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साहिबगंज के भोगनाडीह में 30 जून को हूल दिवस मनाया जाएगा. कार्यक्रम में सीएम हेमंत सोरेन शामिल होंगे. वीर सिद्धो-कान्हू के पैतृक गांव भोगनाडीह की मिट्टी का तिलक लगाकर राज्य की सत्ता में कई मुख्यमंत्री और राजनेताओं की तस्वीर बदल गई, लेकिन आज तक वीरों की जन्मभूमि भोगनाडीह की तस्वीर नहीं बदली. इस गांव में 30 जून को हूल दिवस बड़े ही हर्सोउल्लास के साथ मनाया जाता है. हूल संथाली भाषा में उस क्रांति का नाम है, जिसने सन 1855-56 में ब्रिटिश शासन के अंग्रेजी हुकूमत के नियम की चूलें हिला दिया था.
वीर सिद्धो-कान्हू का पैतृक गांव है भोगनाडीह
भारतीय इतिहास की ज्यादातर किताबों में आजादी की पहली लड़ाई के तौर पर 1857 के संग्राम का उल्लेख किया गया है, लेकिन शोधकर्ताओं और जन जातीय इतिहास के विद्धानों का एक बड़ा समूह 30 जून 1855 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात कहता है और झारखंड के एक छोटे से गांव भोग नाडीह से शुरू हुए हूल को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा दिलाने की मुहिम आज भी चला रहा है.
भोगनाडीह में आयोजित होगा कार्यक्रम
अब 30 जून को हूल क्रांति की जन्मभूमि भोगनाडीह और पंचकठिया क्रांति स्थल पर माथा टेकने सीएम हेमंत सोरेन भी आ रहे हैं. वे इस दौरान हूल कार्यक्रम में शामिल होंगे. साथ ही सभी वीरों को याद कर उन्हें नमन भी करेंगे.
CM के आने के बाद क्या बदलेगी भोगनाडीह की तस्वीर?
वीर योद्धा सिद्धो-कान्हू के पैतृक गांव भोगनाडीह में खून से लथपथ करीब 10 हजार से ज्यादा संथाल आदिवासी अंग्रजों के साथ लड़ाई में शहीद हो गए थे. साथ ही इस लड़ाई के नायक सिद्धो और कान्हू भी वीर गति को प्राप्त हुए थे. वीरों के इस भूमि पर सीएम सोरेन 30 जून को आ रहे हैं. अब देखना ये है कि सीएम के आने से वीरों की इस भूमि की तस्वीर बदलती है या फिर केवल राजनीति की भेंट चढ़कर रह जाती है.
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