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आइएमए ने सीएम को लिखा पत्र
Ranchi : आइएमए झारखंड ने शुक्रवार को सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है. जिसमें अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार सिंह ने लिखा है कि इन दिनों सरकारी डॉक्टरों को एक पुराने आदेश के तहत प्राइवेट प्रैक्टिस करने से रोकने का निर्देश दिया जा रहा है. इस आदेश पर रोक लगाते हुए तत्काल इसे वापस लेने की मांग की है. उन्होंने लिखा है कि तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव के विद्यासागर ने नया आदेश दिनांक 17.6.2016 को जारी कर सरकारी डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगायी थी.
जिसका पुरजोर विरोध आइएमए ने किया था. इसके बाद स्वास्थ्य सचिव ने सभी पहलुओं पर विचार करते हुए आश्वासन दिया था कि इसे वापस ले लिया जायेगा. लेकिन अब जानकारी मिल रही है कि उस आदेश को वापस नहीं लिया गया था. आज उसे फिर से लागू करने का निर्णय लिया जा रहा है. डॉक्टरों को प्रताड़ित करने का निर्देश बिल्कुल ही गलत है.
केवल रिम्स में मिलता है भत्ता
आइएमए ने पत्र में यह भी लिखा है कि रिम्स छोड़कर किसी भी हॉस्पिटल में डॉक्टरों को नन प्रैक्टिसिंग अलाउंस नहीं मिलता है. ऐसे में डॉक्टर ड्यूटी के बाद प्रैक्टिस करने के लिए स्वतंत्र हैं. इसमें कोई रोक-टोक का रास्ता नहीं बनता है. लेकिन फरमान जारी कर कहा जा रहा है कि आप सरकारी हॉस्पिटल में आउटडोर करेंगे और किसी जगह प्रैक्टिस नहीं करेंगे.
ढूंढ़ने से भी नौकरी के लिए डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं जबकि इसकी कमी पूरी करने के लिए उम्र सीमा बढ़ायी जा रही है. इसके बावजूद छोटे क्लिनिक्स और हॉस्पिटलों को बंदी की ओर धकेलनेवाला निर्णय लेने का क्या औचित्य है?
कोविड को अवसर नहीं बनाया
कोविड काल में जब पूरी व्यवस्था चरमरा गयी थी तब सरकारी और प्राइवेट डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किये बना लोगों की निस्वार्थ सेवा की. उन्होंने महामारी को आपदा समझा और पैसे कमाने का अवसर नहीं बनाया.
कई डॉक्टरों ने अपनी जान भी गंवा दी. ऐसे में जब सरकार डॉक्टरों को नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस नहीं देती है तो ड्यूटी आवर के बाद उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस पर लगाम लगाना औचित्य हीन है.
पत्र की कुछ मुख्य बातें
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कर्ज देकर स्वरोजगार को बढ़ावा देने व स्टार्टअप की बात कर रहे हैं. दूसरी तरफ कुछ पूंजीपति साजिश करके छोटे क्लिनिक्स जो गरीब मरीजों का सस्ता इलाज करना चाहते हैं उसे बंद कराना चाहते हैं.
सरकार को प्रोत्साहन राशि देनी थी, दुरूह भत्ता देना था, वह देना तो छोड़ दीजिए डॉक्टरों को अपना कर्तव्य करने से भी रोका जा रहा है.
आयुष्मान भारत के तहत राज्य में गरीब मरीजों को लाभ मिलता रहा. लेकिन स्थिति यह है कि उन सभी हॉस्पिटलों का पेमेंट महीनों से रोका हुआ है. छोटे हॉस्पिटल तो बंदी के कगार पर हैं.
प्राइवेट डॉक्टरों को बांध कर रखना बिल्कुल ही हास्यास्पद है. यह फरमान मेडिकल एथिक्स के विरुद्ध है. कोई भी डॉक्टर जरूरत पड़ने पर किसी भी हॉस्पिटल में सेवा के लिए जा सकता है. रिम्स में भी जरूरत पड़ने पर प्राइवेट डॉक्टरों की सेवा ली जाती है.
सोर्स -Newswing
Rani Sahu
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