झारखंड

धनबाद में बार-बार तेज आवाज के साथ फट रही धरती, जमींदोज हो रहीं जिंदगियां

Rani Sahu
18 Sep 2023 10:22 AM GMT
धनबाद में बार-बार तेज आवाज के साथ फट रही धरती, जमींदोज हो रहीं जिंदगियां
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धनबाद (आईएएनएस)। धनबाद कोयलांचल में तेज आवाज के साथ धरती फटने की घटनाओं का सिलसिला थम नहीं रहा। जिंदगियां दीवारों में दफन हो रही हैं। पिछले डेढ़-दो दशकों में कई मकान, मंदिर-मस्जिद जमींदोज हो चुके हैं। रेल पटरियों से लेकर सड़कें तक धंस रही हैं।
दरअसल, पिछले डेढ़ सौ साल से कोयले के अंधाधुंध खनन के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। रविवार को धनबाद के केंदुआ गोनूडीह ओपी क्षेत्र के धोबी कुली बस्ती में फटी धरती में तीन महिलाएं एक साथ दफन हो गईं। 17-18 घंटों के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद उनके शवों के अवशेष ऐसी क्षत-विक्षत स्थिति में बरामद किए गए कि उनकी पहचान तक नहीं हो पाई।
14 अगस्त को धनबाद के जोगता थाना क्षेत्र की 11 नंबर बस्ती में तेज आवाज के साथ जमीन में बड़ी दरार पड़ने से एक परिवार के तीन लोग जमीन के भीतर समा गए। स्थानीय लोगों ने बड़ी मुश्किल से तीनों को बाहर निकाला। हॉस्पिटल में लंबे इलाज के बाद उनकी जान तो बच गई, लेकिन शरीर पर अब भी जख्म के कई निशान हैं।
बीते 11 सितंबर को गोविंदपुर एरिया की आकाश किनारी बस्ती में भू-धंसान की एक बड़ी घटना में सात मकान जमींदोज हो गए, जबकि एक दर्जन से ज्यादा मकानों में दरारें पड़ गई हैं। गनीमत यह रही कि इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ।
बीते साल धनबाद जिले के निरसा में ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (इसीएल) के मुगमा क्षेत्र में भू-धंसान की बड़ी घटना हुई थी। यहां लगभग 200 मीटर के दायरे में जमीन पांच फीट धंस गई थी।
जुलाई 2021 में केंदुआडीह में अचानक जमीन धंसने से उमेश पासवान नामक एक युवक अंदर समा गया था। बाद में उसे बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला जा सका था।
18 फरवरी 2021 को झरिया के बीसीसीएल लोदना क्षेत्र अंतर्गत घनुडीह मोहरी बांध के 10 वर्षीय बच्चा खेलने के दौरान गोफ में समा गया था। उसकी जान भी बहुत मुश्किल से बचाई जा सकी थी।
वर्ष 2017 में तो झरिया के फुलारीबाग में जमीन फटने से बबलू खान नामक एक शख्स और उनका आठ वर्षीय पुत्र रहीम जमीन के अंदर समा गए थे। इन्हें बाहर नहीं निकाला जा सका था।
धनबाद जिले के कोयला खनन क्षेत्रों में 100 साल से अधिक समय से भूमिगत आग लगी हुई है। इस कारण अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में अचानक धरती फटती रहती है। इससे गोफ या खाई बनती है।
कोयले की खदानें आग की लौ से धधक रही हैं। एक तरफ आग की लपटें आसमान को छूने को बेताब हैं तो दूसरी तरफ जलते कोयले के धुएं ने एक बड़े इलाके को अपने आगोश में ले रखा है।
यही नहीं, धधकते 1864 मिलियन टन कोयले को बचाना भी एक चुनौती है। हालांकि, विपरीत परिस्थितियों के बीच यहां खनन जारी है। यहां के पुराने लोग बताते हैं कि साल 1916 में गलत ढंग से की गयी माइनिंग से यहां आग लगी। तब सुरंग बनाकर खनन किया जाता था। यह प्रक्रिया अवैज्ञानिक थी। बावजूद इसके आजादी के बाद प्राइवेट कोयला खदानों के मालिकों ने इस प्रक्रिया को जारी रखा। इससे आग बढ़ती चली गई।
आग के कारण झरिया और आसपास की खदानों में 45 प्रतिशत कोयला जमीन के अंदर ही रह गया। वहीं, अंदर के तापमान ने कोयले की आग को और भड़काया।
साल 1916 में भौरा कोलियरी में आग लगने का पहला प्रमाण मिला था। इसके बाद साल 1986 में पहली बार आग का सर्वे कराया गया। सर्वे में 17 किमी वर्ग क्षेत्र की धरती के नीचे आग लगी हुई मिली।
धरती के नीचे बचे 45 प्रतिशत कोयले की आग धीरे-धीरे और फैलती चली गई। इस आग को माइंस के सुरंग के रास्ते हवा मिलती रही और आग धधकती गई। आग से बचाव के लिए खदान में बालू भरा गया पर वह सफल नहीं रहा।
इसके बाद 2006 में एनआरएससी ने धनबाद में आग की स्थिति पर सर्वे किया। इस बार 3.01 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में आग मिली। बीसीसीएल के सामने इन जल रहे कोयलों को बचाने की चुनौती थी। तब ओपन कास्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से फायर प्रोजेक्ट में खनन की योजना बनाई गई। योजना पर काम हुआ।
2012 में पुन: सर्वे हुआ तो 0.83 स्क्वायर किमी जलते क्षेत्र में आग कम मिली। इसके बाद से धरती फटने की घटनाएं बढ़ गई हैं, क्योंकि आग की वजह से धरती के नीचे खनन से खाली सुरंगों में गैस भर गई है। ये गैस जहरीली भी है। जब गैस का दबाव बढ़ता है, तो धरती फटती है और जान एवं माल का नुकसान होता है।
ये सब हुआ है पूर्व में कोयला खनन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के कारण। कोयला निकालने के बाद खाली जगह में बालू भरा जाता है, लेकिन बालू में भी घोटाला हो गया। धरती के नीचे की आग बुझाने में कितनों ने अरबों-खरबों के वारे-न्यारे कर लिए।
धनबाद के शंकरपुर, लिलोरी पथरा, कजरपट्टी, बालू गद्दी सहित कई इलाकों के घरों की दीवारों से हमेशा धुआं निकलता रहता है। ये दीवारें कभी भी गिर सकती हैं। यहां जमीन धंसने या फटने की आशंका हमेशा बनी रहती है। लोगों का भरोसा अब सरकार और सिस्टम से उठ चुका है।
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