मौसम बिगड़ गया और उन्होंने वापस जाने का फैसला कर लिया, लेकिन थोड़ी देर बाद ही मौसम ठीक हो गया और सभी ने अपनी चढ़ाई फिर से शुरू कर दी। रास्ते उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, पर अंत में वह दुनिया के सात सबसे ऊंचे शिखरों में से एक की चोटी तक पहुंचने में सफल रहीं और तिरंगा लहरा कर यह साबित कर दिया कि हौसलों से भी उड़ान भरी जा सकती है। प्रेमलता ने अपने अद्भुत साहस की बदौलत भारत की सबसे उम्रदराज पर्वतारोही का खिताब हासिल किया। मई, 2018 तक ये खिताब प्रेमलता के नाम ही था। अब संगीता बहल के नाम यह रिकॉर्ड है, उन्होंने 53 साल की उम्र में यह कारनामा कर दिखाया। प्रेमलता को उनकी इस उपलब्धि के लिए 2013 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।उन्होंने तेनजिन नॉर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड समेत कई सम्मान से नवाजा जा चुका है।
Manish Sahu
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