झारखंड

JAP-10 में फायरिंग रेज की समस्या : प्रशिक्षण के लिये जाना पड़ता है बोकारो और जमशेदपुर

Rani Sahu
3 Aug 2022 10:28 AM GMT
JAP-10 में फायरिंग रेज की समस्या : प्रशिक्षण के लिये जाना पड़ता है बोकारो और जमशेदपुर
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राजधानी रांची स्थित जैप-10 में फायरिंग रेज की समस्या है. इसके लिये बोकारो और जमशेदपुर जाना पड़ता है

Chandi Dutta Jha

Ranchi : राजधानी रांची स्थित जैप-10 में फायरिंग रेज की समस्या है. इसके लिये बोकारो और जमशेदपुर जाना पड़ता है. राज्य में एकलौता महिला बटालियन जैप-10 के जवानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. हाल ही में एडीजी प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समीक्षा में यह बात सामने आयी है. झारखंड की पुलिस के पास बुनियादी सुविधा का अभाव हैं. आधुनिक संसाधनों की बात तो दूर की बात है. ट्रेनिंग का भी अभाव है. पुलिस को बुनियादी सुविधाएं ही मुहैया नहीं कराई जा रही है. पुलिस जवानों को फायरिंग का लक्ष्याभ्यास कराया जाता है. साल में एक बार इन्हें वार्षिक लक्ष्याभ्यास करना होता है. जिसके अंतर्गत सभी पुलिसकर्मियों को हथियारों से कम से कम 10 गोली चलानी पड़ती है. इसमें यह देखा जाता है कि गोली चलाने वाले पुलिसकर्मी दक्ष है कि नहीं, हथियार दुरुस्त है कि नहीं. लेकिन होटवार स्थित जैप -10 में फायरिंग रेज के अभाव में जवानों को हथियारों से लक्ष्याभ्यास के लिए पुलिस बलों को बोकारो जमशेदपुर जाना पड़ता है.
समय पर पूरा नही होता है प्रशिक्षण
राजधानी रांची में जैप-10 के अलावे जैप-1 और जैप-2 में भी समस्याओं का लिस्ट लंबा है. जैप-1 में क्षमतानुसार आधारभूत संरचना नही है. तंबु और आउटडोर में प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षुओं की प्रशिक्षण अवधि में प्रतिनियुक्ति से प्रशिक्षण ससमय पूर्ण नही हो पाता है. इसके अलावे टाटीसिलवे स्थित जैप-2 में अंतः प्रशिक्षण के लिये कमरे और कार्यालय भवन का अभाव है. प्रशिक्षण के लिये कम्प्यूटर का भी अभाव है. पुलिस के पास आधुनिक उपकरण आते रहते हैं. लेकिन, ट्रेनिंग के अभाव में उनका प्रयोग नहीं हो पाता. ये उपकरण पुलिस के पास रखे-रखे खराब हो जाते हैं. पुलिस के पास आधुनिक उपकरण की बेहद कमी है. कर्मियों की पर्याप्त ट्रेनिंग नहीं हो पाती.
जैप-1 के जवान वीआईपी की पहली पसंद
झारखंड सशस्त्र पुलिस (जैप) वन गोरखा जवानों का एक बटालियन है. वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद इस वाहिनी का नाम झारखंड सशस्त्र पुलिस वन (जैप वन) रखा गया था. काम के प्रति गंभीर, चुस्त-दुरुस्त और भीड़ प्रबंधन में माहिर गोरखा के जवान वीआइपी की पहली पसंद हैं. यही वजह है कि झारखंड के जितने वीआइपी के पास स्कॉट वाहन हैं, वहां अंगरक्षक की ड्यूटी गोरखा के जवान कर रहे हैं. इन्हें अंगरक्षक ड्यूटी के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण मिला हुआ है.

सोर्स- Newswing

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